कृष्णमोहन झा
देश में लगभग तीन हफ्तों से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में रोजाना ही बढोत्तरी हो रही है और अब दिल्ली में तो यह तो स्थिति आ गई है कि डीजल की कीमत पेट्रोल से अधिक हो चुकी है। यह अभूतपूर्व स्थिति है। इसके पहले डीजल के दाम पेट्रोल से आगे शायद ही कभी निकले हों।
एक समय ऐसा भी था जब डीजल और पेट्रोल के प्रति लीटर मूल्य में तीस रु का अंतर था यह वर्ष 2012 की बात है। जब केंद्र में संप्रग सरकार थी और तब पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण हुआ करता था परंतु संप्रग सरकार ने ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार के हिसाब से पेट्रोल की कीमतें तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को दे दिया।
वर्ष 2014 में डीजल की कीमत तय करने का अधिकार भी तेल कंपनियों को दे दिया गया। इसके पीछे सरकार की यह मंशा थी कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढोत्तरी के लिए उसे जिम्मेदार न ठहराया जा सके।
वैसे सरकार के इस फैसले का एक उद्देश्य यह भी था कि जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें घटेंगी तो भारतीय तेल कंपनियां भी उसी अनुपात में देश के अंदर भी पेट्रोल और डीजल के दाम कम करके उपभोक्ताओं को उसका लाभ पहुंचाएंगी परंतु पिछले वर्षों में ऐसे अवसर कम ही आए हैं जब तेल कंपनियों ने अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में गिरावट का भरपूर लाभ उपभोक्ताओं को पहुंचाया हो ।
यह समझने के लिए ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है। कोरोना वायरस के प्रकोप को काबू में करने के लिए जब दुनिया के अधिकांश देशों में लाक डाउन चल रहा था तब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतेंअत्यंत निचले स्तर पर आ गई थीं। इस स्थिति को देखते हुए भारतीय तेल कंपनियों ने 15 मार्च के बाद पेट्रोल डीजल के मूल्यों की समीक्षा ही बंद कर दी।
लेकिन जून के पहले सप्ताह में जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतो में फिर उछाल आया तो देश की तेल कंपनियों ने फिर कीमतों की दैनिक समीक्षा प्रारंभ कर दी और देश के विभिन्न राज्योंमें पेट्रोल डीजल के दानें में उछाल आना शुरू हो गया पर यह कल्पना किसी को नहीं थी कि एक दिन डीजल की कीमत पेट्रोल से अधिक हो जाएगी।
दरअसल ऐसा इस कारण हुआ क्योंकि केंद्र सरकार ने लाक डाउन की अवधि में पेट्रोल से अधिक एक्साइज ड्यूटी डीजल पर बढाई। डीजल पर 16 रु और पेट्रोल पर 13रु ड्यूटी लगाने से बाजार में डीजलऔर पेट्रोल के दाम लगभग एक ही स्तर पर आ गए लेकिन इस मूल्य वृद्धि से रोजमर्रा की जीवनोपयोगी वस्तुओं की कीमतें भी बढना तय है जिसके फलस्वरूप गरीब और मध्यम आय वर्ग की तकलीफों जो इजाफा होगा उसकी किसी को कोई परवाह नहीं है।
केंद्र और राज्य सरकारों ने मौन साध रखा है। जनता को इस मुसीबत में थोड़ी भी राहत प्रदान करने के लिए दोनों में से कोई पहल हेतु तैयार नहीं है। कोरोना संक्रमण के कारण काफी समय तक आर्थिक गतिविधियों के ठप पड़े रहने से गरीब और अल्प आय वर्ग के लोगों की कठिनाइयों में पहले ही इतना इजाफा हो चुका है कि अब उनका जीवन दूभर हो गया है।
पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हो रही बेतहाशा वृद्धि से लोगों को होने वाली कठिनाईयों का अहसास तो केंद्र और राज्य सरकारों को भी है परंतु उनके लिए आमदनी बढ़ाने का सबसे आसान उपाय हमेशा से यही रहा है कि पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी और वैट की दरों में बढोत्तरी कर दी जाए।
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यह सिलसिला पिछले कई सालों से चला आ रहा है कि पहले तो सरकारें पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर लगातार हो रही मूल्यवृद्धि पर मौन साधे रहती हैं और जब मूल्यों में काफी इजाफा हो चुका होता है तो बाद में थोड़ी सी राहत प्रदान करने की पहल की जाती है लेकिन ऐसी स्थिति यदा कदा ही आती है कि पेट्रोल और डीजल के दाम अपने उस स्तर पर वापस जाएं जहां से उनके बढने का सिलसिला प्रारंभ हुआ था।
केंद्र और राज्य सरकारों के पास अपने अपने तर्क हैं जो जनता के गले नहीं उतरते लेकिन जनता को यह तो मालूम ही है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में आश्चर्यजनक गिरावट आने पर भी देश के अंदर उसी अनुपात में पेट्रोल और डीजल के दाम कभी नहीं घटाए जाते लेकिन जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में उछाल आता है तो भारतीय तेल कंपनियां सारे घाटे की पूर्ति के लिए पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढोत्तरी करने में कोई देर नहीं करतीं।
दरअसल सरकार तेल कंपनियों पर दबाव बनाना भी नहीं चाहती क्योंकि तेल पर एक्साइज ड्यूटी उसकी आमदनी का महत्व पूर्ण जरिया है। जब केन्द्र सरकार एक्साइज ड्यूटी बढाती है तो राज्य सरकारों को भी पेट्रोल और डीजल पर वैट की दरों में बढोत्तरी करने का एक बहाना मिल जाता है। यह सिलसिला निकट भविष्य थमने के कोई आसार नहीं है।
पेट्रोल और डीजल को उन वस्तुओं में शामिल नहीं किया गया है जो जी एस टी के दायरे में आती हैं इसलिए सभी राज्यों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भी कोई समानता नहीं है। जबसे केंद्र सरकार ने भारतीय तेल कंपनियों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों के अनुसार देश के अंदर तेल की कीमतें तय करने की छूट प्रदान की है तब से ही पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफे का सिलसिला कुछ इस तरह प्रारंभ हुआ है कि तेल की कीमतों का गणित लोगों की समझ के बाहर की बात हो गई है।
जब तेल कंपनियां रोजाना ही पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा करती हैं तो सरकार यह तर्क देकर पूरे मामले से पल्ला झाड़ा लेती है कि उसके हाथ में कुछ नहीं है क्योंकि जो कुछ करना तेल कंपनियों को करना है और तेल कंपनियों पर उसका नियंत्रण नहीं है मगर जब चुनाव का समय आता है तो महीने दो महीनों के लिए आश्चर्यजनक रूप से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढोत्तरी का यह सिलसिला अचानक थम जाता है और चुनाव परिणामों की घोषणा होते ही वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होने लगती है।
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सरकार भले ही ईंधन की कीमतों में बढोत्तरी होने में अपना कोई हाथ न होने का तर्क देकर यह मान ले कि जनता को अपने तर्क से संतुष्ट करने में उसे सफलता मिल गई है परंतु ऐसा मान लेना सरकार की गलत फ़हमी भी हो सकती है। सरकार इस बात से कैसे इंकार कर सकती है कि केंद्रीय स्तर पर पेट्रोल और डीजल पर लगाई जाने वाली एक्साइज ड्यूटी और राज्य सरकारों द्वारा लगाया जाने वैट की पेट्रोल और डीजल की कीमतों के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
अगर केंद्र और राज्य सरकारें एक्साइज ड्यूटी और वैट की दरों में कमी कर दें तो उपभोक्ताओं को राहत मिल सकती है परंतु केंद और अधिकांश राज्य सरकारों द्वारा ऐसा कोई त्याग करने के अवसर कम ही आते हैं। नतीजतन उपभोक्ता के सामने मन मसोस कर रह जाने के अलावा और दूसरा कोई रास्ता नहीं बचता।
यहां यह भी विशेष गौर करने लायक बात है कि हमारे यहां पेट्रोल और डीजल की लगातार बढती कीमतों से आम जनता और किसानों की तकलीफें बढना तय है। पेट्रोल की मूल्य वृद्धि से जहां उपभोक्ता की जेब ढीली होगी वहीं डीजल के दामों हो रही अंधाधुंध बढोत्तरी से जो परिवहन लागत बढेगी उसे ध्यान में रखते हुए ट्रांसपोर्टर भाडा बढ़ाने की घोषणा कर चुके हैं।
आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस का कहना है कि माल की डिलीवरी में तीन चार दिन लगते हैं और आज की स्थिति तो यह है कि रोजाना ही डीजल के दाम बढ़ रहे हैं इसलिए ट्रांसपोर्टर यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वे भाडा किस तरह तय करें। डीजल के दाम बढने से किसानों की मुश्किलों में भी इजाफा होना तय है। कृषि कार्यों में डीजल की बहुत खपत होती है।
डीजल के दाम बढने के बाद किसानों की ओर से भी राहत की मांग उठने लगी है। किसानों के प्रति संवेदनशील होने का दावा करने वाली सरकारें अब इ स मामले में ज्यादा दिनों तक उदासीन रुख नहीं अपना सकतीं पेट्रोल और डीजल की मूल्य वृद्धि की समस्या इतनी जटिल हो चुकी है कि अब सरकार का हस्तक्षेप आवश्यक प्रतीत होने लगा है।
देखना यह है कि सरकार को कब ऐसा महसूस होता है तेल कंपनियों को पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत तय करने का अधिकार सौंपने का जो फैसला अतीत में किया गया था उस पर अब पुनर्विचार का समय आ गया है।
(लेखक ifwj के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना समूह के सलाहकार है)