प्रदीप कपूर
कल प्रिय मित्र विजय आचार्य से बात हो रही तो अचानक लाल बिहारी टंडन ग्रुप के विनोद टंडन जी और उनके घर होनेवाली शेरों शायरी की नशिस्तों का जिक्र होने लगा।
हुआ यह की बहुत साल पहले एनबीआरआई में टहलते हुए डा. नसीम जमाल से लगातार शायरी सुनते हुए हमने और हमारे मित्र मो. अहसन साब ने यह तय किया की क्यों न हमलोग एक प्लेटफार्म दें उन लोगों के लिए जो कविता लिखते है और शायरी कहते है लेकिन किसी कविता पाठ और मुशायरे में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। हमलोगों को पहला मौका मित्र विजय आचार्य ने दिया । भारत ज्योति के तहत जिमखाना क्लब में नशिस्त आयोजित की गई जिसमें तमाम नए कवि और शायर आए। हमारे पहला प्रोग्राम विजय आचार्य की वजह से बहुत कामयाब हुआ ।
यह विनोद भाई साब की दरियादिली थी कि जब हम और मो. हसन साब लखनऊ में कई जगह शेरों शायरी की नशिस्त कर चुके थे तो विनोद भाई साब ने एनबीआरआई के सामने अपनी सूर्योदय कालोनी के बीच में बने कम्युनिटी हॉल में आमंत्रित किया। कुछ महीने शेरो शायरी की नशिस्त विनोद भाई साब के मार्गदर्शन में वहां होने लगी। उनके घर से चाय और नाश्ता और पानी उपलब्ध रहता था।
यह सिलसिला कुछ महीने चला फिर विनोद भाई साब ने एक बड़ी दरियादिली और लखनवी तहजीब और संस्कृति से बेपनाह मोहब्बत का परिचय देते हुए आपने घर के दरवाजे खोल दिए और बेसमेंट में नियमित कविता पाठ और शेरों शायरी की नशिस्त होने लगी।
आनेवाले मेहमान कवि शायर और सुननेवालों का बहुत गर्मजोशी से स्वागत विनोद भाई साब करते थे वो देखते बनता था। उनके हाथ में एक पाउच रहता था जिसमें पान और मसाला रहता था जिसका सेवन वे पूरे कार्यक्रम में करते। सफेद कुर्ता पजामा और चेहरे पर मुस्कराहट उनके पहचान थी।
उनका मिजाज कुछ तरह था जो एक बार मिला वो उनका हो गया। विनोद भाईसाब अपने आप में अंजुमन थे। उनसे आप किसी भी सब्जेक्ट पर बात कर सकते थे। राजनीति से लेकर अदब और खान पान विनोद भाई साब से बहुत ज्ञान मिलता था। मुझे यह कहते हुए फक्र हैं की उनसे बहुत स्नेह मिला।
जिंदगी भर चौक में रहे और आखिर के कुछ साल एनबीआरआई के सामने सूर्योदय कॉलोनी में घर बनाया जहा वे अंतिम समय तक रहे।
भले ही वे हजरतगंज में रहते रहे हों लेकिन उनका दिल चौक में रहता था।उनका घर अमृत लाल नागर जी के बगलवाला ही था। उनके पास नागर जी और अपने अभिन्न मित्र लालजी टंडन जी के बहुत से किस्से और यादें थी जो समय समय पर हमारे साथ साझा करते थे।
हम जब लालजी टंडन जी से मिलते तो वे भी विनोद भाई साब और पूरे परिवार के बारे अपने पुराने रिश्तों के बारे में बताते थे। खासबात यह थी दोनो पुराने मित्र लालजी टंडन जी और विनोद भाई साब बहुत अच्छे मेजबान थे और मेहमानों की खातिरदारी दिल से करते थे।
मेरे पिता बिशन कपूर भी विनोद भाईसाब को बहुत मानते थे। जब भी वे चौक जाते थे तो विनोद भाईसाब से मिलकर आगे बढ़ते थे। मुझे याद है जब मेरे पिता को ब्लड कैंसर हुआ तो मेडिकल कॉलेज में रहना पड़ा। उस दौर में विनोद भाईसाब नियमित देखने पहुंचते थे। यह एक दूसरे के प्रति मोहब्बत का रिश्ता था।
यह पुरानी दोस्ती का सबब है जब विनोद भाईसाब का निधन हुआ तो उनके अंतिम संस्कार में आदरणीय लालजी टंडन जी जो उस वक्त बिहार के गवर्नर थे तुरंत पटना से हवाई जहाज से अपने दोस्त की खातिर आए।
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अच्छी बात यह है कि विनोद भाईसाब की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उनके बेटे और हमारे अंशु भैय्या अब घर पर उसी तरह कविता पाठ और शेरों शायरी की नशिस्त आयोजित करतें हैं। हम जब भी घर जाते हैं तो विनोद भाई साब को याद करते है और सोचते हैं जाने कहां गए वो लोग।