डॉ. सी पी राय
जहां तक मैंने कानून और राजनीति शास्त्र पढते हुये जाना है कि संविधान की व्यव्स्था में राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह पर काम करता है, वो मंत्री परिषद के किसी प्रस्ताव को पुनर्विचार के लिये भेज सकता है परंतु दुबारा प्रस्ताव आने पर मानने को बाध्य है और अपनी मर्जी से लम्बे समय तक कोई प्रकरण लम्बित नही रख सकता है ।
लेकिन राज्यपाल का पद , उस पर बैठने वाले लोग हल्का करते जा रहे है जिससे अब ये मांग उठेगी की जनता द्वारा चुनी गयी सरकार को काम न करने देने वाले और कुलपतियों की नियुक्ति मे आरोपित होने वाले राज्यपालों की जरूरत ही क्या है ।
महाराष्ट्र में सत्ता द्वारा एमएलसी मनोनयन लम्बे समय से लम्बित है जिसके कारण उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री बने रहना मुश्किल हो सकता है। वैसे वो इस्तीफा देकर 24 घंटे मे फिर शपथ ले सकते है पूरे मंत्रिमंडल के साथ जो एक तमाशा भी बनेगा और एक नये विवाद को जन्म देगा।
इसी तरह तमिलनाडु सरकार नया बिल लेकर आई है जिसमें विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त करने का अधिकार सरकार मे निहित हो जायेगा ।
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राष्ट्रपति और राज्यपाल राजनीति से ऊपर और बड़े सम्मान का पद रहा है और दोनों अलग-अलग स्तर पर अलग कारणों से संविधान में बनाये गये हैं।
दोनों को कुछ शक्तियां दी गयी है तो दोनों को जनता द्वारा चुनी गयी सरकार की सलाह पर ही काम करने वाला बनाया गया है ।
राजनीतिक और संवैधानिक संकट के समय दोनों अपनी संविधान प्रदात्त शक्तियों का उपयोग करते है पर उसमे संविधान की मंशा , मर्यादा तथा स्थापित परम्पराओं की नैतिक बाध्यता भी निहित है।
राज्यपालों ने राजनीति करना शुरु किया और सारी नैतिकता और संविधानिक मर्यादा ताक पर रख दिया तो बोमई का मामला कानून के सम्मुख गया और आगे के लिये एक नजीर बन गयी की विधानसभाओं मे बहुमत का मामला राजभवन में नही बल्कि विधानसभा के फ्लोर पर ही तय होगा।
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राज्यपालों को भी यदि इसी संस्था को सम्मान और लोकतांत्रिक विश्वास के साथ कायम रखना है तो ये समझना ही होगा और राज्यपालों को निर्देशित करने वालों को भी जो किसी न किसी समय खुद भी भुक्तभोगी रहे है, अपने आचरण और अति सक्रिय राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाना ही होगा और समझना ही होगा की संविधान के निर्माताओं द्वारा गहन मन्त्रणा से बनायी गयी संस्थाए लोकतंत्र को परिपक्व और मजबूत बनाने के लिये बनायी गयी है।
इस उद्देश्य को अगर मानते है तथा लोकतंत्र मे यदि यकींन करते है तो इन संस्थाओं से छेड़छाड़ बंद कर इन्हें स्वतंत्र रखते हुये मजबूत करना ही होगा ।