डॉ. शिशिर चंद्रा
पता नहीं आज के समय भीष्म की प्यास बुझाने के लिए अर्जुन धरती में तीर चलाते तो धरती से पानी निकलता भी या नहीं। आज तो शायद कौवे को घड़े में कंकड़ डालकर अपनी प्यास बुझाने भर का भी पानी कई जगह उपलब्ध नहीं है।
ये सरकारी तस्वीर कोई पुरातन ज़माने की नहीं है, मेरे बाबा ने इसकी कटिंग काट कर अपने फाइल में रखी थी 1976 में जो हाल ही में मेरे हाथ लगी। कोई 45 साल पुरानी ये तस्वीर साफ बोलती है कि धरती का गर्भ पानी से कितना भरा था चाहे वो बुंदेलखंड का ही इलाका क्यों न हो और ये सोचने पर विवश कर देती है कि ऐसा क्या हुआ इन बाद के दिनों में कि धरती का गर्भ पानीदार नहीं रहा।
मेरे हिस्से के भूभाग के नीचे का पानी मेरा की सोच ने बेतहाशा भूगर्भ जल दोहन किया (चाहे किसी भी काम के लिए हो), कोई कानूनी व्यवस्था और उसका नियमन न होना कोढ़ में खाज़ का काम किया और आज इस मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया कि सुखी फटती धरती, सूखे झील झरने तालाब कुएं, खाली गगरी, प्यासे बच्चों की तस्वीर न्यूज़ मैगज़ीन का कवर पेज बनाना आम हो गया।
इन बातों के अलावा, बिना आकड़ों की बाजीगरी के अपनी सामान्य बुद्धि से सोचें कि तेजी से घटते भूगर्भ जल स्तर का अंजाम क्या क्या हो सकता है तो इसपर एक साथ कई तस्वीर उभरती है – आने वाले समय में गहरा जल संकट, पीने खाने घरेलु इस्तेमाल के लिए हो या फिर खेती किसानी या फिर उद्योग से जुड़े मामले तो हैं हीं, जो दूसरा बड़ा संकट है वो धरती के अंदर बढ़ता खोखलापन जो धरती के अंदर से निकले हुए पानी के कारण बन रहा।
बढ़ते खोखलेपन से भूकंप और भूकंप की तीव्रता से धरती के ऊपर पड़ने वाले दबाव से जो तबाही होगी उस ओर अभी लोगों का ध्यान कम जा रहा।
चूंकि समस्या गंभीर है तो इसके समाधान को भी गम्भीरत से ही लेना होगा और धरती के गर्भ को पानीदार बनाने से पहले हम सबको अपने दिल दिमाग को सींचना होगा ताकि पानी के प्रति सम्मान बढ़े और उसके बेतहाशा दुर्पुयोग को रोक सके।
जल-जंगल-जमीन की सुरक्षा की बात ठीक उस ओर किया जाने वाला प्रयास भी ठीक, मनरेगा का काम भी ठीक, नमामी गंगे का काम भी ठीक, गंगा एक्शन प्लान भी ठीक, तो कमी क्या है? शायद लालच, तरीका और दिल से किया जाने वाला प्रयास। बड़े प्रोजेक्ट, बड़े काम, बड़ी ठेकेदारी अपनी जगह, पर छोटी परन्तु गूढ़ बात जो छूट रही वो है अपनी आदत और अपनी जरुरत।
आज जब हर चीज़ का कंट्रोल उंगली पर है तो हमारी जिम्मेदारी भी उतनी ही बनती है कि हम उपयोग, उपभोग और दुरुपयोग के बीच के फ़र्क़ को समझें और जिम्मेदार नागरिक और इंसान की तरह अपना व्यवहार बनायें, वरना आने वाली पीढ़ी, हमारे बच्चे जब हमारी जिमेदारियों का पोथा खोलेगी तो शायद न तो हम उनसे आँख मिला पाएंगे और न ही उसका जवाब दे पाएंगे। कल हमारे बच्चे पानी को तरसे इससे बेहतर है आज ही शुरू करें पानी बचाना घर से।
लेखक समाजिक कार्यकर्ता है