जुबिली न्यूज डेस्क
अगर कोई घरेलू कंपनी किसी विदेशी बाजार से कोई सामान खरीदती है और उसे किसी अन्य विदेशी बाजार में बेच देती है, तो उसे इस सौदे पर जीएसटी का भुगतान करना होगा।
अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग (AAR) ने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि भले ही ऐसा सामान भारतीय सीमा में प्रवेश करे या नहीं करे, लेकिन उसके लिए विक्रेता पर भारत में जीएसटी देनदारी बनती है।
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एएआर के इस फैसले का मतलब यह है कि आवेदक भारत से बाहर स्थित किसी ग्राहक से कोई ऑर्डर हासिल करेगा और उसे किसी अन्य लोकेशन से सामान की डिलिवरी कर देगा तो उसे इस सौदे पर जीएसटी का भुगतान करना होगा।
इसमें विदेश स्थित वेंडर भारत की आवेदक कंपनी को विदेशी मुद्रा में इनवॉयस देगा और भारतीय कंपनी भी अपने ग्राहक को विदेशी मुद्रा में ही इनवॉयस जारी कर भुगतान लेगी।
इस तरह के सौदों में सामान का भारत आना जरूरी नहीं होगा। स्टर्लाइट टेक्नोलॉजीज द्वारा दाखिल एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए एएआर की गुजरात पीठ ने कहा कि अगर कोई भारतीय कंपनी भारत से बाहर के किसी खरीदार के हाथों कोई सामान बेचती है तो उसे जीएसटी का भुगतान करना ही पड़ेगा।
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ऐसे मामलों में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि विक्रेता ने वह सामान भारत नहीं मंगाया और खरीदार भी भारत में नहीं है। इस मामले में आवेदक कंपनी ने यह जानना चाहा था कि क्या मर्चेट ट्रेड ट्रांजैक्शंस (एमटीटी) पर जीएसटी वसूला जा सकता है या नहीं।
हालांकि, एएमआरजी एंड एसोसिएट्स के सीनियर पार्टनर रजत मोहन का कहना था कि दुनियाभर में एमटीटी पर कोई जीएसटी देनदारी नहीं बनती है और भारत में भी पहले यही नियम था।
इस बीच, एक अन्य फैसले में एएआर ने कहा है कि पीपीएफ व सेविंग्स अकाउंट जैसे मदों से हासिल ब्याज तथा परिजनों व मित्रों को दिया गया कर्ज भी जीएसटी पंजीकरण की सीमा तय करते वक्त जोड़े जाएंगे।
जीएसटी नियमों के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति या कारोबार का समग्र राजस्व 20 लाख रुपये या उससे अधिक है, तो उसे जीएसटी का भुगतान करना होगा। एएआर ने कहा कि आवेदक को जिन मदों में आयकर से छूट मिलती है, जीएसटी की सीमा निर्धारण के वक्त उन छूटों को भी शामिल किया जाएगा।