जुबिली पोस्ट ब्यूरो
लखनऊ। स्मारक घोटाले का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है। बसपा सरकार में हुए 1400 करोड़ के स्मारक घोटाले की जांच सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) जल्द पूरी करने जा रहा है। शासन ने स्मारक निर्माण की अवधि में तैनात रहे अफसरों का ब्योरा मांगा है।
एलडीए में 2007- 2011 तक की अवधि में तैनात रहे प्राधिकरण के उपाध्यक्ष व अध्यक्ष के नाम के साथ ही नियुक्ति का कार्यकाल व वर्तमान तैनाती की जानकारी तलब की है। बताया जा रहा है कि आधा दर्जन आईएएस व दर्जनभर मुख्य अभियंता सरकार के निशाने पर हैं।
प्रदेश सरकार ने एलडीए उपाध्यक्ष प्रभु एन सिंह से आरोपितों के बारे में जानकारी मांगी है। स्मारकों व पार्कों के निर्माण में त्रिलोकी नाथ तत्कालीन मुख्य अभियंता (सिविल), विमन कुमार सोनकर, तत्कालीन अधिशासी अभियंता (सिविल), महेंद्र सिंह गुरिदत्ता, तत्कालीन अधिशासी अभियंता (सिविल), राकेश कुमार शुक्ला, तत्कालीन अधिशासी अभियंता (सिविल), एसबी मिश्र, तत्कालीन अधीक्षण अभियंता, तत्कालीन संयुक्त निदेशक, लखनऊ विकास प्राधिकरण को आरोपी बनाया गया है।
स्मारकों की पत्रावलियों से संबंधित सभी अधिकारी, सेक्शन आफिसर का नाम पता, नियुक्ति अवधि वर्तमान नियुक्ति स्थान व मोबाइल नंबर भी शासन ने मांगा है। बसपा मुखिया मायावती के कार्यकाल के दौरान लखनऊ व नोएडा में स्मारक का निर्माण किया गया था।
सरकार ने 2007- 2011 तक प्राधिकरण के उपाध्यक्षों व अध्यक्षों के नाम पता, नियुक्ति का कार्यकाल, वर्तमान नियुक्ति स्थान व मोबाइल नंबर मांगा है। प्रत्येक आरोपी का सेवा विवरण, नियुक्तियों का विवरण, स्मारकों के निर्माण के लिए एलडीए को नोडल एजेंसी नियुक्त किए जाने के लिए शासनादेश की मूल अथवा प्रमाणित प्रति, एलडीए को नोडल एजेंसी के रूप में शासन से दिए गए दायित्वों से संबंधित आदेश, दिशा- निर्देश की मूल अथवा प्रमाणित प्रति, शासन से एलडीए के उक्त अधिकारियों को सुपुर्द कार्यों, दायित्वों से संबंधित आदेश/ निर्देशों की मूल/ प्रमाणित प्रति, डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मारकों एवं सुपुर्द अन्य स्मारकों से संबंधित धन के स्वीकृत संबंधित पत्राचारों एवं आगणन लखनऊ विकास प्राधिकरण एवं शासन से पत्राचारों से संबंधित एलडीए की मूल पत्रावली मांगी गई है।
2007 से 2011 के बीच स्मारक व उद्यानों का कार्य हुआ था। प्रवर्तन निदेशालय व सतर्कता अधिष्ठान इस मामले की जांच कर रहा है। लंबी जांच के बाद विजिलेंस इस मामले में रिपोर्ट शासन को सौंपने की तैयारी में है। सपा सरकार ने लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट मिलने के बाद विजिलेंस को इसकी जांच का जिम्मा सौंपा था।
विजिलेंस ने जांच के बाद पांच साल पहले गोमतीनगर थाने में करीब सौ आरोपितों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी थी। मुकदमा दर्ज होने के तीन साल बाद तक इस मामले की जांच ठंडे बस्ते में पड़ी रही। यहां तक कि आरोपी पूर्व मंत्रियों के बयान तक दर्ज नहीं किए गये थे।