जुबिली न्यूज डेस्क
पत्रकार और भारतीय सेना से सेवानिवृत्त सुशांत सिंह ने मंगलवार को ट्विट्टर पर लिखा कि वार्ता के इसके पहले के पांच दौरों के बाद भारत ने इस तरह का कोई भी बयान इसलिए जारी नहीं किया था क्योंकि भारत इस तरह के बयानों के मसौदे से सहमत नहीं था। इस बयान से ऐसा लगता है कि भारत ने “नई यथास्थिति” को मान लिया है।
To put it bluntly, the contention that talks between India and China are ‘deadlocked’ is not borne by today’s joint press statement. China has not conceded anything. India seems to have accepted the new status quo and given up the restoration of status quo ante as of April 2020.
— Sushant Singh (@SushantSin) September 22, 2020
सुशांत सिंह की यह प्रतिक्रिया भारत-चीन के सैन्य कमांडरों के छठे दौर की वार्ता के घंटों बाद भारतीय रक्षा मंत्रालय द्वारा द्वारा जारी किए गए बयान पर आया है।
पत्रकार और सेना से सेवानिवृत्त अजय शुक्ला भी ऐसा ही कुछ कहते हैं। मंगलवार को ट्विटर पर उन्होंने लिखा-भारत के रक्षा मंत्रालय के बयान में भारत की दो मुख्य मांगों का कोई जिक्र नहीं है -पहला, कि चीनी सैनिक अपने स्थानों से पीछे हट जाएं और दूसरा, अप्रैल से पहले की यथास्थिति बहाल हो।
अजय शुक्ला ने सूत्रों के हवाले से यह भी लिखा है कि पीएलए ने भारतीय सेना से कहा है कि चीनी सिपाही अपने स्थानों से पीछे हटने पर तभी विचार करेंगे जब भारतीय सैनिकी ऊंचाई पर उन स्थानों को छोड़ेगे जिन पर उन्होंने 30 अगस्त को नियंत्रण जमा लिया था।
Military talks flop: China demands Indian troop withdrawal from Kailash Range. PLA says only then will we discuss disengagement elsewhere.
Delayed joint statement makes no mention of India’s demands for “troop pull back” or “reversion to status quo ante”https://t.co/G3mXnctX60
— Ajai Shukla (@ajaishukla) September 22, 2020
अब जानते हैं कि आखिर मामला क्या है। आखिर क्यों भारत में रक्षा मामलों के जानकार इस “साझा” बयान को शक की निगाहों से देख रहे हैं।
दरअसल सोमवार को भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के छठे दौर की वार्ता हुई। यह वार्ता करीब 14 घंटों तक चली थी, लेकिन उसके बाद तुरंत कोई भी जानकारी नहीं दी गई थी।
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रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार रात एक बयान जारी किया जिसे उसने दोनों देशों का साझा बयान बताया। इस बयान में रक्षा मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्षों ने माना है कि “आगे के स्थानों पर अब और सैनिक नहीं भेजे जाएंगे”। बयान में यह भी कहा गया कि दोनों देश “जितनी जल्दी हो सके” सैन्य कमांडरों के स्तर पर सातवें दौर की वार्ता आयोजित करेंगे और “साथ मिल कर सीमावर्ती इलाके में शांति सुनिश्चित करेंगे।”
बयान में यह भी कहा कि दोनों पक्षों के बीच “जमीन पर बातचीत को और मजबूत करने” और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर “गलतफहमियों और गलत फैसलों से बचने” पर भी सहमति हुई, पर बयान में सेनाओं के एक दूसरे के सामने से हटने पर बातचीत में सफलता का कोई जिक्र नहीं था।
बयान में यह भी कहा गया कि कमांडरों में “दोनों देशों के नेताओं के बीच हुई महत्वपूर्ण सहमति को ईमानदारी से लागू करने” पर भी सहमति हुई।
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कमांडरों की छठे दौर के वार्ता से लगभग दो सप्ताह पहले दोनों देशों के विदेश मंत्री मिले थे और उनके बीच समझौता हुआ था कि दोनों सेनाएं लद्दाख में एक दूसरे के सामने से हट जाएंगी, एक दूसरे से उचित दूरी बनाए रहेंगी और सीमा पर तनाव कम करेंगी।
हालांकि विदेश मंत्रियों ने सेनाओं के हटने की कोई समय सीमा नहीं तय की थी, और मंगलवार के बयान में भी किसी समय सीमा की चर्चा नहीं थी।
फिलहाल इस नये बयान से भी भारत-चीन सीमा पर तनाव के कम होने की कोई विशेष संभावना नजर नहीं आ रही है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में राजनीतिक स्तर पर कोई और कदम उठाया जाता है या नहीं।
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