चंचल
दुखद खबर – मोतीलाल बोरा नही रहे। कई शख्सियतें खुद में इस कदर रच वस जाती हैं कि वे किसी ओहदे या अलहदा शिनाख्त से बहुत दूर निकल जा चुकी होती हैं।
बोरा जी उसी दर्जे में दाखिल हो कर चमक रहे थे। मसलन यह बताने की जरूरत नही है कि बोरा जी मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे या उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे यहां तक कि कांग्रेस भी बताना नही पड़ता था कि मोतीलाल बोरा जी कांग्रेस से हैं।
गिरती , लुढ़कती , उठती कांग्रेस में तन कर ही खड़े मिले। मुस्कुराते हुए । बोरा जी का कुछ हिस्सा समाजवादी आंदोलन में भी रंगा रहा और आखीर तक बरकरार रहा , या यूं कह सकते हैं बोरा जी कांग्रेस में वह हिस्सा जतन से बचा के तह करके रखे हुये थे।
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बन कर गए, हम उनसे मिलने नही गए। समाजवादियों विशेष कर युवजनो में राग का यह गलत अनुपात कुछ ज्यादा ही रहा , आज इनकी असफलता का एक कारण यह भी बना हुआ है। बहरहाल एक वाक्या घट गया।
सहारा घराने का एक निमंत्रण था । लखनऊ में आयोजन था । हम पूना में थे वहां से मुंबई फिर लखनऊ पहुचना था । पूना में एक और गवर्नर भाई मधुकर दिघे की बेटी की शादी से निकलना था । यहां एक छोटा सा विषयांतर कर दूं –
पूना होटल के जिस कमरे में हम और राज बब्बर रुके थे , वही मुलायम सिंह भी आ गए । यहीं पर हमारी मुलायम जी से टकराव हो गया । हमने कहा हम मछली शहर से चुनाव लड़ेंगे।
मुलायम जी ने कहा – अमर सिंह से बात करलो । हमने कहा – फिर दुहराइये । मुलायम जी से हमने कहा – मुलायम जी! जिस दिन उस दल्ले से समाजवाद सीखना होगा , उससे बेहतर होगा किसी कोठे की दलाली में लग जाऊं । राज हमे दूसरे कमरे में लेकर चले गए। और उसी फैसले के साथ लखनऊ पहुच रहे थे साथ मे राज थे ।
भोजन की टेबल पर अचानक अफरा तफरी मच गई । गवर्नर साहब आ रहे हैं , टेबिल पर जगह बनाओ भाई । दो तीन लोग उठाये गए । हम चुप चाप बैठे रहे । इतने में बोरा जी आये उनके साथ प्रमोद तिवारी थे।
बोरा जी ने हमे देख लिया था, शायद इसलिए भी कि , हम उनके आने पर नही उठ खड़े हुए थे । न खड़े होने की एक वजह शायद वह बेचैनी थी जो पूना से लेकर चला था। पीछे से गुजरते हुए बोरा जी ने हमारे कंधे पर हाथ रखा – बहुत गंभीर हो ? हमे अपराधबोध हुआ , खड़े होने लगे तो बोरा जी ने कंधा दबा कर बिठा दिया ।
फिर तो अनगिनत बार बोरा जी से मिलना हुआ , घर के बुजुर्ग माफिक । एक चूक हमसे हुई और हमने उनसे माफी भी मांगी । हुआ यूं कि मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनाव था। काका ( राजेश खन्ना ) प्रचार कर रहे थे। दिग्गी राजा के क्षेत्र से निकल कर हम गुना फिर भिलाई पहुंचे । उस समय भिलाई में ही भाई कनक तिवारी का आवास था।
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शायद । क्यों कि वहीं से दोपहर के बाद का स्वल्पाहार मिला था । बहरहाल । भिलाई मीटिंग के बाद एक सज्जन हमे मिले और मंचसे नीचे ले गए बोले बोरा साहब ने आपके पास भेजा है आप इस मीटिंग के बाद उनके क्षेत्र में काका की एक सभा करा दें।
हम काका की आदत से वाकिफ रहे। वे दिल्ली दफ्तर से मिले कार्यक्रम में रत्ती भर न जोड़ते थे न कम करते थे । हमने उन सज्जन को बताया लेकिन उन्होंने जिद की।
हमने कहा आओ कोशिश किया जाय । अंततः वही हुआ जिसका अंदाजा था । बोरा जी के बेटे शायद वहां से उम्मीदवार थे । चुनाव के बाद बोरा जी से मिला और सफाई दी।
बोरा जी बोले तुम मत बताओ , हम उसे जान गए हैं जिद्दी है । लेकिन बाद में मोतीलाल जी से काका के भी रिश्ते बहुत गजब के बने । कई किस्से हैं। अलविदा दादा मोतीलाल बोरा जी ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं , लेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।)