विवेक अवस्थी
यह कहानी 1953 की बॉलीवुड फिल्म – “दो बीघा ज़मीन” की याद दिलाती है, जिसका निर्देशन बिमल रॉय ने किया था। फिल्म रवींद्रनाथ टैगोर की बंगाली कविता “दुई बीघा जोमी” पर आधारित थी, जिसमें बलराज साहनी और निरूपा रॉय मुख्य भूमिकाओं में थे। बलराज साहनी ने शंभु का किरदार निभाया, जिसके पास दो बीघा जमीन थी, जो उसके परिवार के लिए आजीविका का एकमात्र साधन है।
जमींदार ने कुछ बड़े व्यापारियों के साथ अपनी जमीन पर एक मिल का निर्माण करने के लिए समझौता किया , लेकिन समस्या केवल यह थी कि बीच में थी शंभु की दो बीघा जमीन, और शंभू के लिए असल संघर्ष यहीं से शुरू हुआ।
छह दशक से अधिक समय बीतने के बाद, कहानी अभी भी वही है लेकिन इस बार सवाल में कुछ दर्जन-भर किसान हैं, जिनके पास सामूहिक रूप से लगभग 2.5 एकड़ जमीन है। यह स्थान उत्तर प्रदेश में जिला कन्नौज का जेहनवा गाँव है और फिल्म के जमींदार की भूमिका अब वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों द्वारा निभाई जा रही है, जो भारत के एक शीर्ष कारपोरेट समूह के इशारे पर काम कर रहे हैं।
कई किसान, जो स्पष्ट रूप से वरिष्ठ जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों की ताकत के डर रहे हैं , इस मुद्दे पर परेशान हैं । कुछ अन्य दूसरे नाम न छपने की शर्त पर आरोप लगाते हैं कि उन्हें देश के शीर्ष कारपोरेट समूह को अपनी जमीन न बेचने पर पुलिस और जिला प्रशासन द्वारा गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई है।
यह वास्तव में अजीब है कि जिला प्रशासन इस प्रमुख समूह के लिए एक दबंग शक्तिशाली संपत्ति डीलर की तरह क्यों व्यवहार कर रहा है ? दलालों की तरह व्यवहार करने वाले वास्तव में सरकारी कर्मचारी और अधिकारी हैं जो राज्य सरकार से अपना वेतन लेते हैं, लेकिन वे ऐसा व्यवहार करते दिखते हैं मानो उनका वेतन और भत्ता भारत के इस शीर्ष कारपोरेट समूह से आता है और उनकी रिपोर्टिंग भी एक बड़े औद्योगिक समूह के पास ही है ।
एक किसान, दविंदर कुमार ने पत्रकारों से बात करने की हिम्मत दिखाई। कुमार कहते हैं, – कंपनी जमीन की मांग कर रही थी और एक बार हमने इनकार कर दिया था, इसके बाद प्रशासन के अधिकारियों ने हमारी ओर कंपनी की तरफ से दबाव बढ़ाया। लेकिन अगर अधिकारी हमारे ऊपर दबाव डालेंगे, तो हम उनकी मांग को पूरा नहीं करेंगे। लेखपाल ने हमें बताया कि वह डीएम के आदेशों के तहत काम कर रहा था।
दविंदर कुमार की शिकायत है की मुख्यमंत्री को कंपनी के प्रतिनिधियों और राज्य सरकार के अधिकारियों की इस कार्यशैली का संज्ञान लेना चाहिए। उनका कहना है कि यदि कोई कंपनी या कोई फर्म किसानों से जमीन चाहती है, तो कंपनी के प्रतिनिधियों को प्रशासन और पुलिस के माध्यम से दबाव बनाने की कोशिश करने के बजाय उनसे बात करनी चाहिए।
कन्नौज जिले के इस गाँव की भूमि का एक बड़ी निजी कंपनी द्वारा गोदाम के निर्माण के लिए अधिग्रहण किया जा रहा है और इस गोदाम को अनाज के भंडारण के लिए सरकारी संस्था को किराए पर दिया जाएगा ।
कन्नौज के जिला मजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार से जब फोन पर संपर्क किया गया तो उन्होंने इस बात से इनकार किया कि किसी अधिकारी से किसानों को कोई डर है। उन्होंने कहा कि एक निजी कंपनी ने सिलोस बनाने के लिए बड़ी मात्रा में जमीन खरीदी है और कंपनी उन किसानों को सर्किल रेट की दस गुना राशि देने को तैयार है, जिनकी जमीन अभी तक कंपनी ने नहीं खरीदी है। हालांकि, उन्होंने उस कंपनी के नाम को बताने से इनकार कर दिया, जो क्षेत्र में जमीन खरीद रही है और कहा कि “मुझे कंपनी का नाम याद नहीं है”।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मुद्रा फिल्हाल राज्य के भ्रष्ट अधिकारियों पर भारी पड़ रही है । सरकार का कहना है कि पिछले दो वर्षों में, भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति के तहत , राज्य सरकार के 600 अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। जबकि 200 को जबरन सेवानिवृत्ति दी गई, और उत्तर प्रदेश के 400 गलत अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त दंडात्मक कार्रवाई की गई।
यह देखा जाना बाकी है कि अगर सरकारी कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा निजी कंपनियों का पक्ष लेने और किसानों को अपनी जमीन को निजी खिलाड़ियों को बेचने के लिए दबाव डालने का ऐसा स्पष्ट मामला वास्तव में भ्रष्टाचार के मामले के रूप में माना जाता है या फिर यह योगी आदित्यनाथ सरकार के शून्य सहिष्णुता वाली निति में नहीं है !
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और BTVI के वरिष्ठ राजनीतिक संपादक हैं )