धीरेन्द्र अस्थाना
लखनऊ। शहर को स्वच्छ और सुंदर बनाने का जिम्मा जिसके सिर पर है, वहां कर्मचारी तेल में खेल करने से बाज नहीं आ रहे है। पिछले कई सालों से कर्मचारियों को तेल चोरी करने की लत लग चुकी है।
चोरी को रोकने के लिए तमाम जतन किये गये, पर कारगर एक भी साबित नहीं हुये। नतीजतन, शहर की तमाम व्यवस्थाएं चौपट होने के कगार पर है। जो सपने शहर को संजोने के लिए देखे गए थे वो अब चूर हो चुके है।
लखनऊ नगर निगम ने करीब दो पहले तेल चोरी रोकने के लिए जीपीएस सिस्टम लगवाने का दम भरा था, जो अब लग रहा है? निगम के आंकड़ों के अनुसार छोटी- बड़ी कुल मिलाकर करीब 650 से ज्यादा गाड़ियां हैं, लेकिन अब तक जीपीएस कितने में लगे और कितने में नहीं इसकी खबर खुद आलाधिकारियों के पास नहीं हैं। मजे की बात ये है कि जब अधिकारियों के पास इसकी जानकारी नहीं है तो ये भी कहना गलत नहीं होगा कि कितने वाहनों में जीपीएस कार्य कर है?
सवाल ये भी खड़ा होता है कि आखिर इतना खर्चा करने के बाद भी नगर निगम सभी वाहनों को जीपीएस से जोड़ नहीं पाया है, जिसका नतीजा ये है कि आये दिन वाहनों से वाहन चोरी होने की घटनाएं सामने आ रही है। यदि समय रहते जीपीएस सिस्टम सभी गाड़ियों में नहीं चलता है तो चोरी की घटनाओं से नही बचा जा सकता और इसका सीधा असर आम आदमी को भुगतना पड़ता है।
सूत्रों की मानें तो वाहन चालक खुलेआम केन्द्रीय कार्यशाला के आसपास ही गाड़ी खड़ी कर तेल चोरी कर रहे हैं। यदि समय रहते इन पर लगाम लगाई जाती तो तेल का खेल कब का बंद हो चुका होता?
पिछले साल ही पुलिस ने गोमती नगर में नगर निगम के कई कर्मचारियों को गाड़ियों से तेल चोरी करके बेचते पकड़ा था। एफआईआर भी दर्ज हुई थी, लेकिन उसके बाद भी कर्मचारी अपनी हरकतो से बाज नहीं आये।
जीपीएस पर सवाल न उठे उसके लिए निगम प्रशासन तेल चोरी के मामले को अक्सर दबाता रहा है। चोरी के इस खेल में केन्द्रीय कार्यशाला के कर्मचारियों की मिलीभगत रहती है। इसके चलते ही ये थमने का नाम नहीं ले रहा है। जब- जब तेल के सौदागर पकड़े गये है तब- तब निगम पर सवाल खड़े हुए है। ऐसे में निगम द्वारा तेल चोरी रोकने के लिए उठाए गये कदम पर सवाल उठना लाजिमी है।
आधे पर शिकंजा, बाकियों पर मेहरबानी
लगातार तेल चोरी पकड़े जाने के बाद कर्मचारियों पर कार्रवाई भी हुई। उनको नौकरी से निकाला गया, लेकिन वो बाज नहीं आ रहे हैं। इसको देखते हुए निगम प्रशासन ने बीते साल नया जीपीएस सिस्टम गाड़ियों में लगाने का आदेश किया था।
एक निजी कंपनी को यह काम दिया गया है, लेकिन तेल चोरी करने वालों के विरोध और उनकी मजबूत पहुंच के कारण यह काम पूरा ही नहीं हो पाया और तेल में खेल पहले की तरह चल रहा है।
दावों की खुल रही पोल
नया जीपीएस सिस्टम लगाने का आदेश करते समय अफसरों ने दावा किया था कि अब यह भी पता चलेगा कि कितनी देर गाड़ी चली, कितने किलोमीटर चली। कितनी देर इंजन चालू रहा है और कितनी देर बंद रहा। इस सिस्टम से ये भी पता चलने का दावा किया गया था कि कितनी देर गाड़ी स्टार्ट में खड़ी रही और कितनी देर इंजन बंद होने पर।
टैंक में कितना तेल भरा गया था उसमें से कितना खर्च हुआ और कितना बचा। उसकी ऑनलाइन जानकारी नगर निगम के कंट्रोल मॅानीटर पर आती रहेगी। जिससे तेल चोरी आसान नहीं रहेगी, लेकिन यह सब हवा-हवाई साबित हो चुका है।