Tuesday - 29 October 2024 - 6:55 AM

माफियाओं को लेकर रहमदिल है सरकार

केपी सिंह 

राजा कभी गलत नही होता। निरंकुश राजशाही के समर्थन में गढ़े गये इस मुहावरे में योगी सरकार की निष्ठा सोनभद्र नरसंहार के मामले में फिर प्रखरता से झलकी है। खूंखार ढंग से कई दशक से आदिवासियों द्वारा जोती जा रही जमीन पर कब्जे का साहस उनके कार्यकाल में किया गया। जिसकी स्तब्धकारी परिणति लगभग एक दर्जन मौतों और दो दर्जन लोगों के गंभीर रूप से घायल होने के बतौर हुई।

कानून व्यवस्था की धमक होती, चुस्त-दुरुस्त प्रशासनिक तंत्र रहता तो क्या ऐसा होना संभव था। ऐसा न होने की जिम्मेदारी आखिर मौजूदा सरकार पर ही डाली जायेगी।

बेहतर होता कि इससे सबक लेकर राज्य सरकार अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए गंभीर होती पर खुद की चूंक महसूस करना सिंहासन पर बैठकर अपने को ईश्वर का अवतार समझने की मानसिकता से ग्रसित होने के कारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए संभव नही है जबकि ऐसा होने से सरकार अपने मे सुधार लाकर अपनी छवि को भविष्य में बेहतर कर सकती है।

अवैध कब्जों से पीडि़त भाजपाइयों का भी दर्द भुलाया

राज्य विधान मंडल के दोनो सदनों में सोनभद्र नरसंहार का मामला जोर-शोर से उठा। विधान परिषद में संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने इस मुददे पर विपक्ष के हमलावर रुख के जबाव में खाली प्लाट हमारा है, समाजवाद का नारा है, की कहावत को सुना दिया जो कि सपा की सरकारों के कार्यकाल को देखकर गढ़ी गई थी।

सपा शासन के अवैध कब्जों को खाली कराना भाजपा ने विधानसभा चुनाव में अपना सर्वोपरि एजेंडा घोषित किया था और सरकार बन जाने के बाद मुख्यमंत्री योगी ने भी शुरूआत में सबसे ज्यादा हुंकार इसी संकल्प को चरितार्थ करने के नाम पर भरी थी। लेकिन क्या उन्होंने इसे कार्य रूप में परिणति किया। वे इस बात का श्रेय ले सकते हैं कि उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से दूसरे की संपत्ति पर अवैध कब्जे के दुस्साहस की घटनाऐं न्यून रह गई हैं।

लेकिन भूमि माफियाओं के खिलाफ अभियान के नाम पर उन्होंने सिर्फ धोखा किया। गांवों में श्मशान और तालाब की जमीन हथियाये छुटभयैयों के खिलाफ अभियान चलाकर उन्होंने अपने भू-माफिया विरोधी पाठ का समापन कर दिया। जबकि सपा के कार्यकर्ताओं ने तमाम जिलों में न केवल आम व्यापारियों और अन्य लोगों बल्कि भाजपा के प्रमुख नेताओं तक की जमीन और भवन लोगों को परिवार सहित हमले का शिकार बनाकर आतंक के दम पर हथिया लिए थे। लेकिन योगी अपने लोगों का भी दर्द भूल गये। एक तरह से उन्होनें बर्बर कब्जों के खिलाफ कार्रवाई की अनिच्छा जताकर माफियाओं के अवैध कब्जों को समय के साथ वैध हो जाने का अवसर प्रदान कर दिया।

अटपटी दलीलों का सहारा

अगर भू-माफियाओं के खिलाफ वास्तविक अभियान चलाया गया होता तो उम्भा गांव का मामला पहले ही शासन की नजर में आ गया होता। सीएम योगी यहां के नरसंहार को लेकर 1955 तक चले गये जब न तो हत्याकांड को अंजाम देने वालों का जन्म हुआ था और न ही शहीद किये गये आदिवासियों का। वे उस समय कांग्रेस की सरकार के समय उम्भा गांव में विवादित जमीन को गलत ढंग से एक फर्जी सोसाइटी के हवाले किये जाने के तार ताजा नरसंहार के साथ जोड़ रहे हैं जो जमीन-आसमान के कुलाबे जोड़ने जैसा बेढब प्रयास है।

कानून की भाषा कहें तो ताजा नरसंहार की जबाबदेही के लिए 1955 की इंट्री का हवाला देने की कोई रेलीवेंसी नही है। इसी तरह उन्होंने गांव के प्रधान को जो कि नरसंहार का मुख्य आरोपी है, सपा का कार्यकर्ता बताते हुए नरसंहार को राजनीतिक साजिश साबित करने की कोशिश कर डाली। किसी भी बड़ी पार्टी में कार्यकर्ताओं की बहुतायत होती है और व्यक्तिगत तौर पर उनमें से किसी के द्वारा अपराध करने की जिम्मेदारी उस पार्टी पर नही डाली जा सकती।

सोनभद्र के नरसंहार को तब राजनैतिक साजिश कहा जा सकता था जब यह तथ्य सामने आते कि राज्य सरकार को अस्थिर करने के लिए सपा के किसी शीर्ष नेता ने इस कांड का तानाबाना बुनने में भूमिका निभाई होती।

भूमि घोटालों के पर्दाफाश के व्यापक अभियान से मुकर रही सरकार

वैसे जनता यह बात तो जानती ही है कि कांग्रेस व दूसरी अन्य कई पार्टियों कि सरकारों ने ऐसे भूमि घोटाले कराये थे और इन घोटालों का पर्दाफाश करने की उम्मीद से ही जनमानस ने भाजपा को इतने बड़े बहुमत से सत्ता सौंप डाली थी पर ऐसे घोटालों को व्यापक तौर पर सामने लाने और खत्म करने का काम न करके भाजपा भी यही साबित कर रही है कि सभी एक ही थैली के चटटे-बटटे हैं। शहरों में तालाब, श्मशान, कब्रिस्तान, गोचरी और विभागों की अरबों करोड़ों रुपये की जमीनें दूसरों के नाम चढ़ती रहीं और सरकार खामोश बैठी रही।

जो जीता वही सिकंदर

योगी सरकार ने क्यों मान रखा है कि जो जीता वही सिकंदर यानी जिसने जमीन हथिया ली वह अब उस जमीन का सिकंदर है। जिसे डिस्टर्ब नही किया जाना चाहिए।

अगर सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जों के इतिहास को खगांल कर वापस उन जमीनों को सरकार के आधिपत्य में पहुंचाने का अभियान चला दिया जाये तो सरकार इतनी मालामाल हो सकती है कि उसे अपनी योजनाओं के खर्च के लिए टैक्स बढ़ाकर जनता का खून चूसने की जरूरत ही न पड़े।

लेकिन सरकार का आलम तो दूसरा है। वह तो निरीह आम आदमियों की पूरी कमाई टैक्स के जरिये लूटने की तैयारी में बैठी रहती है और इसके बाद अपना माल जबरों, दबंगों के हवाले करती रहती है। जब तक यह सिलसिला चलेगा तब तक देश का आर्थिक विकास सूचकांक तो बढ़ सकता है लेकिन खुशहाली सूचकांक और ज्यादा दुखदाई होता जायेगा।

हिंदू राष्ट्र की कोशिश लेकिन आधी-अधूरी

योगी लक्ष्य के मामले में स्पष्ट हैं और इस कसौटी पर उनकों पूरे नंबर दिये जा सकते हैं। यह लक्ष्य बिना संवैधानिक परिवर्तन के प्रदेश की व्यवस्थाओं को हिंदू राष्ट्र के रूप में परिवर्तन करने का है जिसके लिए जातीय गौरव के चिन्हों और संस्कृति को महिमा मंडित करने के बेहद ठोस प्रयास उन्होंने किये। गैर धर्माबलंबियों व शास्त्रों में पूर्व जन्म की पापी कहीं गई कौमों को दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में अपनी नियति स्वीकार करने के मामले में भी उन्होंने काफी हद तक लक्ष्य साधन कर लिया है। पर एक धार्मिक राष्ट्र में भी सुव्यवस्था की जरूरत पड़ती है इस पर उनका ध्यान नही जा रहा है।

दुष्टों का विनाश जरूरी है धर्म संस्थापनार्थ

इतिहास में झांकें तो अलाउददीन खिलजी था जो विधर्मियों से बहुत क्रूरता से पेश आता था। हिंदुओं को उसकी बादशाहत में अमानवीय अत्याचार झेलने पड़े थे। लेकिन दूसरी ओर शासक के रूप में अपनी जिम्मेदारियों के प्रति भी वह पूरी तरह सचेत रहता था। उस समय जनता का शोषण जिन कारणों से होता था उन्हें रोकने के लिए उसने घटतौली करने वालों को बेहद सख्त सजायें दी थीं जिससे काफी हद तक इस पर अंकुश हो गया था। दूसरे धार्मिक रूप से कटटर बादशाहों ने भी प्रभावी शासन का उदाहरण पेश करने में कसर नही छोड़ी थी।

हिंदुत्व तो पापाचार के ज्यादा खिलाफ है। इसलिए हिंदू राष्ट्र में तो अन्याय, भ्रष्टाचार, कर्तव्यहीनता की गुंजाइश ही नही होनी चाहिए। लेकिन अगर हिंदू राष्ट्र के नाम पर बनी व्यवस्था में ऐसे पापों का पोषण होता है तो जिम्मेदारों को माना जायेगा कि वे हिंदुत्व के शुभचितंक नही उसे बदनाम करने वाले लोग हैं।

सीएम योगी की कमजोरी यह है कि वे उन लोगों का दिल नही दुखाना चाहते जो कानून, नैतिकता तोड़कर किसी भी तरीके से समरथ बन गये हैं। खनन, आबकारी आदि में उन्होंने भ्रष्टाचार रोकने के लिए फुलप्रूफ व्यवस्थायें की हैं जिससे लगता है कि वे आगे साफ-सुथरी व्यवस्था कायम करना चाहते हैं। लेकिन इतना ही पर्याप्त नही है।

अगर वे धार्मिक कथाओं से प्रभावित हैं तो उन्हें मालूम है कि अवतार की भूमिका तब तक पूरी नही होती जब तक जिनके पापों का घड़ा भर चुका है उन दुष्टों को वह दंडित न करे। यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। दुष्टों के विनाश के बिना धर्म की स्थापना की कल्पना योगी कैसे कर रहे हैं।

समरथो के लिए करुणा लोकतंत्र से विश्वासघात

माफियाओं और अन्य समरथों को अभयदान दिया जाना लोकतंत्र के प्रति भी विश्वासघात है। सीएम योगी को समझना होगा कि लोक यानी लोग क्या चाहते हैं।

आम लोग वे हैं जो धर्मप्राण हैं। संस्कारों के कारण वे गुस्ताखी नही कर सकते, जालसाजी नही कर सकते, गबन नही कर सकते, मुनाफे के नाम पर दूसरों के साथ बेईमानी या लोगों के जीवन से खिलवाड़ नही कर सकते ऐसे लोग जैसे-तैसे गुजर बसर कर पा रहे हैं। लेकिन उनके संयम का और विधि-विधान से चलने का नतीजा है कि वे समाज में किसी स्थिति के लायक नही रह जा रहे हैं।

उन्हें हेय दर्जे में धकेला जा रहा है क्योंकि समाज में समरथ का ही सम्मान करने की परंपरा एक मूल्य के रूप में स्थापित हो गई है। जिससे जो समरथ नही है वे तिरस्कार के स्वतः पात्र बना दिये गये हैं। लोक की इस अभिशाप से छुटकारा पाने की तड़प योगी को महसूस करनी होगी और इसके लिए उन्हें तथाकथित सिकंदरों के प्रति निर्मम रवैया अख्तियार करना पड़ेगा तांकि वे उन्हें दंडित कर सकें। आम आदमी का सम्मान और गरिमा तभी बहाल होगी और तभी लोकतांत्रिक व्यवस्था की सार्थकता को वह प्रमाणित कर पायेगा।

यह भी पढ़ें : भ्रष्टाचार के खिलाफ जिहादी अभियान, कितनी हकीकत, कितना फसाना

यह भी पढ़ें : राजनीतिक शुचिता की परवाह कब करेगा संघ

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com