Friday - 25 October 2024 - 6:56 PM

ऐसे नियंत्रित होगा टिड्डी दल का भयानक संकट

प्रोफेसर रवि कांत उपाध्याय

टिड्डी यानी लोकस्ट (डेजर्ट हॉपर) एक प्रवासी कीट है जो ऐक्रिडाइइडी परिवार के ऑर्थाप्टेरा गण का कीट है। रेगिस्तानी टिड्डी दल की प्रमुख जातियाँ हैं, उत्तरी अमरीका की रॉकी पर्वत टिड्डी, मरुस्थलीय टिड्डी स्सटोसरकास ग्रिगरिया, दक्षिण अफ्रीका की भूरी एवं लाल लोकस्टान पारडालिना, तथा नौमेडैक्रिस सेंप्टेमफैसिऐटा, साउथ अमरीकाना और इटालीय तथा मोरोक्को टिड्डी। इनमें से अधिकांश अफ्रीका, ईस्ट इंडीज, उष्ण कटिबंधीय आस्ट्रेलिया, यूरेशियाई टाइगा जंगल के दक्षिण के घास के मैदान तथा न्यूजीलैंड में पाई जाती हैं| सभी टिड्डियां एक ही कीट वंश का हिस्सा हैं| यह कीट कम समय में अधिक तेजी से बढ़ता है| इसका विकास उन स्थानों पर तेजी से होती है जहाँ पर जलवायु में परिवर्तन होता रहता है| टिड्डी जब अकेली होती है तो उतनी खतरनाक नहीं होती है। लेकिन, बड़े झुंडों में इनका व्यवहार बदल जाता है तथा इनका रवैया बेहद आक्रामक हो जाता है, और फसलों को बड़ा नुकसान होता है| खतरनाक ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों से आया टिड्डी दल जिनमें उड़ने की अधिक क्षमता है, बड़े झुंडों में चलते हैं जिससे फसलों को बड़ा नुकसान होता है। इन प्रवासी टिड्डियों की उड़ान दो हजार मील तक पाई गई है।

टिड्डी प्रजनन के अनुकूल है मौसम

अभी देश में जो मौसम की स्थिति बनी हुई है उसके अनुसार इनके प्रजनन के लिए अनुकूल है। अभी वर्षा के मौसम में जलभराव से टिड्डी के अंडे जमीन में मर जायेंगे परन्तु वयस्क टिड्डी बच जाएगी, मादा टिड्डी रेतीली ऊँची जमीन में अंडे देगी। जो शरद तथा सर्दी के मौसम में सुप्त पड़े रहेंगे तथा मौसम गर्म होने पर वयस्क टिड्डी में बदल जायेंगे। अभी देश की पश्चिम सरहद से टिड्डियों के झुंड लगातार आ रहे हैं। इसका कारण इरान, तुर्की, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिंध में अब भी प्रजनन बहुतायत में हो रहा है। टिड्डी समाप्त करने के लिए समेकित प्रयासों की आवश्यकता है इसके लिए वैश्विक सहयोग से टिड्डी की पैदाइश वाले देशों में ही इसको समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। यह एक देश के नियंत्रण करने से समाप्त नहीं होगा।

टिड्डियाँ की पहचान एवं जीवन चक्र

टिड्डियों का संपूर्ण जीवन काल लगभग 37 से 80 दिनों का होता है। एक मादा टिड्डी तीन बार तक अंडे दे सकती है| मादा टिड्डी मिट्टी में जमीन के अंदर 6-8 इंच गहराई पर कोष्ठ बनाकर अंडे (निक्षेपित) देती है प्रत्येक कोष्ठ में 10-20 अंडे भरे होते हैं। एक टिड्डी 100 से 200 तक अंडे दे सकती है गरम जलवायु में 10 से लेकर 20 दिन तक में अंडे फूट जाते हैं, लेकिन उत्तरी अक्षांश के स्थानों में अंडे जाड़े भर प्रसुप्त रहते हैं। तथा एक छोटा कीट पाँच छह सप्ताह में वयस्क हो जाती है। इस अवधि में निंफ चार से छह बार त्वचा निर्मोचन करता है। वयस्क टिड्डियों में 10 से लेकर 40 दिनों तक में प्रौढ़ता आ जाती है इसके बाद 40 दिन बाद फिर वह छोटा कीट अंडे देने लगता है | शिशु टिड्डी के पंख नहीं होते तथा अन्य बातों में यह वयस्क टिड्डी के समान होती है। शिशु टिड्डी का भोजन वनस्पति है.

टि़ड्डियों को उनके चमकीले पीले रंग और पिछले लंबे पैरों से उन्हें पहचाना जा सकता है। टिड्डी के वृत्तखंडधारी पैरों के तीन जोड़ों में से सबसे पिछला जोड़ा अधिक परिवर्धित होता है। ये दो पैर सबसे लंबे और मजबूत होते हैं। कठोर, संकुचित पंख संम्पुटों के नीचे चौड़े पंख होते हैं। टिड्डियों की दो अवस्थाएँ होती हैं, 1. इकचारी (eclectic) तथा (gregarious) यूथचारी। प्रत्येक अवस्था में ये रंजन, आकृति, कार्यकी और व्यवहार में एक दूसरे से भिन्न होती हैं। एकचारी के निंफ पीले रंग का होता है और इसका प्रतिरूप परिवर्तित होता रहता है। यह पर्यावरण के अनुकूल अपने रंग का समायोजन कर लेता है। यूथचारी के निंफ का रंग काला, पीला और प्रतिरूप निश्चित होता है। इसका काला रंग अधिक विकिरण को अवशोषित करता है जिसके कारण इसका ताप भी ऊँचा होता है, क्योंकि एकचारी के पंख छोटे, पैर लंबे, प्रोनोटम संकीर्ण, शिखा ऊँची तथा सिर बड़ा होता है। यूथचारी के पंख लंबे कंधा चौड़ा, तथा प्रोनोटम जीन की आकृति का होता है।

अवस्था परिवर्तन

यदि यूथ अधिक संख्या वाला और दीर्घकालीन होता है, तो उसमें पलने वाले एकचारी टिड्डी के बच्चे चरम यूथचारी तथा प्रवासी होते हैं। यूथचारी टिड्डी की संतति एकांत में पलती है और एकचारी में परिवर्तित हो जाती है। एकचारी अवस्था इस जाति की स्वाभाविक अवस्था है। जिस क्षेत्र में यह जाति पाई जाती है वहाँ एकचारी अवस्था का अस्तित्व रहता है। जो लहलहाती फसलों को चट कर जाता है टिड्डियां एक ही कीट वंश का हिस्सा हैं

प्राकृतिक आवास

इनके निवास स्थान उन स्थानों पर बनते हैं जहाँ जलवायु असंतुलित होता है और निवास के स्थान सीमित होते हैं। प्रवासी टिड्डी के चार निवास स्थान (उद्भेद स्थल) प्रकार के हैं. पहला कैस्पियन सागर, ऐरेल सागर तथा बालकश झील में गिरने वाली नदियों के बालू से घिरे डेल्टा, दूसरा मरूभूमि से संलग्न घास के मैदान, जहाँ वर्षण में बहुत अधिक विषमता रहती है, जिसके कारण टिड्डियों के निवास स्थान में परिवर्तन होते रहते हैं; तीसरा मध्य रूस के शुष्क तथा गरम मिट्टी वाले द्वीप, जो टिड्डी के लिए नम और अत्यधिक ठंडे रहते हैं। इस क्षेत्र में तभी बहुत संख्या में टिड्डियाँ एकत्र होती हैं जब अधिक गर्मी पड़ती है तथा चौथा फिलिपीन के अनुपयुक्त, आर्द्र तथा उष्ण कटिबंधीय जंगलों को समय-समय पर जलाने से बने घास के मैदान। लोकस्टा माइग्रेटोरिया नामक यह टिड्डी एशिया तथा अफ्रीका के देशों में फसल तथा वनस्पति का नाश कर देती है।

 

कहाँ से आती हैं टिड्डी

मरुभूमि टिड्डियों के झुंड, ग्रीष्म मानसून के समय, अफ्रीका से भारत आते हैं और पतझड़ के समय ईरान और अरब देशों की ओर चले जाते हैं। इसके बाद ये सोवियत एशिया, सिरिया, मिस्र और इजरायल में फैल जाते हैं। इनमें से कुछ भारत और अफ्रीका लौट आते हें, जहाँ दूसरी मानसूनी वर्षा के समय प्रजनन होता है। मुख्यतः अभी टिड्डी दल पाकिस्तान से लगातार आ रहा है जिससे हजारों हेक्टेयर की फसलें बरबाद हो गई है | विगत दो वर्षों से पाकिस्तान के रास्ते देश में आई टिड्डियों के दलों ने सरहदी राज्य राजस्थान, पंजाब और गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश, व उत्तर प्रदेश में फसलों को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है|

जलवायु परिवर्तन है इनकी अधिक प्रजनन का कारण

टिड्डियों का विकास उन स्थानों पर तेजी से होता है जहाँ पर जलवायु में परिवर्तन होता रहता है | सर्दी शुरू होने के बावजूद टिड्डियों का कहर बना हुआ है, ऐसा जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम का बदलाव है, उससे टिड्डियों को गुजरात में ठहरने का अधिक मौका मिल गया है। इस बार गुजरात में बारिश की शुरुआत देरी से हुई है, जबकि राजस्थान में जहां टिड्डियां सक्रिय थी, वहां मौसम ठंडा हो गया, जबकि बारिश न होने के कारण गुजरात का मौसम गर्म था, इस कारण ये टिड्डियां गुजरात में प्रवेश कर गई। अभी देश में जलवायु अनुकूल होने के कारण टिड्डियों में प्रजनन और विकास तेजी से हो रहा है तथा नए संतति झुंड पैदा रहे हैं।

गंगा के मैदानी इलाके में फसलों एंव वनस्पति पर हमला

भारत एक कृषि प्रधान देश है। तथा अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है। टिड्डी ने खरीफ की फसलें खराब करने के बाद, अब रबी की फसल को भी खराब कर सकता है। रेगिस्तानी टिड्डी दल ने गंगा के मैदानी इलाके में 7 लाख हेक्टेयर में उगाए गए फसलों एंव वनस्पति को टिड्डियों ने चट कर दिया है। गंगा के मैदान दुनिया की सबसे उर्वर भूमि है। हिमालय से निकलने वाली नदियों के कारण यह क्षेत्र साल भर हरा भरा रहता है टिड्डी दल ने भारत में पाकिस्तान की तरफ से प्रवेश किया तथा टिड्डी दल से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य हैं राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, और हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक। टिड्डी का हमला राजस्थान के गंगानगर से शुरू हुआ. इसके बाद इसने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में किसानों की फसलों में भारी तबाही मचाई है टिड्डियों से राजस्थान के लगभग 20 जिले, मध्य प्रदेश में 9, गुजरात में 2, महाराष्ट्र में 3, पंजाब में 5, और हरियाणा 4, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश 3, तेलंगाना में 1 और कर्नाटक 2 जिले प्रभावित हुए हैं। राज्यों के कृषि विभागो के अनुसार टिड्डियों ने करीब 7 लाख हेक्टेयर में उगाए गए फसलों को नष्ट कर दिया है।

टिड्डी दल का अगला हमला झांसी, ललितपुर, इटावा, उन्नाव, कानपुर देहात, आगरा, अलीगढ़, फ़िरोज़ाबाद, मैनपुरी, महामाया नगर (हाथरस), मऊ, मथुरा, बुलंदशहर, बागपत, फ़र्रूखाबाद, चित्रकूट, बाँदा, जालौन, इलाहाबाद, फ़तेहपुर, अंबेदकर नगर, बाराबंकी, गोंडा बस्ती, गोरखपुर, महाराजगंज में घुसा फसलों को नुकसान पहुंचाया हैं।

यह भी पढ़ें : काम की कविताई तो उर्मिलेश की है

यह भी पढ़ें : आईसीडीएस में कुछ तो गड़बड़ है …

यह भी पढ़ें : डीएम साहब जेल पहुंचे तो बदल गई इस बच्ची की किस्मत

यह भी पढ़ें : क्या अर्थव्यवस्था को गांवों से मिलेगी रिकवरी

टिड्डियों के दल ने महाराष्ट्र के भंडारा जिले की तुमसर तहसील के सोंडया गांव हमला किया फिर टिड्डी दल ने पूर्वी महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश के बावनथड़ी नदी को पार कर बालाघाट जिले में प्रवेश कर गया। इसके बाद टिड्डी दल ने नागपुर, और अमरावती, औरंगाबाद में हमला किया। हिमाचल प्रदेश में चार जिलों कांगड़ा, ऊना, बिलासपुर और सोलन में टिड्डियों के दल ने फसलों को नष्ट कर रहा है। पिछले साल पाकिस्तान से आई टिड्डियों ने कच्छ, बनासकांठा, पाटण जिले में 19 हजार से ज्यादा हेक्टर खेतों में खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाया था।

दुनिया के बड़े भौगोलिक क्षेत्र में गंभीर खाद्य संकट पैदा हो सकता है

टिड्डियों के हमले अफ्रीका और एशिया के 30 देशों में फैलने के कारण खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो गया है, यह विपत्ति केवल एक सीमित क्षेत्रीय समस्या नहीं एक वैश्विक समस्या है इस आपदा ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में व्यापक चिंता पैदा कर दी है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक टिड्डी संकट पश्चिम अफ्रीका से पूर्वी अफ्रीका और पश्चिम एशिया से दक्षिण एशिया तक 20 से अधिक देशों में फैल चुका है। इसका कुल प्रभावित क्षेत्र 1.6 करोड़ वर्ग किमी से भी अधिक है। रेगिस्तानी टिड्डियों ने अपने सीमा पार प्रवास के दौरान लाखों हेक्टेयर वनस्पतियों को खा लिया है जो प्रभावित क्षेत्रों में पहले से ही असुरक्षित खाद्य सुरक्षा स्थितियों को बढ़ा रही हैं। अनाज का उत्पादन घट रहा है तथा आर्थिक स्थिति में भारी गिरावट दर्ज की गई है। कीट विज्ञानियों का कहना है कि अगर नियंत्रण के लिए समुचित उपाय नहीं किए गए तो आगामी छह माह में रेगिस्तानी टिड्डियों की संख्या 500-600 गुना तक भी बढ़ सकती है। साथ ही इसके अफ्रीका और एशिया के 30 देशों में फैल सकती है। भारत को वैश्विक सहयोग के साथ टिड्डी की पैदाइश वाले देशों में ही इसके खात्मे का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि एक बार देश में घुसने के बाद इस पर नियंत्रण पाना आसान नहीं होता। पिछले पच्चीस वर्षों में यह टिड्डियों का सबसे बड़ा हमला है

कीटनाशकों के द्वारा नियंत्रण एवं प्रबंधन

टिड्डियों छोटा समूह उतना खतरनाक नहीं होता है परन्तु संख्या बढ़ने पर झुंड का व्यवहार असामान्य हो जाता है। टिड्डी दलों पर नियंत्रण पाने के लिए हवाई जहाज से विषैली औषधियों का छिड़काव करने से मारा जा सकता है। क्रॉप डस्टर और अग्निशमन टैंकर से भी जहरीले रसायनों का छिड़काव कर टिड्डियों का सफाया किया जा सकता है। धान की भूसी को 100 कि.ग्रा, 0.5 कि.ग्रा फेनीट्रोथीयोन और 5 कि.ग्रा गुड़ के साथ मिलाकर खेत में डालने से टिड्डी दल को आगे बढ़ने से रोका सकता है। बेंजीन हेक्साक्लोराइड के विलयन में भीगी हुई गेहूँ की भूसी का फैलाव भी उपयोगी होता है। टिड्डियों को पानी और मिट्टी के तेल से भरी बाल्टी वर्तन में गिराकर नष्ट करना, अंडों को पानी में डुबाकर नष्ट किया सकता है। खेत में फसल कट जाने के बाद खेत की गहरी जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर चलाकर टिड्डियों के अंडों को नष्ट किया जा सकता है।

प्रजनन क्षेत्रों का उन्मूलन

टिड्डियों के अंडे जमीन में मेलाथियोन या क्विनालफॉस को मिलाकर छिड़कने से मर जाते हैं। यह टिड्डी प्रभावित इलाके में इनकीटों के प्रजनन क्षेत्रों के उन्मूलन में सहायक होता है। परंपरागत रूप से, गन्ने की कटाई के बाद खेतों को पूरी तरह जला दिया जाता है ताकि कीटों या उनके अण्डों को नष्ट किया जा सके। टिड्डी संक्रमित खेतों को पूरी तरह जला दिया जाता है, ताकि कीटों के प्रसार को प्रभावी रूप से रोका जा सके जहरीला चारा टिड्डियों की आबादी को नियंत्रित करने में सहायक होता है। घरों में टिड्डी को पकड़ने के लिए जालों का प्रयोग किया जाता है । आकाशीय धूमन प्रक्रिया टिड्डी संरचना को ढंकने या वायुरुद्ध सीलबंद करने के बाद वहां घातक सांद्रता वाली जहरीली गैस को लंबी अवधि (24 से 72 घंटे) के लिए छोड़ा जाता है।

(लेखक जंतु विज्ञान विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर मे प्रोफेसर हैं )

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com