Monday - 28 October 2024 - 1:58 PM

भगवान भरोसे कश्मीर के सरपंच!

जुबिली न्यूज डेस्क

पिछले चार सालों में घाटी में 10 सरपंचों और पंचायत सदस्यों की हत्या हो चुकी है और अभी भी सभी सरपंचों को लगातार धमकियां मिल रही हैं। सरपंच दोहरे संकट में फंस गए हैं। एक तरफ उन्हें आतंकियों से जान से मारने की धमकी मिल रही है तो दूसरी ओर प्रशासन भी उनकी सुन नहीं रहा है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि वह जाए तो जाए कहां।

यह हम नहीं कह रहे हैं। ये कहना है घाटी के सरपंचों का। घाटी के सरपंच आतंकियों के निशाने पर हैं। उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं। वह अपनी सुरक्षा की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन कश्मीर प्रशासन ने उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया है।

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पिछले दिनों जब सरपंच अजय पंडिता की हत्या हुई तो खूब हंगामा हुआ। अफसोस के साथ-साथ आक्रोश भी दिखा। किसी ने सरकार को कोसा तो किसी ने आतंकियों को। अजय की हत्या के लिए आतंकवादियों को दोषी ठहराया गया, लेकिन जब तक जिंदा अजय जिंदा थे तब तक उन्होंने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को इस बारे में आगाह करने की बहुत कोशिश की थी कि उनकी और कश्मीर में दूसरे कई सरपंचों की जान को आतंकवादियों से खतरा है। यदि समय रहते उन्हें प्रशासन ने सुरक्षा दी होती तो शायद आज तस्वीर कुछ और होती।

घाटी के सरपंच पंडिता की हत्या के बाद से और डर गए हैं। पंडिता की हत्या के लगभग एक हफ्ते बाद एक एक महिला सरपंच को धमकाए जाने वाले वीडियो सामने आया है। इस वीडियो ने कश्मीर में सरपंचों पर मंडराते खतरे की ओर ध्यान खींचा है।

 

सरपंच पहले भी रहे हैं आतंकियों के निशाने पर

घाटी के सरपंचों में आतंकवादियों को लेकर डर नया नहीं है। इसके पहले भी वह आतंकियों के निशाने पर रहे हैं। 90 के दशक के बाद जब पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य में आतंकवाद में कुछ कमी आई और 2008 में हुए पहले विधान सभा चुनावों में लगभग 60 प्रतिशत मतदान देखा गया तो इसे राज्य की जनता पर आतंकवाद और अलगाववाद की पकड़ कमजोर होने का और लोगों के मन में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति विश्वास के बढऩे का संकेत माना जाने लगा।

इसी क्रम में 2011 में राज्य में 30 सालों में पहली बार पंचायत चुनाव कराए गए थे, जिनमें 43,000 सरपंच और पंचायत सदस्य निर्वाचित हुए थे। कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया का इस तरह मजबूत होना वहां सक्रिय आतंकवादी संगठनों को रास नहीं आ रहा था। आतंकवादियों ने स्थानीय चुनावों का विरोध किया और उनमें हिस्सा लेने वालों को धमकियां दीं।

इनके निर्वाचित होने के तुरंत बाद ही कश्मीर में जगह जगह उन्हें इस्तीफा देने की हिदायत देते हुए पोस्टर सामने आने लगे और जब इस्तीफे नहीं दिए गए तो उनकी हत्या होने लगी। कम से कम सात सरपंच और पंचायत सदस्य मारे गए। इतनी हत्याएं देख बाकी पंच और सरपंच भी घबरा गए और सैकड़ों ने आखिरकार इस्तीफा दे ही दिया।

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हिंदी वेबसाइट डीडब्ल्यू के अनुसार श्रीनगर के वरिष्ठ पत्रकार जफर इकबाल कहते हैं कि घाटी में आतंकवादियों द्वारा हत्याओं के “साइकिल” होते हैं, जैसे कभी सरपंचों को मारा जाता है, कभी दूसरे राजनीतिक कार्यकर्ताओं को तो कभी सुरक्षाकर्मियों को। वह सवाल पूछते हुए कहते हैं कि – तो क्या एक बार फिर घाटी में ऐसा साइकिल शुरू हो गया है?

घाटी में अक्टूबर 2018 में पंचायत चुनाव हुए थे। राज्य की स्थानीय पार्टियां चुनाव कराने के पक्ष में नहीं थी। उनका कहना था कि राज्य में कई महीनों से राष्ट्रपति शासन लागू था और ये अटकलें भी थीं कि केंद्र सरकार संविधान के आर्टिकल 35ए के तहत जम्मू और कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा भी हटाने वाली है। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के चुनावों को बहिष्कार करने की वजह से मतदान भी बहुत कम रहा और कई जगहों पर बीजेपी के उम्मीदवार निर्विरोध ही जीत गए।

सरपंचों की नहीं सुन रहा कश्मीर प्रशासन

घाटी के सरपंचों का आरोप है कि कश्मीर प्रशासन उनकी नहीं सुन रहा है। वह डरे हुए हैं। यदि प्रशासन ने उन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं कराया तो मजबूरन उन्हें इस्तीफा देना पड़ेगा।

गांदेरबल जिले की कंगन तहसील में मामर गांव के सरपंच नजीर अहमद राणा ने बताया कि पिछले चार सालों में कई सरपंच और पंचायत सदस्यों की हत्या हो चुकी है। अभी भी सभी सरपंचों को लगातार धमकियां मिल रही हैं और प्रशासन उनकी सुन नहीं रहा है।

वह कहते हैं, सभी सरपंचों ने प्रशासन से अपने लिए सुरक्षा का इंतजाम करने की मांग की है लेकिन उनकी “सुनने वाला कोई नहीं है”। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव के पहले प्रशासन ने सभी उम्मीदवारों से वादा किया था कि उन्हें आठ लाख का बीमा मिलेगा, लेकिन चुनाव के बाद ये वादे पूरे नहीं किए गए। राणा कहते हैं कि चुने हुए जन-प्रतिनिधि होने और बीजेपी से जुड़े होने के बावजूद उनकी तरफ सरकार का ध्यान ना के बराबर है।

राणा ने बताया कि उन्होंने और दूसरे सरपंचों ने पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मालिक और मौजूदा लेफ्टिनेंट गवर्नर जी सी मुर्मू से कई बार मिलने की कोशिश की लेकिन उन्हें मिलने का समय नहीं दिया गया। राणा का कहना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो सभी सरपंचों को मजबूर हो कर इस्तीफा देना ही पड़ेगा।

ऐसी ही शिकायत कुलगाम जिले में सरपंच विजय रैना ने भी ट्विटर पर की है। रैना भी बीजेपी से ही जुड़े हुए हैं और अपना परिचय जिले में पार्टी के प्रवक्ता के रूप में भी देते हैं।

फिलहाल पंडिता की हत्या के बाद प्रशासन में हरकत हुई है। उनके परिवार को बीस लाख रुपए की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की गई है।

इस पर सरपंच राणा कहते हैं कि इसके पहले बीजेपी से ही जुड़े एक और सरपंच की हत्या हुई थे लेकिन उसके परिवार को सिर्फ एक लाख रुपए दिए गए। उन्होंने यह भी बताया कि उससे भी पहले जिसकी हत्या हुई थी उसके परिवार को तो अनुग्रह राशि अभी तक नहीं मिली है।

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