प्रीति सिंह
देश के राजनीतिक दिग्गज जब मंच से गरजते हैं तो वह वास्तविकता से कोसों दूर रहते हैं। अपनी महत्ता को इस कदर परिभाषित करते हैं कि वह देश के किसी भी क्षेत्र से चुनाव लड़े तो जीत जायेंगे। ऐसा वह कहने से भी वह परहेज नहीं करते, लेकिन जब असलियत में ऐसी स्थिति आती है तो ये धुरंधर दिग्गज सुरक्षित सीट की तलाश में लग जाते हैं। चुनाव के कुछ महीने पहले ही अपने लिए सुरक्षित सीट की तलाश कर लेते हैं।
इन दिग्गजों को पूरा देश जानता है। ये दिग्गज राजधानी दिल्ली को ज्यादा समय देते हैं और बयानों से समय-समय पर टीवी से लेकर अखबार की सुर्खियों में रहते हैं लेकिन चुनाव लडऩे के लिए उन्हें मनमाफिक और सुरक्षित सीट की दरकार होती है। इस चुनाव में भी राजनीति के कई दिग्गजों ने मनमाफिक सीट न मिलने की वजह से मैदान छोड़ दिया है और कई मन बना रहे हैं।
लोकसभा चुनाव 2019 की सरगर्मी पूरे देश में चरम पर है। दिल्ली की कुर्सी हासिल करने के लिए सियासी जोड़तोड़ जारी है। राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व प्रत्याशियों के नाम का ऐलान भी कर रहे हैं। बीजेपी, कांग्रेस, सपा और बसपा जैसी पार्टियों ने अपने अधिकांश प्रत्याशियों की घोषणा कर चुके हैं, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के कई दिग्गज शीर्ष नेतृत्व के फैसले से खुश नहीं है।
मनमाफिक सीट न मिलने की वजह से वह मैदान छोडऩे को तैयार हैं। अपने राजनीतिक भविष्य के साथ वह कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं है। हार का डर हो या वजह कोई और हो, लेकिन कई दिग्गजों के सीट बदलने और मैदान छोडऩे की वजह से वह चर्चा में बने हुए हैं।
गिरिराज के चुनाव लडऩे से मना करने से बीजेपी की हो रही फजीहत
बीजेपी नेता व केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को मनमाफिक सीट नहीं मिली तो उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। उनकी नाराजगी बिहार में बीजेपी के लिए फजीहत का कारण बनती जा रही है। अपनी सीट बदले जाने से नाराज गिरिराज सिंह बेगूसराय से चुनाव लडऩे को कतई तैयार नहीं है। उनके खिलाफ मैदान में लेफ्ट पार्टी की ओर से कन्हैया कुमार हैं। इस सीट पर मुकाबला काफी पेचींदा हो गया है।
गिरिराज सिंह का कहना है कि जब किसी भी केंद्रीय मंत्री की सीट नहीं बदली गई तो उनके साथ पार्टी ऐसा क्यों कर रही है। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा करना भी था तो उन्हें विश्वास में लेना चाहिए था। गिरिराज सिंह 2014 लोकसभा चुनाव में नवादा सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे, लेकिन इस बार एनडीए गठबंधन के फॉर्मूले के तहत नवादा की सीट एलजेपी के खाते में चली गई है। ऐसे में पार्टी ने गिरिराज सिंह की सीट को बदलकर बेगूसराय से उन्हें टिकट दी गई है, पर गिरिराज सिंह बेगूसराय से लड़ने के लिए राजी नहीं है।
राशिद अल्वी ने भी किया किनारा
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता राशिद अल्वी ने भी चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है, जबकि राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि उन्हें मनमाफिक सीट नहीं मिली है, इसीलिए वह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। इसके अलावा उनका नाम कांग्रेस की पहली सूची में नहीं होने की वजह से भी वह नाराज चल रहे थे। उनका नाम पार्टी की 8वीं सूची में आया था। अमरोहा सीट से भाजपा ने कंवर सिंह तंवर और बसपा ने दानिश अली को मैदान में उतारा है। इस लोकसभा चुनाव में ऐसा पहली बार हुआ है जब पार्टी द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद किसी उम्मीदवार ने अपना नाम मैदान से वापस लिया है।
राज बब्बर ने भी बदली सीट
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राज बब्बर ने भी अपनी सीट बदल दी है। कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें मुरादाबाद से उम्मीदवार घोषित किया था लेकिन राजबब्बर ने वहां से चुनाव लड़ने से मना कर दिया। फतेहपुर सीकरी में भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन में बसपा की ओर से घोषित जाट उम्मीदवार को लेकर राज बब्बर ने नए समीकरण में अपनी उम्मीदवारी की अर्जी लगाई और नेतृत्व ने उसे मंजूर कर लिया है। मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र से मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे।
राज बब्बर 2009 में फतेहपुर सीकरी संसदीय सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि उन्हें बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी से यहां हार का सामना करना पड़ा था। राज बब्बर को यहां करीब नौ हजार वोटों से मात मिली थी। वह फतेहपुर सीकरी के करीब आगरा संसदीय सीट पर 1999 से 2004 तक सांसद रह चुके हैं।
उत्तराखंड में भी सुरक्षित सीट की तलाश में हैं दिग्गज
उत्तराखंड में भी कई कांग्रेसी दिग्गज सुरक्षित सीट की तलाश में जुटे हुए हैं। प्रीतम ङ्क्षसह, इंदिरा हृदयेश और हरीश रावत
मनमाफिक सीट न मिलने की वजह से सुरक्षित सीट की तलाश में हैं। जिस हरिद्वार को दो महीने पहले हरीश रावत ने अपना सबसे बड़ा मायका बताया था, आज वही हरीश रावत आखिर हरिद्वार से चुनाव नहीं लड़ना चाहते। इसकी चर्चा आजकल उत्तराखंड में हर तरफ हो रही है।
पहले प्रीतम सिंह ने टिहरी से चुनाव लड़ने से इनकार किया, हालांकि बाद में हां कर दी। वहीं नेता विपक्ष इंदिरा हृदयेश का कहना है कि हरिद्वार सीट पर हरीश रावत को हार का खतरा था। इसलिए वो बच रहे हैं और अब एसपी-बीएसपी भी हरिद्वार में उम्मीदवार उतार रहे हैं। कुल मिलाकर सभी अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने में लगे हैं। हालांकि प्रदेश महामंत्री राजपाल बिष्ट ने बड़े नेताओं को दिग्विजय सिंह के ट्वीट को आधार बनाकर सलाह दी कि उत्तराखंड कांग्रेस के नेता सुरक्षित सीट का मोह छोड़ें और चुनाव लड़कर कार्यकर्ता का मनोबल बढ़ाएं।
दिग्विजय सिंह से प्रेरणा लें नेता
सुरक्षित सीट की तलाश में जुटे नेताओं को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से प्रेरणा लेनी चाहिए जिन्होंने मौजूदा सीएम कमलनाथ के कहने पर कमजोर सीट से लड़ने की चुनौती स्वीकार की। 18 मार्च को दिग्विजय सिंह ने ट्वीट करते हुए कमलनाथ की चुनौती को स्वीकार किया था।
दरअसल दिग्विजय सिंह के राजगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा जोरों पर है क्योंकि उसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता है लेकिन 2014 की मोदी लहर में यहां कमल खिला था। खुद दिग्विजय सिंह यहां से चुनाव जीत चुके हैं लेकिन कमलनाथ चाहते हैं कि दिग्विजय सिंह उस सीट से चुनाव लड़ें जहां कांग्रेस लंबे अरसे से नहीं जीत पाई है। इसीलिए उन्होंने दिग्विजय सिंह को ट्वीट कर चुनौती दी। वहीं बातों बातों में दिग्विजय ने इतना तो साफ कर दिया कि वो लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं और कमलनाथ नहीं बल्कि राहुल गांधी जहां से कहेंगे वो वहां से चुनाव लड़ने को तैयार हैं।