Wednesday - 30 October 2024 - 9:34 PM

जाओ, दौड़ो, तोड़ डालो जिन्ना की तस्वीर

शबाहत हुसैन ‘विजेता’

गांधी जी के क़त्ल का इल्ज़ाम नाथूराम गोडसे पर था लेकिन क़त्ल की साज़िश रचने में जो 8 नाम सामने आये थे उनमें एक नाम विनायक दामोदर सावरकर का भी था, जी हाँ, वही जिन्हें वीर सावरकर कहा जाता है। उन पर मुकदमा चला लेकिन अदालत से बरी हो गये।

          शबाहत हुसैन ‘विजेता’

लन्दन में हुए अंग्रेज़ अफसर सर विलियम कर्जन वाइली के क़त्ल में भी सावरकर का नाम आया था।  यह क़त्ल मदनलाल ढींगरा ने किया था और इसमें उन्हें फांसी हुई थी, सावरकर अदालत से बरी हो गये थे। हालांकि बाद में सावरकर ने अपनी जीवनी में यह मान लिया था कि ढींगरा को उन्होंने खुद ट्रेनिंग दी थी।

सावरकर को अंग्रेजों ने काला पानी की सज़ा दी थी और उन्हें कोल्हू में बैल की जगह लगाया गया था। इस सज़ा से बचने के लिये सावरकर ने अंग्रेज़ अफसरों से 1911 और 13 में माफी माँगी थी।

सावरकर ने गाय को कभी ईश्वरीय नहीं माना। उन्होंने कहा था कि जो गाय अपने ही पेशाब में लेटती हो और अपनी पूंछ से अपना पेशाब और गोबर अपने पूरे शरीर पर फैला लेती हो वह ईश्वरीय नहीं हो सकती। वह सावरकर ही थे जिन्होंने हिन्दू महासभा के 19 वें अधिवेशन में 30 दिसम्बर 1937 को टू नेशन थ्योरी दी थी।

जिन पर बहुत से लोगों की आस्था है। जिन्हें बहुत से लोग वीर मानते हैं उनका निन्दा पुराण लिखने का न मेरा कोई मकसद है और न ही मैं उनकी चर्चा करके कुछ हासिल करना चाहता हूँ लेकिन फिर भी मौजूदा माहौल में यह ज़रूरी लगा कि जब नफ़रत की आंधी चलाने की होड़ लगी है।  जब जानवरों के नाम पर इंसान काटे जाने लगे हैं. जब मज़हब के नाम पर घर जलाए जाने लगे हैं. जब मज़हब के नाम पर इलेक्शन होने लगे हैं। जब मज़हब के नाम पर हुकूमतें बनाई और गिराई जाने लगी हैं।  तब कुछ ऐसे चमकते चेहरों पर लगी कालिख भी दिखा दी जाये जिन्होंने हमारी मोहब्बत की जड़ों में मट्ठा डालने का काम किया था।

जब गांधी का क़त्ल हुआ मैं पैदा नहीं हुआ था।  जब लन्दन में अंग्रेज़ अफसर विलियम मारा जा रहा था तब भी मैं पैदा नहीं हुआ था। जब टू नेशन थ्योरी दी जा रही थी तब भी मैं पैदा नहीं हुआ था।  कालापानी की सज़ा से बचने के लिये जब एक कैदी अंग्रेजों से माफ़ी मांग रहा था तब भी मैं पैदा नहीं हुआ था और जब गाय के बारे में अच्छी नहीं लगने वाली बातें कही जा रही थीं तब भी मैं पैदा नहीं हुआ था, लेकिन आज यह सब बातें लिख पा रहा हूँ क्योंकि यह सब इतिहास का हिस्सा है ।  कोई यह सब लिख गया है। इसी तरह से आज जो लोग नफ़रत फैला रहे हैं उनका इतिहास भी कोई न कोई लिख ज़रूर रहा होगा और आने वाले वक्त में आज उनके चेहरे पर जो कालिख लग रही है उसे आने वाली पीढ़ियाँ देखेंगी।

गांधी का क़ातिल अब महात्मा कहा जाने लगा है।  उसके मानने वाले गांधी की तस्वीरों पर गोलियां चला रहे हैं।  तस्वीरों पर गोलियां चलाकर वह गांधी के अहिंसा के सिद्धांत का क़त्ल करना चाहते हैं।  जो इस क़त्ल से बरी हो गया था और जो अपनी सज़ा से बचने के लिए माफी मांग रहा था वह वीर हो गया है।

किसी को कोई एतराज़ नहीं कि कौन किसे पूजे, उस पर ऊँगली उठाये लेकिन जिस मुल्क की सीमाएं ईरान को छूती थीं उसे छोटा और छोटा करते जाने वालों की इज्जत कम से कम हम तो नहीं कर सकते। अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर पर सवाल उठाने वाले सोचें कि अगर सावरकर ने टू नेशन थ्योरी न दी होती तो पाकिस्तान कभी बन ही नहीं पाता।

जिन्ना भारत के इतिहास का हिस्सा हैं।  उनकी तस्वीरें फाड़कर हम इस बात को नहीं भुला सकते कि पाकिस्तान हमारा ही टूटा हुआ हिस्सा है।जिन्ना की तस्वीर लगातार हमें यह अहसास कराती है कि भारत का एक इंच टुकड़ा भी अब अलग नहीं होना चाहिए।  जिस जिन्ना को हमने इज्ज़त से विदा किया उसकी तस्वीर फाड़कर या जलाकर क्या हम इतिहास को भुला सकते हैं। क्या हम यह बात भूल सकते हैं कि भारत टूटा था तो सीमा पर काफी खून बहा था। इधर से उधर जा रहे लोगों को बेरहमी से क़त्ल किया जा रहा था। देश टूटते वक्त जो खून बहा था उसके लिए जिन्ना और सावरकर बराबर के ज़िम्मेदार थे।

 

पाकिस्तान का भगत सिंह चौक और महात्मा गांधी की मूर्तियाँ पूरी दुनिया को यह अहसास कराती हैं यह की यह हमारा इतिहास है और इतिहास कभी बदलता नहीं है।

जल्दी हुकूमत हासिल करने के लालच में टू नेशन थ्योरी की वकालत अगर नहीं की गई होती तो हमारा भारत आज कहीं ज्यादा मज़बूत होता. 1947 में हुए नुकसान का खामियाजा आज तक भुगतना पड़ रहा है।

सुदर्शन सलिलेश के शेर “कर रहे पंचायतें क्यों जल चुके खलिहान की, अब न जल जाए फसल तुम इसकी तैयारी रखो” की तर्ज़ पर हम अब तक उन तस्वीरों पर अपनी ऊर्जा खर्च कर रहे हैं जिसका आज से नहीं इतिहास से मतलब है लेकिन नहीं ढूंढ पा रहे वह तरीका जो कश्मीर से बेदखल किये गए पंडितों को वापस उनके घरों तक पहुंचा सकें।

हालात उस देहरी तक पहुँच चुके हैं जिसमें आतंकवाद का मज़हब तय किया जाने लगा है. हुकूमत चलाने वाला राजा खुद मज़हब को इंसान से ऊपर मानने लगा है।  जिसे पूरा सूबा चलाने की ज़िम्मेदारी मिली है वह अली और बजरंगबली की जंग में फंस गया है. वह ठोक दो और काट दो वाली ज़बान बोलने लगा है।

आम आदमी मुसीबतों की मार सह रहा है. बाज़ार उसके सर पर चढ़कर बोल रहा है. रोजी-रोटी मुश्किल मसला बनता जा रहा है. बेटियां सेफ नहीं हैं, बेटों के पास रोज़गार नहीं है. माँ-बाप दवा के मोहताज हो रहे हैं।  बीमारियाँ बहुत तेज़ी से पाँव पसार रही हैं. सरकारों के सरोकार बहुत शर्मनाक हैं. जाओ, दौड़ो, तोड़ डालो जिन्ना की तस्वीर, उसे पाँव से कुचल डालो, जो ऐसा करने से रोके उसे भी छोड़ना नहीं,  क्योंकि सच यही है कि जिन्ना और सावरकर मरे ही नहीं वह तो हम सब के भीतर घुस गए हैं।

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