धीरेन्द्र अस्थाना
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के करीब 90,000 होमगार्ड भले ही सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई फतेह कर चुके हो, लेकिन अभी उत्तर प्रदेश सरकार की लड़ाई जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने होमगार्ड्स को पुलिस कांस्टेबल के बराबर न्यूनतम वेतन प्रतिमाह देने का आदेश क्या दिया तो माने यूपी सरकार की हवाईया उड़ गयी।
हालांकि इस आदेश के बाद लंबे समय से वेतन विसंगतियों की लड़ायी लड़ रहे होमगार्डस जवानों के चेहरे जरूर खिल उठे थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि सरकार इसके तोड़ की जुगत में लगी हुई है। आज होमगार्ड और सरकार के बीच कई मुद्दो को लेकर तनातनी बरकरार है।
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सबसे प्रमुख है होमगार्ड्स के वेतन की बात। सरकार मानदेय पर अड़ी हुई है और होमगार्ड का कहना है कि उन्हें कोर्ट के निर्देशानुसार प्रतिमाह वेतन मिलना चाहिए।
आपको बता दें सातवें वेतन आयोगी की सिफारिश लागू होने के बाद एक पुलिस कांस्टेबल को 15,600 – 60,600 रूपए प्रति माह तथा ग्रेड पे- 9,400 रूपए प्रति माह मिलता है। जबकि होमगार्ड के जवानों को प्रतिदिन 500 रुपए के हिसाब से भत्ता मिलता है। इसमें जितने दिन ड्यूटी लगेगी उतने ही दिन के भत्ते का भुगतान किया जाता है।
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इस वजह से होमगार्ड्स के जवान लंबे समय से एक फिक्स वेतन की मांग कर रहे थे। जब उनकी मांग को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया तो सरकार इसको लागू करने से बच रही है क्योंकि यदि होमगार्ड के जवानों को वेतन मिला तो उन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा भी मिल जाएगा। इसके लिए एक याचिका दाखिल की गई थी।
इस याचिका में कहा गया था कि होमगार्ड सिविल पुलिस के समान ही ड्यूटी करते हैं, लेकिन उन्हें उनके बराबर मानदेय नहीं मिलता। यही नहीं होमगार्ड के जवानों को साल में सिर्फ छह से सात महीने ही ड्यूटी दी जाती है।
बाकी बचे महीनों में न तो उन्हें ड्यूटी मिलती है न ही मानदेय। जिससे उनके परिवार का पालन पोषण प्रभावित होता है। इस मामले को लेकर डीजी होमगार्ड जी.एल. मीणा से पूछा गया तो उन्होंने शासन में मामला लंबित होने की बात कहकर मुंह मोड़ लिया।
वहीं होमगार्ड एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष रामेन्द्र कुमार यादव का कहना है कि यदि सरकार की इच्छाशक्ति होती तो निश्चित तौर पर अविलंब कोर्ट के निर्देश को मानने में इतना समय नहीं लेते और होमगार्ड के जवानों को पुलिस की भांति वेतन और दर्जा दिया जाता।