न्यूज डेस्क
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा प्रमोशन में आरक्षण को लेकर की गई टिप्पणी के बाद सियासी पारा चढ़ गया है। संसद में आज कांग्रेस सांसदों ने इस मामले को उठाया और केन्द्र सरकार पर जमकर निशाना साधा।
संसद में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ये सरकार मनुवादियों की सरकार है। ये सरकार सिर्फ मनुवाद में विश्वास रखती है। हालांकि विपक्ष के आरोप पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से खुद को अलग करते हुए कहा कि ये भारत सरकार का कथन नहीं है।
लोकसभा में केंद्रीय संसदीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने जवाब देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला किया है, उसमें भारत सरकार का कोई लेना देना नहीं है। हमारी ओर से केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत अपना बयान देंगे।
केंद्र सरकार की सफाई पर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ये सरकार सिर्फ मनुवाद में विश्वास रखती है। उत्तराखंड सरकार ने आरक्षण का विरोध किया है और केंद्र सरकार कह रही है कि उसका कुछ लेना-देना नहीं है। चौधरी ने कहा कि हमारी सरकार हमेशा एससी-एसटी के अधिकारों को बचाती रही है, लेकिन इस सरकार ने सबकुछ खत्म करने का काम किया है।
Parliamentary Affairs Minister Pralhad Joshi on SC judgement that reservations for jobs, promotions, is not a fundamental right: This is SC’s decision. Govt of India has nothing to do with it. The Social Welfare Minister will make a statement at 2:15pm today pic.twitter.com/RysQfUVpfP
— ANI (@ANI) February 10, 2020
एनडीए के सहयोग दलों ने भी उठाया सवाल
आरक्षण के मुद्दे पर सिर्फ कांग्रेस ने ही नहीं बल्कि एनडीए में साथी लोजपा की ओर से भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़े किए गए। एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान ने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर और महात्मा गांधी की कोशिश के बाद ही यह अधिकार हम लोग को मिला है। यह संवैधानिक अधिकार है। आरक्षण किसी तरह की खैरात नहीं है।
लोकसभा में चिराग पासवान ने कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को खारिज करती है और उसे सहमत नहीं है और मैं मांग करूंगा कि हमारी सरकार इसके बारे में अपील करे। उन्होंने ये भी कहा कि मैं चाहता हूं सरकार से इसे नौवीं सूची में डालने पर विचार करे।
वहीं उत्तर प्रदेश में भाजपा की साथी अपना दल ने भी अदालत के फैसले पर आपत्ति जताई। अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वह अपनी असहमति दर्ज कराती हैं, ये कोर्ट का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है। एससी/एसटी का न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व नहीं है, इसलिए इस प्रकार के फैसले आ रहे हैं।
गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि प्रमोशन में आरक्षण देना किसी तरह का मौलिक अधिकार नहीं है। इसे देना है या नहीं, ये पूरी तरह से राज्य सरकार के हाथ में है।
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