प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. उत्तर प्रदेश की पुलिस ने अगर अपने मुखिया डीजीपी हितेश चन्द्र अवस्थी की बात मान ली होती तो शायद कानपुर में आज 8 पुलिसकर्मियों को अपनी शहादत नहीं पेश करनी पड़ती. उत्तर प्रदेश में यह कोई पहला मामला नहीं है जिसमें अपराधियों ने पुलिस पर न सिर्फ हमला किया बल्कि 8 पुलिसकर्मियों को शहीद भी कर दिया. शहीद पुलिसकर्मियों में एक डिप्टी एसपी, एक थानाध्यक्ष, दो सब इन्स्पेक्टर और चार सिपाही शामिल हैं.
पुलिस की टीम 60 मुकदमो में वांछित विकास दुबे को गिरफ्तार करने गई थी. गाँव में पहुँचते ही विकास दुबे और उसके साथी बदमाशों ने पुलिस टीम पर हमला कर दिया और ताबड़तोड़ फायरिंग कर ज़मीन को पुलिसकर्मियों के खून से रंग दिया.
डीजीपी ने 4 जून को सूबे के सभी पुलिस कप्तानों और दोनों आयुक्तों को पत्र लिखकर यह निर्देश दिया था कि पुलिसकर्मियों पर हमला करने वाले बदमाशों की तत्काल गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाए. डीजीपी ने पुलिस अधिकारियों से स्पष्ट रूप से कहा था कि ऐसे बदमाशों की गिरफ्तारी के लिए जाते वक्त वह अपने साथ इस तरह के इंतजाम से जाएँ जैसे कि दंगा नियंत्रण करने के लिए जाते हैं.
डीजीपी ने इस पत्र में यह भी कहा था कि इस तरह की कार्रवाई से पहले पुलिस पूरी तैयारी करे. एलआईयू को पहले से क्रियाशील करें और मौके की पूरी जानकारी हासिल करें.
डीजीपी ने अपने इस पत्र के ज़रिये पुलिस अधिकारियों से यह अपेक्षा की थी कि सभी विवेचनाओं को जल्दी निस्तारित किया जाए और अपराधियों के खिलाफ दृढ़तापूर्वक कार्रवाई की जाए.
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डीजीपी ने निर्देश दिया था कि पुलिसकर्मियों पर हमला करने वाले अपराधियों को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, गुंडा एक्ट और गिरोहबंद क़ानून के तहत कार्रवाई सुनिश्चित की जाए.
डीजीपी के निर्देशों से इतर पुलिस टीम विकास दुबे को गिरफ्तार करने के लिए बगैर किसी तैयारी के उसके गाँव पहुँच गई. गाँव में विकास पूरी तरह से मुकाबले को तैयार दिखा. जेसीबी लगाकर पुलिस का रास्ता इस अंदाज़ में रोका गया कि सभी पुलिसकर्मी गाड़ियों से उतरकर पैदल चलने को मजबूर हो गए. उधर ऊंचाई पर मौजूद विकास और उसके साथियों ने पुलिसकर्मियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर उन्हें शहीद कर दिया. पुलिस महानिरीक्षक अमिताभ ठाकुर ने अपने फेसबुक पेज पर DGP की चिट्ठी इसी आशय से लगाई कि अगर उनकी बात पर अमल किया गया होता तो आज तस्वीर कुछ और होती.