जुबिली न्यूज डेस्क
2012 के बाद से ऐसा पहली बार होगा कि कुवैत की संसद में एक भी महिला सदस्य नहीं होगी। पिछले दिनों कुवैत में हुए संसदीय चुनाव में सभी महिला उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा।
शनिवार को कुवैत में 50 सदस्यीय संसद के सदस्यों का चुनाव हुआ था। चुनाव मैदान में 326 उम्मीदवार थे, जिसमें 29 महिला उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमा रही थीं, मगर एक भी महिला उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल नहीं हो पाई।
कुवैत में चुनाव ऐसे समय में हुआ था जब तेल समृद्ध देश कोरोना वायरस महामारी के दौरान आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहा है।
गौरतलब है कि कुवैत में महिलाओं को मतदान का अधिकार 15 साल पहले ही मिला है।
शनिवार का चुनाव कुवैत के अनौपचारिक विपक्ष के लिए एक जीत थी, जिसके उम्मीदवारों ने सप्ताहांत के चुनावों में संसद की लगभग आधी सीटें जीतीं।
विपक्षी उम्मीदवार भ्रष्टाचार और उच्च ऋण पर सुधार की मांग के साथ चुनाव में उतरे थे। संसद की 50 में से 24 सीटें ऐसे लोगों ने जीती हैं जिनका संबंध या झुकाव विपक्ष की ओर है, पिछली बार यह संख्या 16 थी।
इस चुनाव में 30 ऐसे प्रत्याशी चुने गए हैं जिनकी उम्र 45 वर्ष से कम हैं और वे देश में नए कानून बनाने पर अपनी राय रख पाएंगे। फिलहाल इनकी जीत से युवाओं में यह संकेत गया है कि देश में बदलाव और सुधार होगा।
1960 में कुवैत में ऐसी संसदीय प्रणाली लागू की गई, जिसमें महिलाओं को पूरी तरह से राजनीतिक प्रक्रिया से बाहर रखा गया था। उन्हें न तो पुरुषों के समान मत डालने का और न ही चुनाव लडऩे का अधिकार दिया गया।
कट्टरपंथियों की नजर में औरत को राजनीतिक अधिकारों से सशक्त करना गैर इस्लामिक था। इसी मानसिकता के चलते नारीवादियों ने औरत को उसके पूर्ण राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए करीब चार दशकों तक संघर्ष किया।
1999 में तत्कालीन अमीर शेख जबरल-अहमदल सबह ने संघर्ष को जोर पकड़ते देख महिलाओं को मताधिकार देने संबंधी अध्यादेश संसद में रखा, मगर संसद में इस्लामिक चरमपंथियों ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए अध्यादेश के विरोध में मतदान कर औरतों का राजनीति से बेदखल कर दिया।
लेकिन महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों ने हार नहीं मानी और अपनी मुहिम को और तेज कर दिया। कई पुरुष भी इस मुहिम से जुड़ गए। उनकी मेहनत रंग लाई और 6 साल बाद 2005 में संसद में एक बिल पारित कर पहली बार कुवैत की महिलाओं को चुनाव लडऩे और मत डालने का अधिकार दिया गया।
कुवैत की महिलाओं ने पहली बार संसद में 2009 में मौजूदगी दर्ज कराते हुए चार सीटें जीती और इस प्रकार किसी भी खाड़ी देश की संसद में महिलाओं के प्रवेश की शुरूआत कुवैत से हुई।
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1963 में, कुवैत एक निर्वाचित संसद की स्थापना करने वाला खाड़ी क्षेत्र का पहला देश बना था और यह नियमित रूप से स्वतंत्र संसदीय चुनाव कराता आया है
2011 में अरब क्रांति के दौरान प्रदर्शनों के बाद से कुवैत की संसद सत्तारूढ़ अल सबाह परिवार के विरोध के मामले में कमजोर हो चुकी है। उस समय कुवैत में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसने सत्ता पक्ष को हिलाकर रख दिया था।
शनिवार को चुनाव शेख नवाफ अल-अहमद अल-सबाह के नेतृत्व में हुए। सितंबर में कुवैत के अमीर शेख सबाह के निधन के बाद शेख नवाफ ने सत्ता संभाली थी।
भले ही कुवैत में स्वतंत्र संसदीय चुनाव होता आया हो लेकिन सत्ता प्रभावी रूप से अल-सबाह परिवार और अमीर के हाथों में ही रहती है, जो सरकार की नियुक्ति करता है।
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सभी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध के बीच उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन कई लोग स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, उनमें से एक अलग-अलग विचारधारा वाले लोगों का विपक्षी समूह है जो दलों के बजाय व्यक्तियों से बना एक विपक्षी गठबंधन है।
डीडब्ल्यू हिंदी के मुताबिक कुवैती महिला सांस्कृतिक और सामाजिक संस्था की प्रमुख लुलवा सालेह अल-मुल्ला कहती हैं कि चुनाव नतीजे थोड़े कड़वे हैं। उन्हें संसद के लिए चुने गए युवा सांसदों से काफी उम्मीद है लेकिन महिलाओं के प्रतिनिधित्व की कमी से वे निराश हैं।
सालेह कहती हैं, “फिर भी, लोगों ने बदलाव के लिए चुनावों में सकारात्मक रूप से भाग लिया और कुछ ऐसे भ्रष्ट तत्वों को हटा दिया जिन्होंने लोकतंत्र की छवि को बिगाड़ दिया था और अपने पद का दुरुपयोग किया था।”