जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के स्थानांतरण का रास्ता साफ कर दिया है। 15 जुलाई तक तबादले किए जा सकेंगे। तबादले यथासंभव ऑनलाइन मेरिट बेस्ड किए जाएंगे। तबादले की प्रक्रिया वही होगी जो 2018 में जारी तबादला नीति में तय की गई थी।
उधर उत्तर प्रदेश के कर्मचारियों ने तबादले को लेकर अपना विरोध भी दर्ज कराना शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं सत्र को शून्य करने की मांग भी कर डाली है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद और उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ का मानना है कि 500 किलोमीटर तबादला करना ठीक नहीं होगा।
बताते चलें प्रदेश सरकार ने स्थानान्तरण सत्र 2020-21 में कोविड-19 महामारी की वजह से स्थानांतरण पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी। लेकिन पूरे सत्र तबादले नहीं किए जा सके थे।
तभी से सरकारी कार्मिक तबादला नीति का इंतजार कर रहे थे। आम कार्मिकों की दिक्कत ये भी थी कि जिनकी पहुंच और पकड़ थी, उनके ताबदले प्रशासनिक आधार पर हो जा रहे थे। नियुक्ति विभाग ने वर्ष भर गुपचुप तबादले किए। यहां तक कि तबादला आदेश पब्लिक डोमेन में जारी करने बंद कर दिए गए।
बीते एक साल से प्रदेश कोविड की महामारी से जूझ रहा है। प्रदेश के चिकित्सक, नर्सेज, पैरोमेडिकल स्टाफ, पुलिस, सफाई कर्मी, खाद्य-रसद, नगर निगम, पंचायत ग्राम्य विकास, होमगार्डस, पीआरडी विभाग समेत अन्य विभागों के कर्मिक ड्यूटी कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में प्रदेश के कर्मचारियों के सामान्य स्थानान्तरण न किया जाएं।
इस संबंध में राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर प्रदेश के कर्मचारियों के लिए आगामी सामान्य स्थानान्तरण सत्र 2021-2022 को शून्य घोषित करने की मांग की है ताकि कोरोना संक्रमण से निपटने में बाधा उत्पन्न न हो। सरकार के इस निर्णय से पैसों की बचत होगी और कर्मचारियों में विश्वास के साथ कार्य करने की क्षमता में बढ़ोतरी भी होगी।
संगठन की तरफ से मांग की गई है कि केवल इच्छुक कर्मचारियों का ही तबादला किया जाए। बाकी लोगों का तबादला करना ठीक नहीं है। उप्र में नियमित राज्य कर्मचारियों की संख्या नौ लाख से ज्यादा है। ऐसे में अगर 20 फीसदी लोगों का तबादला कर दिया गया तो एक साल में 1 लाख 80 लोगों का तबादला किया जाएगा ।
उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ ने इसका पूरा विरोध किया है।