राजीव ओझा
भारतीय रेल में एक लोकप्रिय नारा हर जगह दिखता है- सावधानी हटी दुर्घटना घटी। यह स्लोगन अभी भी मौजू है और हर क्षेत्र पर लागू होता है। असल में हम भारतीयों के डीएनए में ही कुछ ऐसा है कि हममें से मेजोरिटी स्वभाव से ही बेअंदाज और अनुशासनहीन है। लोग अनुशासन में तभी आते हैं जब भय दिखाया जाता है।
यह हमारे दिनचर्या की हर छोटी-बड़ी चीजों पर लागू होता है। चाहे परिवहन की बात हो या पर्यावरण की, प्रदूषण की बात हो या पॉलीथिन की। लोग सहूलियत और सस्ते को अपनी समस्या के ऊपर रखते हैं। यह अलग बात है सुविधा और सस्ते की बहुत बड़ी कीमत हमसब को चुकानी पड़ती है। यानी अंततः नुक्सान जनता को ही झेलना पड़ता है। पॉलीथिन के मामले में यही हो रहा है।
डर के बिना अनुशासन नहीं
उत्तर प्रदेश सरकार ने सत्ता में आने के बाद पॉलीथिन पर सख्ती दिखाई और लोगों ने शुरू में सहयोग भी किया, भले ही जुर्माने के भय की वजह से किया हो। लोग अपने साथ झोला लेकर जाने लगे, दुकानदार भी कागज या इकोफ्रेंडली थैले रखने लगे। कुछ दिन कराहते, रोते पीटते यह चला लेकिन जैसे ही अधिकारी ढीले पड़े, बैतलवा फिर डाल पर।
पॉलीथिन फिर गोदामों में से निकल आई है, दुकानदारों की छिपा कर रखी गई पोलिथीन लोगों को पहले की तरह रिझाने लगी है। आपको याद होगा उत्तर प्रदेश में पॉलिथीन के इस्तेमाल पर 15 जुलाई से रोक लगा दी गई थी। यह सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पॉलिसी के तहत लागू हुआ था। शुरू में इसका कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा। इसके बाद सरकार ने सख्ती दिखाई। उसका असर भी दिखा।
प्रतिबंधित पॉलीथिन का इस्तेमाल करने पर भारी जुर्माने के आलावा पुलिस धारा 151 के तहत शांतिभंग में कार्रवाई करके गिरफ्तारी भी कर सकती है। इसका असर यह हुआ कि कूड़े के ढेर में और नाली-नालों में पॉलीथिन कम दिखने लगी। लेकिन जैसे ही प्रशासन ढीला पड़ा पॉलीथिन का प्रयोग फिर बढ़ने लगा।
जो दुकानदार मांगने पर भी पॉलीथिनन नहीं देते थे, वह अब बिना मांगे सौदा पॉलीथिन में देने लगे हैं। नगर निगम की माने तो अब फिर शहर के कूड़ाघरों में अधिक मात्र में पॉलीथिन आने लगी है। साफ है कि उसका चलन फिर बढ़ रहा है। गाँधी जयंती से पूरी तरह प्रतिबंधित की गई पॉलीथिन बाजारों में फिर आ गई है। यह पर्यावरण के लिए खतरे का संकेत है।
2 अक्टूबर से प्रदेश के सत्रह विभागों को प्रतिबंधित पॉलीथिन को रोकने का जिम्मा दिया गया था। विभागों के ढीला पड़ते ही स्वच्छता की बड़ी दुश्मन पॉलीथिन बाजार में लौट आई है। मुख्यमंत्री ने संकल्प दिलाया था कि कोई न तो पॉलीथिन का उपयोग करेगा और न ही किसी को उसका उपयोग करने देगा। लेकिन ऐसा लगता है इसका ख़ास असर नहीं पड़ा है।
पॉलीथिन और प्लास्टिक पर्यावरण को बना देंगे गैसचेंबर
वायु प्रदूषण के साथ ही प्लास्टिक कैरी बैग में सामान रखना, पोलिथीन में गर्म पेय रखना स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक है। इससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। पॉलीथिन और प्लास्टिक मिट्टी के साथ ही पानी को भी प्रदूषित करतीं है। यही कारण है कि कई दक्षिण एशियाई देश प्लास्टिक के डंपिंग ग्राउंड बनते जा रहे हैं।
पर्यावरण विशेषज्ञ बताते हैं कि प्लास्टिक फाइबर बनाने पर नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड निकलकर वायुमंडल में मिलती है। यह पेड़-पौधों और फसलों को नुकसान पहुंचाती है। पॉलीथिन भी प्लास्टिक का ही रूप है। इसके 50 हजार बैग बनाने पर तकरीबन 17 किलो सल्फर डाइऑक्साइड गैस वायुमंडल में घुल जाती है। इसके अलावा मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन और हाइड्रोकार्बन वायु में बढ़ जाती है। प्लास्टिक में मौजूद पॉली एथिलीन (पॉलीथिन) एथिलीन गैस बनाती है।
वहीं, पॉली यूरोथेन नामक रसायन पाया जाता है। इसके अलावा पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) भी पाया जाता है। प्लास्टिक अथवा पॉलीथीन को जमीन में दबाने से गर्मी पाकर विषाक्त रसायन जहरीली गैसें पैदा कर देते हैं। लेकिन लोगों में जागरूकता में कमी है। सहूलियत और सस्ता उनकी प्राथमिकता है उन्हें उन्हें नहीं मालूम कि इससे जो संकट या समस्या खड़ी होगी उसकी बहुत बड़ी कीमत उन्हें ही चुकानी पड़ेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)