प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. दीवाली की दस्तक सुनाई देने लगी है. दीवाली खुशियों का त्यौहार है, धूम धड़ाका करने का त्यौहार है. मिठाइयों के साथ-साथ पटाखों और फुलझड़ियों का भी त्यौहार है. पटाखे चलते हैं तो बच्चे खुश होते हैं मगर इससे वायु प्रदूषण भी फैलता है. देश की कई राज्य सरकारों ने इस साल की दीवाली पर सिर्फ ग्रीन पटाखे चलाने की ही छूट दी है.
कोरोना संकट के दौर में अगर वायु प्रदूषण बढ़ा तो यह कई लोगों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है. दरअसल पटाखों में बारूद भरी होती है. पटाखे चलते हैं तो वायुमंडल में बारूद फ़ैल जाती है जो सांस के साथ शरीर के भीतर पहुँच जाती है.
वायु प्रदूषण से बचने के लिए दिल्ली के बाद राजस्थान, हरियाणा और पश्चिम बंगाल की सरकार ने पटाखों पर रोक लगा दी है. यहाँ सिर्फ ग्रीन पटाखे ही चलाये जा सकते हैं. ओडिशा सरकार ने तो 10 नवम्बर से 30 नवम्बर तक अपने राज्य में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर ही रोक लगा दी है. ओडिशा सरकार ने एलान किया है कि उनके राज्य में पटाखा बेचते या चलाते हुए पकड़े जाने पर उसे दण्डित किया जाएगा.
जानकारों का कहना है की पटाखे चलने से पर्यावरण में नुक्सान पहुंचाने वाले रसायन फ़ैल जाते हैं. सल्फर डाईआक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड और नाइट्रस आक्साइड जैसी गैसें वायु में घुल जाती हैं, जबकि ग्रीन पटाखों में बेरियम नाइट्रेट नहीं होता. एल्युमिनियम की मात्रा कम होती है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले ही ग्रीन पटाखे चलाने की सलाह दी थी.
दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय ने पटाखे की दुकानों पर जाकर खुद यह जांच की कि बाज़ार में ग्रीन पटाखे ही बिक रहे हैं या फिर दुकानों पर सामान्य पटाखे भी मौजूद हैं. दिल्ली में सामान्य पटाखों पर पूरी तरह से रोक है.
राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान ने ग्रीन पटाखे तैयार किये हैं जो सामान्य पटाखों जैसे ही चलते हैं लेकिन इनसे प्रदूषण कम फैलता है. सामान्य पटाखों से ग्रीन पटाखों की तुलना करें तो इनसे 40 से 50 फीसदी कम हानिकारक तत्व निकलते हैं.
राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. साधना रायलू का कहना है कि प्रदूषण तो ग्रीन पटाखों से भी फैलता है लेकिन सामान्य पटाखों की तुलना में इनसे पर्यावरण को करीब 50 फीसदी कम नुक्सान होता है. ग्रीन पटाखे तैयार करने का मकसद ही इनसे होने वाले नुकसान को कम करना था. इसे बनाने में ऐसी तकनीक इस्तेमाल की गई है कि हानिकारक गैसें कम से कम निकलें.
ग्रीन पटाखों की खासियत यह होती है कि इन्हें चलाने पर इनसे पानी बनता है. यह पानी सल्फर और नाइट्रोजन जैसी हानिकारक गैसों को घोल देता है. पानी हानिकारक गैसों को घोलने में सहायक होता है. यही वजह है कि कुछ साल पहले प्रदूषण बहुत ज्यादा बढ़ जाने पर कई राज्यों में फायर ब्रिगेड से पेड़ों को धुलवाया गया था ताकि पेड़ों पर जमा प्रदूषण उससे बह जाए और पर्यावरण को साफ़ करने में मदद मिल सके.
ग्रीन पटाखों की जो सबसे ख़ास बात है वह यह कि यह भारत में ही तैयार किये गए हैं. अभी तक दुनिया के किसी भी देश में इसका इस्तेमाल नहीं होता है. ग्रीन पटाखे चलाये जाएँ तो इससे पर्यावरण को होने वाले नुक्सान की कमी जब दुनिया को दिखेगी तो ग्रीन पटाखों के ज़रिये भारत दुनिया को सन्देश दे सकता है.
इस दीवाली पर ग्रीन पटाखे चलाने की छूट है. सरकार की तरफ से स्पष्ट कर दिया गया है कि दीवाली पर पटाखे चला रहे हैं तो पटाखों के डिब्बे संभालकर रखने होंगे ताकि ज़रूरत पड़ने पर उसे जांच अधिकारी को दिखाया जा सके. साथ ही जांच करने वाला जलाए हुए पटाखे की भी जांच कर सकता है.
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तमिलनाडु के शिवकाशी और राजस्थान में ग्रीन पटाखे बनाने का काम चल रहा है. हालांकि अभी बड़ी संख्या में फुलझड़ी और अनार ही बनाए जा रहे हैं.
देश के कई हिस्सों में ग्रीन पटाखों के डिब्बों में सामान्य पटाखे बेचे जा रहे हैं. पटाखा खरीदने और बेचने वालों दोनों के लिए यह जोखिम का मुद्दा है. ग्रीन पटाखे के डिब्बे में सामान्य पटाखे चलाते हुए कोई पकड़ा जाएगा तो उसे ज़मानत लेनी पड़ेगी. इसमें गिरफ्तारी का प्राविधान तो नहीं है लेकिन मुकदमा तो झेलना ही पड़ेगा.