सैय्यद मोहम्मद अब्बास
खेलों से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती है जीन डोपिंग। पिछले चौदह साल से अधिक समय से विशेषज्ञ इसका हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन इस चुनौती का हल निकालने का कोई ठोस तरीका सामने नहीं आ पाया है। इसका नतीजा है कि जीन डोपिंग का प्रयोग करने वाले खिलाड़ी पकड़ में नहीं आ रहे है।
डोपिंग कई बड़े-बड़े खिलाडिय़ों का कॅरियर तबाह कर चुका है। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों के एथलेटिक्स डोपिंग के चक्कर में अपना कॅरियर तबाह कर चुके हैं। अतीत में विश्व डोपिंग निरोधक एजेंसी ने कुछ साल पहले खुलासा किया था कि लांस आर्मस्ट्रांग के दौर में साइकिलिंग में सभी डोपिंग में लिप्त थे। जांच होने लगी तो कुछ चौंकाने वाले खुलासे भी सामने आये तब जाकर पता चला कि खिलाडिय़ों ने डोपिंग का एक और अवतार इजाद कर लिया है जिसे जीन डोपिंग के नाम से जाना गया।
क्या है जीन डोपिंग
जीन डोपिंग की मदद से इंसान की आनुवांशिक बुनावट में इस तरह से फेरबदल किया जाता है कि शरीर की मांसपेशियां पहले से अधिक मजबूत और गतिशील हो उठती हैं। उदाहरण के लिए, जीन चिकित्सक प्रयोगशाला में तैयार खास कृत्रिम जीन को मरीज के जीनोम (जीन का समूह) से जोड़ते हैं। फिर इस जीन को प्रभावहीन वायरस की मदद से मरीज के अस्थि-मज्जा में पहुंचाया जाता है। ऐसा करने से शरीर की मांसपेशियों को तैयार करने वाले हार्मोन उत्तेजित हो जाते हैं, लाल रक्त कणों का बनना बढ़ जाता है। मरीज की कोशिकाओं में पहुंचकर यह नया जीन दवा की तरह काम करता है। दूसरी ओर, इससे एथलीटों को अपने प्रदर्शन के दौरान अधिक से अधिक ऑक्सीजन मिलती है और वे थकते नहीं हैं।
2003 में डोपिंग की लिस्ट में शामिल हुआ जीन थेरेपी
जीन डोपिंग की गंभीरता को देखते हुए ही विश्व एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) को साल 2003 में जीन थेरेपी को डोपिंग की लिस्ट में शामिल करने पर मजबूर होना पड़ा। इसके बाद 120 डीएनए पॉलीमार्फिज्म की पहचान भी की गर्ई लेकिन इसे पकडऩे में अभी तक कुछ खास कामयाबी हाथ नहीं लगी है। जानकार बताते हैं कि यह इतनी खतरनाक होती है कि इसे पकडऩा आसान नहीं होता है और कृतिम व प्राकृतिक तौर पर बनेे जीन हार्मोन में अंतर करना भी अभी तक किसी के बस में नहीं रहा है। जीन थेरेपी या फिर जीन डोपिंग का इस्तेमाल कर सबसे ज्यादा चीनी एथलीट और साइकिलिस्टों ने इसके सहारे अपने खेल को चमकाया और खेल की गरिमा को तार-तार किया।
कैसे आया पकड़ में जीन डोपिंग
जीन थेरेपी के लिए साल 2003 अहम माना जाता है, क्योंकि इसी साल चीन में जेंडीसाइन नाम की जीन आधारित दवा सामने आयी जो कैंसर के इलाज के लिए काम आती है। इसी साल यह भी पता चला कि कुछ केमिस्ट ट्रेनर व खिलाडिय़ों के साथ मिलकर साजिश किए और वही से जीन डोपिंग की शुरुआत हुई। खिलाड़ियों को बरगलाया गया कि इससे वह बेहतर प्रदर्शन कर सकते है। इसी कड़ी में दो खिलाडिय़ो के नाम भी सामने आये जिन्होंने अपने प्रदर्शन में सुधार के लिए ईपीओ हार्मोन का इंजेक्शन लिया था। विशेषज्ञों का मानना है कि ईपीओ जीन को शरीर में जीन थेरेपी के माध्यम से भी प्रवेश कराया जा सकता है जिसकी पकड़ वर्तमान में अंसभव है। शायद इसी का फायदा खिलाड़ी उठा रहे हैं। दरअसल शक इसलिए भी ज्यादा होता है क्योंकि खिलाडिय़ों का प्रदर्शन अचानक से बेहतर हो जाता है लेकिन वह पकड़ में नहीं आते। इसलिए जीन डोपिंग विश्व खेल जगत के लिए चुनौती बना हुआ है।
क्या कहना है विशेषज्ञ का
विश्व खेल जगत में डोपिंग का खेल भी लगातार बढ़ रहा है। खिलाड़ी बगैर मेहनत के कुछ ऐसी दवाओं का सेवन करते हैं जो शायद खेल की गरिमा को तार-तार करते हैं लेकिन विश्व डोपिंग विरोधी संस्था ने ऐसे खिलाड़ियों पर नकेल कसी है जो ताकत बढ़ाने के लिए शक्तिवर्धक दवाओं का सेवन करते हैं। ये सब तो पकड़ आ जाता है लेकिन जीन डोपिंग एक नया खेल शुरू हो गया है जो अब तक पकड़ में नहीं आता है। विश्व डोपिंग विरोधी संस्था इस पर काम कर रही है। खिलाड़ी चोटिल होने के बाद दवाओं की आड़ में जींस से छेड़छाड़ करता है। जो इतनी आसानी से पकड़ में नहीं आती है।
डॉ संजीव यादव, वैज्ञानिक, सीएसआईआर-सीडीआरआई