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त्योहारों के सीजन चल रहा है बीती रात को पूरे देश में लोगों ने बड़े धूम धाम से दीवाली मनाई। इसके बाद सोमवार को गोवर्धन पूजा है। हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा मनाई जाती है। इस बार गोवर्धन पूजा 28 अक्टूबर यानी कि दिवाली के एक दिन बाद मनाई जाएगी। इसे ‘अन्नकूट पूजा’ भी कहा जाता है।
गोवर्धन पूजा के दिन लोग अपने आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद उसकी चारों तरफ से परिक्रमा करते हैं। इसके बाद भगवान को अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। साथ ही व्रत कथा का पाठ किया जाता है।
आइए जानते हैं कि कैसे हुई इस पूजा का शुरुआत
ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि सभी बृजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे। जब उन्होंने अपनी मां को भी इंद्र की पूजा करते हुए देखा तो सवाल किया कि लोग इन्द्र की पूजा क्यों कर रहे है? तब भगवान कृष्ण की मां ने बताया कि, वह वर्षा करते हैं। इससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है।
उनके इस जवाब पर श्री कृष्ण ने कहा कि अगर ऐसा है तो सबको गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरने जाती हैं।इसके बाद सभी ब्रजवासी ने उनकी बात मानकर इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।
इससे देवराज इन्द्र नेनाराज हो गए और प्रलय के समान मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया और सभी ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी।
इस घटनाक्रम के बाद इंद्र समझ गये कि श्री कृष्ण वास्तव में विष्णु के अवतार हैं और उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। इसके बाद इंद्र को भगवान कृष्ण से क्षमा मांगनी पड़ी।
उनकी क्षमा याचना पर भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा था इसके बाद उन्होंने सभी ब्रजवासियों से हर साल गोवर्धन की पूजा करने के लिए कहा था। तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है।