डा. रवीन्द्र अरजरिया
मां भारती के वीर सपूतों ने प्रत्येक कालखण्डों में अपनी शौर्यगाथाओं से भावी कर्णधारों को प्रेरणात्मक आत्मविश्वास की थाथी सौंपी। इसी थाथी ने रणबांकुरों को लोकदेव तक के अभिनन्दनीय मंच पर स्थापित कर दिया। वर्तमान में क्षेत्र विशेष के राष्ट्रभक्तों को चिरस्थाई करने की परम्परा तेजी से विकसित हो रही है। संस्कारों के उन्नयन की दिशा में रेखांकित करने योग्य प्रगति हुई है।
वैभवशाली इतिहास के पन्नों में सिमटी किवदंतियों का आकार विकसित होने लगा है। भूभाग की सीमाओं को तोडकर छत्रपति शिवाजी, महाराज छत्रसाल, महारानी लक्ष्मीबाई के साहस को आगे बढाने वाले सुभाषचन्द बोस, चन्दशेखर आजाद, रामप्रसाद विस्मिल, मंगल पाण्डेय जैसे व्यक्तित्यों की जीवनगाथायें आज पूरे देश में ही नहीं बल्कि सात समुन्दर पार भी मातृभूमि के प्रेम की अमिट निशानियां बनी हुईं हैं। इसे विरासत में मिलने वाली मानसिकता का धनात्मक विकास कहना, अतिशयोक्ति न होगा।
विचारों का प्रवाह चल ही रहा था कि ऐतिहासिक स्थल धुबेला के जानेमाने समाजसेवी गोविन्द सिंह के अपनत्व भरे अभिवादन ने हमें चौंका दिया। उनका वही चिरपरिचित अंदाज आज भी बरकरार था। हमने उठकर उन्हें स्नेहिल प्रत्युत्तर दिया। कुशलक्षेम पूछने-बताने के बाद महाराज छत्रसाल की जयंती पर चर्चा चल निकली। उन्होंने बताया कि आगामी छह जून को महाराज की जयंती है। इस अवसर पर मध्यप्रदेश शासन, जिला प्रशासन और स्थानीय आयोजन समिति के संयुक्त तत्वावधान में विरासत महोत्सव के नाम से धुबेला में दो दिवसीय भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।
इस कार्यक्रम को भव्यता प्रदान करने में खजुराहो के पूर्व सांसद जीतेन्द्र सिंह बुंदेला का विशेष योगदान रहा। विगत 03 फरवरी 2019 को जीतेन्द्र सिंह स्वर्गवासी हो गये। हमारा संरक्षक असमय ही हमसे बिछुड गया। इस वर्ष उनकी भौतिक उपस्थिति के बिना विरासत का आयोजन होगा है। कैसे हो पायेगा यह सब उनके सपनों के अनुरूप। गोविन्द सिंह की भावुक होती मनःस्थिति को भांपते हुए हमने उन्हें इस वर्ष से जनप्रिय जीतेन्द्र सिंह स्मृति सम्मान प्रदान करने का सुझाव दे डाला। बुंदेली विरासत को कलम के माध्मय से जन-जन तक पहुंचाने वाले को यह सम्मान दिया जाये ताकि इस दिशा में कलमकारों को आकर्षित किया जा सके। वे गदगद हो उठे।
उन्होंने बताया कि महाराज छत्रसाल के बडे भाई बलदिमान के वे वंशसूत्र हैं। बडे भाई ने त्याग की मिशाल कायम करते हुए स्वयं ही अपने छोटे भाई छत्रसाल का महाराज के रूप में राज्याभिषेक किया था। अपने पूर्वजों का मातृभूमि के प्रति समर्पण वर्णित करते-करते वे अतीत की गहराइयों में खो गये। हमने उन्हें वर्तमान में लाने का जतन करते हुए शौर्य के प्रतीत बलदिमान स्मृति पुरस्कार की स्थापना करने का भी सुझाव दिया। अब उनकी भावुकता चरम सीमा पर थी। तभी उन्हें याद आया कि विरासत महोत्सव के आयोजन की रूपरेखा को अंतिम रूप प्रदान करने हेतु जिला प्रशासन के साथ विचार विमर्श करना है।
उन्होंने हमें भी साथ चलने का अधिकार सहित आमंत्रण दिया। हमें साथ जाना ही पडा। कलेक्टर मोहित बुंदस के साथ महोत्सव पर केन्द्रित बातचीत का सिलसिला चल निकला। प्रेरणादायक व्यक्तित्यों की जीवन्त शैली को अनुकरणीय बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए मोहित बुंदस ने कहा कि हमने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए महाराज छत्रसाल की जयंती पर्व पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा कर दी है। छत्रसाल की जीवनगाथा, धुबेला की स्मारकों और बुंदेली संस्कृति ने हमें खासा प्रभावित किया है।
उनकी बात को बीच में ही रोककर हमने महाराज छत्रसाल के व्यक्तित्व और कृतित्वों के प्रभावित करने वाले कारकों को रेखांकित करने की बात कही। विभिन्न शोधों से निकलकर आने वाले अनेक कथानकों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रभक्ति का अभिनव उदाहरण हैं महाराज छत्रसाल। बुंदेलखण्ड के जनक की संघर्ष कहानियां आज भी मातृभूमि से प्रेम करने वालों को नई ऊर्जा प्रदान कर रहीं हैं। वास्तविकता तो यह है कि इस पावन धरा पर कार्यभार ग्रहण करने के पहले से ही हम महाराज छत्रसाल के साहस, समर्पण और शार्य से बेहद प्रभावित थे।
यह हमारा सौभाग्य है कि जननी जन्म भूमि के प्रति समर्पण की नई दास्तां लिखने वाले की जयंती पर्व पर हमारी सक्रिय भागीदारी दर्ज हो रही है। उनके शब्द कुछ क्षणों के लिए ठहर गये। हमें उनके वक्तव्य में अभिनव उदाहरण हैं, कहा जाना बेहद गहराई तक की सोच को प्रस्तुत करता दिखा। अतीत का थे, नहीं कहा गया। वर्तमान का है, कहा गया यानी जीवन्त प्रेरणा का चिरस्थायित्व पूरी तरह से परिलक्षित हो गया। ईमानदाराना बात तो यह है कि अतीत के सार्थक संदर्भ वर्तमान में भी पूरी तरह से प्रासांगिक हैं जिन्हें देश, काल और परिस्थितियों के साथ अंगीकार किया जाना चाहिए।
हमारी आपसी बातचीत किसी नये मुकाम पर पहुंचती तभी हमारे मोबाइल की घंटी ने व्यवधान उत्पन्न कर दिया। फोन पर हमें पूर्व निर्धारित स्थान पर निर्धारित दायित्वों की पूर्ति हेतु पहुंचने का स्मरण कराया गया। हमने इस विषय पर फिर कभी विस्तार से चर्चा करने का आश्वासन देकर गोविन्द सिंह और मोहित बुंदस से अनुमति मांगी। पहले से हमारे मस्तिष्क में चल रहे विचारों का लगभग समाधान मिल गया था। इस बार बस इतना ही।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है यह उनके निजी विचार है।)