दीपक जोशी
लखनऊ। सियासत के केंद्र में रहने वाली अयोध्या एक बार फिर चर्चा में है। दरअसल देश की शीर्ष अदालत का फैसला आने के बाद से राम की नगरी अयोध्या अब पूरी तरह से बदली हुई नजर आ रही है। राम के नाम पर वोट मांगना कोई नई बात नहीं है लेकिन राम मंदिर का निर्माण का काम तेजी से चल रहा है।
ठीक उसी तरह की देश की राजनीति में राम मंदिर को लेकर सियासत भी खूब देखने को मिल रही है। इसका नतीजा ये हैै कि हिंदुत्व की राजनीति में अब हर राजनीतिक दल डुबकी लगाने को तैयार है।
इस वजह से अपने आपको बड़ा हिन्दुत्ववादी बताने की होड़ मच गर्ई है। इसमें कोई शक नहीं हिंदुत्व की राजनीति में बीजेपी अन्य दलों से काफी आगे है लेकिन हाल के दिनों में हिंदुत्व के नाम पर वोट बैंक की सियासत भी खूब देखने को मिल रही है।
इतना ही नहीं हर राजनीतिक अपने सियासी फायदे के लिए राम नगरी अयोध्या का चक्कर काट रहा है। पहले के दौर में अयोध्या में जहां बीजेपी और उसकी विचारधारा से जुड़े लोग सक्रिय रहते थे लेकिन अब उसी अयोध्या में अन्य राजनीतिक दल जो अयोध्या के नाम से दूर भागते थे अब वही सियासी दल अयोध्या के चक्कर काट रहे और अपने आपको बड़ा राम भक्त बताने से भी चूक नहीं रहे हैं।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे भी राम की नगरी अयोध्या की शरण में जाने को बेताब है और उन्होंने इसकी तैयारी कर ली है। राजनीतिक के पटल पर राज ठाकरे की क्या हैसियत ये बताने की जरूरत नहीं है लेकिन राम के सहारे वो सियासत की नई उड़ान भरना चाहते हैं।
इसका सबूत है कि हाल के दिनों राज ठाकरे के बयान। हालांकि शिवसेना राज ठाकरे को रोकने के लिए हर वो दांव चल रही है जिससे उसको लाभ हो सके। दूसरी ओर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने भी 10 जून को रामलला के दर्शन का मन बनाया है और अयोध्या जाने का फैसला किया है।
अगर ये देखा जाये तो राज और उद्धव ठाकरे दोनों की ये यात्रा सियासी फायदे के लिए हो सकती है। राज ठाकरे मस्जिदों के लाउडस्पीकर हटाने का अभियान छेड़ रखा है। राज ठाकरे अपने इस कदम से हिंदुत्ववादी की छवि को आगे लाना चाहते हैं।
राज ठाकरे 5 जून को अयोध्या पहुंचेगे। इससे पूर्र्व बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने 2022 यूपी चुनाव के लिए ब्राह्मण सम्मेलन शुरू किया था लेकिन अयोध्या में उनका ये कार्यक्रम वोटों में बदल नहीं सका।
वहीं आम आदमी पार्टी ने यूपी चुनाव अभियान की शुरुआत अयोध्या से की थी लेकिन इनको भी कोई फायदा नहीं हो सका। अखिलेश यादव का भी अयोध्या प्रेम जागा था और चुनाव प्रचार के दौरान राम जन्मभूमि भले ही न गए हों, लेकिन साधु-संतों को अपने पक्ष में करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।