अशोक कुमार
वर्तमान में शिक्षकों की भूमिका और उनका प्रशासन के प्रति रवैया एक जटिल विषय है, जिस पर अलग-अलग राय हो सकती है। यह कहना कि “शिक्षकों के चेहरे बदल गए हैं” और वे “केवल प्रशासन के गुणगान गाते रहते हैं” एक सामान्यीकरण हो सकता है, क्योंकि शिक्षकों के विचार और व्यवहार विभिन्न कारकों पर निर्भर करते हैं।
शिक्षकों की स्थिति और चुनौतियाँ
शिक्षक अक्सर कई चुनौतियों का सामना करते हैं, जिनमें शामिल हैं:
सेवा शर्तें और वेतन: कई शिक्षकों को लगता है कि उन्हें पर्याप्त वेतन नहीं मिलता और उनकी सेवा शर्तें भी संतोषजनक नहीं हैं, जिससे उनके मनोबल पर असर पड़ता है।
प्रशासनिक दबाव: स्कूलों और शिक्षा विभागों से आने वाले प्रशासनिक दबाव के कारण शिक्षकों को अक्सर पाठ्यक्रम पूरा करने और अन्य गैर-शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाता है।
राजनीतिक हस्तक्षेप: शिक्षा क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप एक बड़ी चुनौती है, जिससे शिक्षकों की स्वायत्तता प्रभावित होती है।
कार्यभार: शिक्षकों पर शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ अक्सर अधिक होता है, जिससे उन्हें अपनी राय व्यक्त करने का समय नहीं मिलता।
विरोध या पक्ष न रखने के कारण
शिक्षक अगर किसी नीति की बुराई या विरोध नहीं करते या अपना पक्ष नहीं रखते, तो इसके कई कारण हो सकते हैं:
डर और असुरक्षा: शिक्षकों को अक्सर यह डर होता है कि अगर वे प्रशासन के खिलाफ बोलेंगे तो उन्हें प्रतिशोध का सामना करना पड़ सकता है, जैसे स्थानांतरण, पदोन्नति में बाधा या अन्य दंड।
पदानुक्रमित ढाँचा: भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक स्पष्ट पदानुक्रम है, जहाँ शिक्षकों को अक्सर उच्च अधिकारियों के निर्देशों का पालन करना होता है।
संघों की भूमिका: शिक्षक संघों की भूमिका कमजोर होने से भी शिक्षकों को अपनी बात रखने में मुश्किलें आती हैं। कुछ संघ शायद अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करने में उतने प्रभावी न हों।
नीतियों का अनुपालन: कई बार शिक्षक सिर्फ नीतियों का अनुपालन करते हैं, भले ही वे उनसे सहमत न हों, ताकि वे विवादों से बच सकें और अपनी नौकरी सुरक्षित रख सकें।
क्या सभी शिक्षक ऐसे हैं?
यह कहना गलत होगा कि सभी शिक्षक केवल प्रशासन के गुणगान गाते हैं। आज भी कई शिक्षक ऐसे हैं जो शिक्षा के स्तर को सुधारने और छात्रों के हित में काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वे अपनी बात रखने के लिए विभिन्न मंचों का उपयोग करते हैं, जैसे: शिक्षक संघों के माध्यम से: कुछ शिक्षक संघ आज भी सक्रिय हैं और शिक्षकों के अधिकारों और नीतियों में सुधार के लिए आवाज उठाते हैं।
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अकादमिक मंचों पर: शिक्षक अक्सर सेमिनारों, सम्मेलनों और अकादमिक मंचों पर अपनी राय व्यक्त करते हैं।
सोशल मीडिया: कुछ शिक्षक सोशल मीडिया के माध्यम से भी शिक्षा नीतियों पर अपनी राय रखते हैं, हालांकि इसमें जोखिम हो सकता है।यह सच है कि कुछ कारक उन्हें अपनी राय खुलकर व्यक्त करने से रोकते हैं। एक स्वस्थ शिक्षा प्रणाली के लिए शिक्षकों को अपनी बात रखने और रचनात्मक आलोचना करने का अधिकार मिलना चाहिए।
(लेखक पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर रह चुके हैं)