रूबी सरकार
बुंदेलखण्ड की लगभग 2 करोड़ आबादी इस समय इतिहास के सबसे भयंकर सूखे का सामना कर रही है। पिछले दशकों में इस इलाके के लगभग सभी कुएं सूख गये, यहां तक कि गांवों के आंगनबाड़ी केंद्रों में भोजन पकाने के लिए पानी की कमी आड़े आती है। इससे बच्चों को पोषक आहार नहीं मिल पाता है।
इस चुनौतीपूर्ण हालात के बावजूद ग्रामीणों तक कोई सरकारी मदद नहीं पहुंच पाती। मछुवारों के पांच सौ परिवार वाला एक छोटा सा गांव भगुवां, जहां आज भी महिलाएं पानी के लिए रात-रात भर हैण्डपम्प के सामने लाईन लगाकर बैठी रहती हैं। ताकि जब हैण्डपम्प से पानी निकले तो वह अपनी पारी से न चूके। यह कोई एक दिन का किस्सा नहीं है, बल्कि दशकों से महिलाएं इसी तरह पानी के लिए संघर्ष करती आ रही हैं।
गांव में पानी लाने और भोजन पकाने का काम महिलाओं के हिस्से में आता है, भले ही महिलाएं पति के साथ बराबरी से उनके काम में हाथ बंटाती हों, लेकिन पति या परिवार का कोई पुरूष सदस्य पानी लाना महिलाओं का काम मानकर कभी भी उनकी मदद नहीं करते। उल्टे खाना समय पर न मिलने से महिलाओं के साथ मार-पीट पर उतर आते हैं।
गांव की सुनीता कहती हैं कि हैण्डपम्प से एक-एक घण्टे बाद केवल दो गुंडी ही पानी निकलता है। बरसात छोड़कर शेष आठ महीने यही करना पड़ता है। वैसे इतने सारे परिवारों के बीच एक हैण्डपम्प केवल सांसें भर रहे हैं। यह पूरे गांव की प्यास बुझाने लायक नहीं है। ऐसी स्थिति में गांव वाले 2 किलोमीटर दूर नाले से पानी भर लाते हैं।
उसने कहा, 25 सालों से गांव की महिलाएं यही कर रही हैं। सुनीता ने कहा, कि बुंदेलखंड की बदहाल सूरत को बदलने के लिए सरकारों ने बड़े-बड़े पैकेज दिये। जिसका मकसद था, कि यहां के लोगों को काम के लिए बड़े शहरों का रूख न करना पड़े। लेकिन उस पैकेज का क्या हश्र हुआ, यह सबने देखा। उचित क्रियान्वयन के अभाव में योजनाएं गड़बडियों का शिकार होती चली आ रही है। भ्रष्टाचार के आरोप में दो दर्जन से अधिक प्रशासनिक अधिकारी निलंबित भी हुए। फिर भी गड़बडियों का सिलसिला थमा नहीं।
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राधा बताती है, कि मछली और सिंघाड़े से हर साल लगभग 12 हजार और मजदूरी करके 12-15 हजार रूपये कमा लेते थे। लेकिन लॉक डाउन ने सब ठप्प कर दिया। गांव में इस समय आजीविका का संकट है। केंद्र सरकार का तीन महीने का राशन खत्म हो चुका है। पलायन करने वाले घर वापस आ चुके हैं। सरकार की घोषणाओं के बावजूद राहत अब तक नहीं मिली है। गुड्डन रायकवार बताती है, कि जल सहेलियों के साथ कई बार पानी के लिए सड़क जाम किया। पुलिस की लाठी भी खायी। परंतु पानी नसीब नहीं हुआ। दरअसल हैण्डपम्प भी आंगनबाड़ी केंद्र के लिए लगा है। क्योंकि गांव में लगभग डेढ़ सौ बच्चे हैं, इनमें से अधिकतर बच्चे कुपोषित हैं। कोरोना संक्रमण के दौरान इनमें से किसी को तीन महीने से टीका नहीं लगा है। इसके अलावा इस समय 10 गर्भवती महिलाएं हैं, जिन्हें लॉकडाउन के दौरान मंगलवार का पोषण आहार नहीं मिला है। पानी नहीं, राशन नहीं कहां से स्वस्थ बच्चे पैदा होंगे।
मोनू रायकवार ने बताया, बुंदेलखण्ड पैकेज का मध्यप्रदेश की तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) से जांच कराने का आदेश जारी किया तो पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान की चिंताएं बढ़ गईं। ऐसा इसलिए क्योंकि बुन्देलखण्ड पैकेज निगरानी समिति भी पैकेज में हुई गड़बड़ी को लेकर सीधे जांच के निशाने पर आ रही थी। इस समिति के अध्यक्ष स्वयं तब के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही थे और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर हुई जांच के बाद भी वह इसमे फंसने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को बचाने के लिए फाइल दबाए रखने के आरोपों से भी घिर रहे थे।
यह पैकेज राहुल गांधी की पहल पर यूपीए सरकार ने बुन्देलखण्ड के विकास के लिए जारी किया था, इसलिए विधानसभा चुनाव में इस घोटाले को कांग्रेस ने मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया और सरकार बनाने के बाद कमलनाथ ने इसकी जांच ईओडब्ल्यू को सौंप भी दी। इस बीच कमलनाथ की सरकार चली गई। अब पुनः शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हैं।
परमार्थ समाज सेवी संस्थान के सचिव संजय सिंह बताते हैं कि बुंदेलखंड बीते कुछ सालों से सूखा और जल संकट का केंद्र बन गया है। यहां गर्मी के मौसम में पीने के पानी को लेकर मारामारी का दौर शुरू हो जाता है। खेती के लिए पानी मिलना दूर की कौड़ी होता जा रहा है। यहां के हालात बदलने के लिए केंद्र सरकार की ओर से समय-समय पर करोड़ों रूपये का राहत पैकेज दिये जाते है, जिससे यहां सिंचाई, खेती, जलसंरचना, पशुपालन आदि सुधरे और पलायन रूके। ग्रामीण सांस ले सके। हालांकि काम बहुत बड़ा है, इसलिए सुधरने में भी वक्त लगेगा। फिर भी जल्द से जल्द लोगों को राहत मिले, तो सरकार के प्रति लोगों का विश्वास बढ़़े और लोग निराशा से बाहर आये, इसके लिए गांवों में जल आपूर्ति प्रणालियों की योजना, कार्यान्वयन, प्रबंधन, संचालन और रखरखाव सभी पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
मालूम हो कि जल शक्ति मंत्रालय ने जलापूर्ति के लिए मध्य प्रदेश में नये सिरे से वर्ष 2020-21 के लिए वार्षिक कार्य योजना तैयार की है। जिसे जल शक्ति मंत्रालय द्वारा राज्यों के साथ साझेदारी में लागू किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य 2024 तक देश के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नियमित और दीर्घकालिक आधार पर निर्धारित गुणवत्ता का पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना है।
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(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)