जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है। एक ओर लाखों-करोड़ों लोग बीमारी की चपेट में आए तो वहीं करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए।
कोरोना संक्रमण रोकने के लिए दुनिया के अधिकांश देशों ने लॉकडाउन का सहारा लिया। इस दौरान लाखों-करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए तो वहीं दुनिया के अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई।
इतना ही नहीं वैश्विक खाद्य कीमतों की मासिक बढ़ोतरी दर में भी बीते एक दशक में सबसे तेज उछाल आया है।
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संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया भर में खाने की कीमतों में बढ़ोत्तरी हुई है। एक व्यापक पैमाने के आधार पर संयुक्त राष्ट्र वैश्विक खाद्य कीमतों को मापता है, जो बीते 12 महीनों में लगातार बढ़ी हैं।
कोरोना महामारी के दौरान आपूर्तिकर्ताओं को उत्पादन, मजदूरी और परिवहन को लेकर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। ऐसे में व्यापक मंदी की चिंता बढ़ती जा रही है।
सबसे बड़ा मसला ये है कि खाने-पीने की चीजों की अधिक कीमतें वैश्विक अर्थव्यवस्था की बेहतरी पर क्या असर डालेंगी।
संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन का फूड प्राइस इंडेक्स दुनियाभर में अनाज, डेयरी उत्पादों, शक्कर और मांस की कीमतों की निगरानी करता है।
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इंडेक्स के अनुसार सालाना हिसाब-किताब के मुताबिक मई में खाद्य कीमतें 39.7 प्रतिशत बढ़ गई थीं, जो अक्टूबर 2010 के बाद एक महीने में हुई सबसे बड़ी बढ़ोतरी है।
वनस्पति तेलों, अनाज और शक्कर की कीमतों में हुई वृद्धि से खाद्य पदार्थों की कीमतें सितंबर 2011 के बाद से सबसे ज़्यादा हो गई हैं।
ये वृद्धि कुछ देशों में खाद्य पदार्थों की मांग में आए बदलाव और पिछले कुछ समय से कम उत्पादन का नतीजा है।
आवाजाही पर पाबंदियों की वजह से बाजार और आपूर्ति में व्यवधान पैदा हुआ, जिससे स्थानीय स्तर पर माल में कमी और कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ज्यादा कम और कम उत्पादन की वजह से तालाबंदी से बाहर आती अर्थव्यवस्था के बीच मंदी को बढ़ावा मिलेगा।
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