प्रीति सिंह
आखिरकार कन्हैया कुमार सियासी मैदान में दो-दो हाथ करने के लिए आ ही गए। कन्हैया का भले ही विधानसभा व लोकसभा चुनाव का अनुभव न हो लेकिन वह राजनीति के पक्के खिलाड़ी है। 2016 में चर्चा में आए कन्हैया ने अपने सूझबूझ और बेवाकी से मात्र दो साल अपने को राष्ट्रीय स्तर का नेता बना लिया। युवाओं में उनका जबर्दस्त क्रेज है। फिलहाल वह अपने गृह जनपद बेगूसराय से भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी (भाकपा) के टिकट पर बीजेपी प्रत्याशी गिरिराज सिंह को चुनौती देने के लिए मैदान में आ गए हैं। उनकी उम्मीदवारी से बेगूसराय हॉट सीट बन गई है। बिहार में सबसे अधिक चर्चा इसी सीट को लेकर है।
छात्रनेता बनाम हिंदुत्ववादी नेता
बेगूसराय कन्हैया का गृह जनपद है। निश्चित ही इसका उनको फायदा मिलेगा। एक छात्रनेता के रूप में पिछले दो वर्षों में कन्हैया कुमार ने जो छवि बनाई है, इस सीट पर विपक्ष उसको बीजेपी के खिलाफ भुनाने की कोशिश करेगा। वहीं, बीजेपी इस सीट पर जातीय समीकरण के साथ ही गिरिराज सिंह की कट्टर हिंदुत्ववादी नेता वाली छवि को भी ध्यान में रखकर अपनी रणनीति आगे बढ़ाने में जुटी है। यही वजह है कि इस समय इस सीट की सबसे अधिक चर्चा है।
आसान नहीं होगी बीजेपी की राह
गिरिराज सिंह नवादा से चुनाव लडऩा चाहते थे लेकिन बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने नवादा की सीट छोड़कर रणनीति के तहत यहां गिरिराज सिंह को जरूर मैदान में उतारा है लेकिन यह चुनौती इतनी आसान नहीं है। यदि महागठबंधन की तरफ से अगर इस सीट पर कन्हैया कुमार को समर्थन मिल जाता है तो गिरिराज की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। दरसअल गिरिराज के लिए यह सीट नई है और वह यहां अपना व्यक्तिगत काम गिनाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है। वह सिर्फ कन्हैया को जेएनयू में कथित राष्टï्रविरोधी नारेबाजी सहित अन्य मुद्दों को लेकर घेर सकते हैं।
महागठबंधन के पक्ष में प्रचार भी करेंगे कन्हैया
कन्हैया ने उम्मीदवारी की घोषणा के बाद बीजेपी नेता गिरिराज पर निशाना साधते हुए उन्हें पाकिस्तान का वीजा मंत्री बताया। कहा कि बेगूसराय में कट्टरवादी गिरिराज सिंह को हराने के लिए लोगों ने कमर कस ली है। कन्हैया ने कहा कि देशहित में भाजपा विरोधी मतों का बिखराव नहीं होना चाहिए। इसके लिए भाजपा के खिलाफ गोलबंदी बहुत जरूरी है। ऐसे में जहां-जहां वाम दलों के उम्मीदवार नहीं होंगे, वे महागठबंधन के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे। कन्हैया ने कहा कि भाजपा पूरे देश में नफरत फैला रही है। अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा जीत जाती है तो आगे से देश में चुनाव ही नहीं होगा।
दिलचस्प होगा बेगूसराय में मुकाबला
जो भी हो, कन्हैया भाजपा व पीएम मोदी के खिलाफ बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं। उनके साथ भाजपा विरोधी वोटों के ध्रवीकरण की संभावना है। बेगूसराय की लड़ाई भाजपा बनाम महागठबंधन हो या फिर भाजपा बनाम कन्हैया, इतना तो तय है कि मुकाबला दिलचस्प होगा। अगर वाम दल तीसरे फ्रंट को बनाने में कामयाब हो गए तो परिणाम चौंकाने वाले भी हो सकते हैं।
कौन हैं कन्हैया
कन्हैया कुमार फरवरी 2016 में चर्चा में आए थे जब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कश्मीरी अलगाववादी व भारतीय संसद पर हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के खिलाफ एक छात्र रैली में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में पुलिस ने देशद्रोह का मामला दर्ज किया, जिसमें कन्हैया भी आरोपित किए गए। दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था। दो मार्च 2016 को उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया। यह मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है।
कन्हैया कुमार छात्र जीवन से ही भाकपा से जुड़े रहे हैं। वे भाकपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय छात्र परिषद (एआइएसएफ) के नेता रहे हैं। वे 2015 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ के अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित हुए थे। वे बिहार के बेगूसराय के मूल निवासी हैं। कन्हैया कुमार भाकपा नेता हैं। वे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा की नीतियों के खिलाफ चेहरा बनकर उभरे हैं। उन्होंने एक किताब (बिहार टू तिहाड़) भी लिखी है।