जुबिली न्यूज डेस्क
पश्चिम बंगाल में भाजपा और टीएमसी की निगाहे राज्य की आधी आबादी पर टिकी हुई हैं। इन्हें लुभाने के लिए दोनों पार्टियां कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। इतना ही नहीं दोनों दल एक दूसरे पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहने के के आरोप भी लगा रही हैं।
और तो और चुनाव प्रचार के दौरान केंद्र और राज्य सरकार की ओर से महिलाओं के हित में शुरू की गई योजनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। यह सब ऐसे ही नहीं है।
राजनीतिक दलों के लिए बंगाल की महिलाएं यूं ही खास नहीं बन गई हैं। दरअसल इस बार सत्ता का चाभी उनके हाथ में आ गई है। इस बार के चुनाव में राज्य के 7.18 करोड़ मतदाताओं में से 3.15 करोड़ महिलाएं हैं।
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जाहिर है यह आंकड़ा बहुत बड़ा है और कोई भी पार्टी इसकी अनदेखी नहीं कर सकती। हालांकि यहां की महिला मतदाताओं को बरगला पाना इतना आसान भी नहीं है।
देश के दूसरे प्रदेशों के उलट राजनीतिक रूप से जागरूक इन महिलाओं की अपनी सोच है। इसलिए कुछ तबकों को छोड़ दें तो
अधिकतर घरों में अपने मत का फैसला महिलाएं खुद करती हैं।
राजनीतिक दलों को भी एहसास है कि महिला मतदाताओं का समर्थन हासिल कर पाना आसान नहीं है। इसीलिए टीएमसी और भाजपा इनका समर्थन हासिल करने की कोशिश के तहत महिलाओं से जुड़े मुद्दे उठा रही हैं।
दोनों दलों ने अपने घोषणापत्र में भी महिलाओं से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता दी है। पहले टीएमसी के घोषणा पत्र में महिलाओं के लिए क्या है यह जानते हैं।
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तृणमूल कांग्रेस ने न्यूनतम आय योजना के तहत सामान्य वर्ग के परिवारों की महिला मुखिया को मासिक पांच सौ और आदिवासी और अनुसूचित जाति/जनजाति के परिवारों को एक हजार रुपये देने का ऐलान किया है। इसके अलावा एक हजार रुपये का विधवा भत्ता सबको देने की बात कही है।
अब भाजपा के घोषणा में महिलाओं के लिए क्या है यह जानते हैं। भाजपा ने टीएमसी की कन्याश्री और रूपश्री जैसी योजनाओं की काट के लिए 18 साल की उम्र पूरा करने वाली लड़कियों को एकमुश्त दो लाख रुपये के अलावा उनको सरकारी नौकरियों में 33 प्रतिशत आरक्षण देने, केजी से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई मुफ्त करने के अलावा मुफ्त परिवहन सुविधा और सरकारी नौकरियों में 33 फीसदी आरक्षण देने का भी वादा किया है। भाजपा ने विधवा भत्ते की रकम तीन हजार रुपये करने की घोषणा की है।
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इसके अलावा भाजपा ने अपने चुनाव अभियान में महिलाओं की सुरक्षा और तस्करी को भी प्रमुख मुद्दा बनाया है। वह महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और आदिवासी इलाकों में महिलाओं की तस्करी के मुद्दे पर भी टीएमसी सरकार को कठघरे में खड़ा करने में जुटी है।
टीएमसी व भाजपा ने कितनी महिलाओं को दिया है टिकट
राज्य के मतदाताओं में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अनुपात बीते साल के 956 प्रति हजार से बढ़ कर 961 हो गया है। यह एक नया रिकॉर्ड है।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में टीएमसी ने 42 में से 17 सीटों पर यानी 41 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया था जबकि वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों की तादाद 45 थी। टीएमसी ने इस बार 50 महिलाओं को टिकट दिया है।
भाजपा ने 2016 के विधानसभा चुनावों में 31 महिलाओं को टिकट दिया था और इस बार सिर्फ 32 महिलाओं को मैदान में उतारा है।
क्या है महिला मतदाताओं का मिजाज
साल 2006-07 तक राज्य की महिलाएं लेफ्ट के साथ मजबूती से खड़ी थीं, लेकिन सिंगूर और नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों के बाद वे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का समर्थन में आ गईं।
लेकिन बीते लोकसभा चुनावों में भाजपा ने भी महिला मतदाताओं में खासी पैठ बनाई थी और उसका उसे जबरदस्त फायदा भी मिला। अब इस चुनाव में वो किसके साथ खड़ी होंगी यह तो दो मई को ही पता चलेगा।
वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं, ” बंगाल में महिलाएं भी राजनीतिक रूप से काफी जागरूक हैं। यहां आधी आबादी किसी भी पार्टी का राजनीतिक समीकरण बनाने या बिगाडऩे में सक्षम है। यही कारण है कि सत्ता के दोनों प्रमुख दावेदारों टीएमसी और भाजपा ने अपने घोषणापत्रों में महिलाओं से जुड़े मुद्दों को तरजीह दी है। इसके साथ ही चुनाव अभियान के दौरान भी महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर खास जोर दिया जा रहा है।”