जुबिली न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के जीआई उत्पादों की प्रदर्शनी दीन दयाल उपाध्याय हस्तकला संकुल में सोमवार को शुरू हुई। संयुक्त आयुक्त उद्योग उमेश सिंह ने कहा कि प्रदर्शनी में जीआई टैग वाले 28 उत्पाद भौतिक एवं आभासी स्टॉलों पर प्रदर्शित किए जा रहे हैं।
आयोजन उत्तर प्रदेश एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल एवं फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) ने मिल कर किया है। उन्होंने कहा कि प्रदर्शनी में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय खरीददारों और विक्रेताओं को परस्पर संवाद का बेहद प्रभावी मंच प्रदान कर किया जा रहा है। उन्होंने आम जनता से गुणवत्ता की गारंटी वाले उत्पाद खरीदने की अपील की।
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प्रदर्शनी के दौरान जीआई उत्पादों के लिए तकनीकी उन्नयन प्रशिक्षण कार्यक्रम में 240 हस्तशिल्पियों का प्रशिक्षण, सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग में 600 हस्तशिल्पियों एवं विभिन्न डिजाइन वर्कशॉप में 270 हस्तशिल्पियों को प्रशिक्षण दिया जायेगा।
2000 हस्तशिल्पियों को उन्नत टूलकिट भी प्रदान किए जाएंगे। साथ ही विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजनान्तर्गत 300 लाभार्थियों को टूलकिट प्रदान किए जाएंगे।इसके अलावा एक जिला एक उत्पाद टूलकिट प्रशिक्षण योजनान्तर्गत 300 लाभार्थियों को हैण्डलूम टूलकिट प्रदान किये जायेंगे। प्रदर्शनी के दौरान विक्रेताओं को ऑनलाइन वर्चुअल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से जीआई प्रोडक्ट्स से जुड़े पहलुओं पर ट्रेनिंग भी दी जा रही है।
उन्होंने कहा कि प्रदर्शनी में भाग लेने वाले विक्रेताओं ने जीआई टैग मिलने के कारण कोरोना महामारी के संकट काल में भी अपने उत्पादों की अच्छी बिक्री की है। जो इस बात का द्योतक है कि सरकार ने जिस गम्भीरता के साथ हस्तशिल्पियों के ‘वोकल फ़ॉर लोकल’ के नारे पर अमल किया उसके सुखद परिणाम सामने आ रहे हैं।
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प्रदर्शनी के पहले दिन जीआई के महत्व पर विस्तृत चर्चा की गई। सहायक आयुक्त नितेश धवन ने क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए जीआई के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने प्रतिभागियों को बताया कि ज्योग्राफिकल इंडीकेशन संबंधित क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत पर उस क्षेत्र के अधिकार की रक्षा करता है।
साथ ही पर्यटन और निर्यात को बढ़ावा देता है। उत्पाद का अंतरराष्ट्रीय ब्रांड मूल्य स्थापित करता है। इससे न केवल स्थानीय रोजगार के अवसर पैदा होते हैं बल्कि देश के सामाजिक आर्थिक विकास में योगदान मिलता है।
उन्होंने कहा कि सरकार उद्यमियों और हस्तशिल्पियों को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। प्रदर्शनी के माध्यम से उद्यमियों और हस्तशिल्प उद्योग से जुड़े लोगों को खरीददारों से सीधा जुड़ने का अवसर मिल रहा है। साथ ही वे विशेषज्ञों और अधिकारियों से अपनी समस्याओं एवं सुझावों को भी साझा कर सकते हैं।
इस वर्चुअल और फिजिकल प्रदर्शनी में प्रदेश के 16 जिलों के उत्पाद शामिल हैं। पद्मश्री डॉ. रजनीकांत ने जीआई सर्टिफिकेशन का इतिहास और इसकी यात्रा के संघर्षों को विस्तार से बताया।
उन्होंने सरकारों और औद्योगिक संगठनों से अपील की और कहा कि जीआई प्रोडक्ट्स को बढावा देने, संरक्षित करने और अंतराष्ट्रीय बाजार में विकास करने के लिए सामूहिक और समग्र प्रयास किया जाना चाहिए। इससे ‘उत्तर प्रदेश जीआई प्रोडक्ट्स एक्सपो 2021’ जैसे और भी आयोजन करने चाहिए।
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प्रदर्शनी में वाराणसी, भदोही, चंदौली, गाजीपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़, बुलंदशहर, फरूखाबाद, फिरोजाबाद, गोरखपुर, कानपुर, कन्नौज, लखनऊ, प्रयागराज, सहारनपुर एवं सिद्धार्थनगर के 50 जीआई उत्पादों के स्टाल लगाए गए हैं।
इस दौरान हस्तशिल्पियों द्वारा अपने उत्पादों का लाइव डेमो भी किया जायेगा। प्रदर्शनी के दौरान विक्रेताओं को ऑनलाइन वर्चुअल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से जीआई प्रोडक्ट्स से जुड़े पहलुओं पर ट्रेनिंग भी दी जा रही है।
प्रदर्शनी में दरी (आगरा), ब्लैक पॉटरी (आजमगढ़), हस्तनिर्मित कालीन(भदोही), खुर्जा पॉटरी (बुलंदशहर), कत्तों प्रिंट, बेडशीट (फर्रुखाबाद), कांच की बनी वस्तुएं (फिरोजाबाद), हस्त निर्मित दरियां( मिर्जापुर), चिकनकारी (लखनऊ), आर्ट मेटल वर्क (मुरादाबाद), सुरखा अमरूद (प्रयागराज) इत्र (कन्नौज), चमड़े से बनी वस्तुएं (कानपुर), टेराकोटा (गोरखपुर) जूट वाल हैंगिंग (गाजीपुर), पत्थर की शिल्पकला (वाराणसी), मेटल रिपोजी, बनारस ब्रोकेड (वाराणसी), लकड़ी के खिलौने (वाराणसी), गुलाबी मीनाकारी (वाराणसी), पंजादारी (वाराणसी), ग्लास बीड्स (वाराणसी), ज़री जरदोजी (वाराणासी) काष्ठ शिल्प कला (वाराणसी) ब्लैक पॉटरी (आजमगढ़) जैसे हस्तशिल्प उत्पादों के अलावा सिद्धार्थनगर का काला नमक चावल भी प्रदर्शित किया गया है, जिसके पास जीआई टैगिंग है।
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