न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी पूरी दुनिया के लिए चुनौती बनी हुई है। इस महामारी पर नियंत्रण करने के लिए सारे देश प्रयास कर रहे हैं, लेकिन इस प्रयास में मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के दूसरे नियम चुनौती बनकर सामने आ रहे हैं। जैसे कि सामान उसी को मिलेगा जो सबसे ऊंची कीमत लगाए या फिर जो सबसे ज्यादा मात्रा में खरीदेगा, वो सामान ले जाएगा। ये नियम अमल में थे, हैं और यही रहेंगे।
कोरोना वायरस से लड़ाई में मास्क, ग्लब्स, पीपीई, रेस्पिरेटर्स, मैकेनिकल वेंटिलेटस आदि सबसे अहम हथियार है। इसकी मांग इन दिनों बढ़ गई है। यह कहें कि इस समय पूरी दुनिया में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर आपातकालीन स्थिति बन गई है तो गलत नहीं होगा। दुनिया के सभी देशों को इसकी जरूरत है लेकिन मिल उन्हें रहा है जो इन सामानों के लिए ऊंची कीमत चुका रहे हैं।
कुछ दिनों पहले जर्मनी और फ्रांस ने आरोप लगाया है कि अमेरिका की वजह से उन्हें मास्क नहीं मिल पा रहा है क्योंकि वह ऊंची कीमत पर सारे मास्क खरीद ले रहा है। फ्रांस इसलिए मास्क नहीं खरीद पाया क्योंकि कुछ अमरीकी खरीददारों ने इसकी ज़्यादा ऊंची कीमत नकद में अदा कर दी थी। फ्रांस की एक प्रांतीय सरकार के अध्यक्ष रेनॉड मुसेलियर ने मीडिया को बताया था, “चीन की एक रनवे पर फ्रांस के लिए मास्क ले जा रहे जहाज का सामान अमरीकियों ने नकद में खरीद लिया, जिसकी वजह से प्लेन अमरीका चला गया.”
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ऐसी ही शिकायत जर्मनी ने की थी। जर्मनी के अधिकारियों ने ये आरोप लगाया कि बर्लिन पुलिस के लिए दो लाख मास्क की खेप ले जा रही शिपमेंट को अमरीका ने थाईलैंड में ‘जब्त’ कर लिया था। जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी के एक सदस्य ने कहा था, “पैसे की उन्हें कोई चिंता नहीं है। वे कोई भी कीमत देने को तैयार हैं क्योंकि वे डेस्परेट हैं। भले ही वैश्विक संकट का समय हो पर हम जंगलियों की तरह तो बर्ताव नहीं कर सकते हैं।”
हालांकि इन आरोपों को ट्रंप प्रशासन ने सिरे से नकार दिया था। उनका कहना था कि वह देश के बाहर किसी तरह की कोई चीज जब्त नहीं कर रहे हैं। इसके बाद जर्मनी की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। अब सवाल उठता है कि अगर जर्मनी और फ्रांस जैसे अमीर देशों का ये हाल है तो कमजोर देशों से क्या उम्मीद की जा सकती है।
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ऐसा ही कुछ पिछले महीने कोरोना संक्रमण से बुरी तरह जूझ रहे स्पेन के साथ हुआ था। स्पेन के तीन हेल्थ ट्रस्ट ने सैकड़ों वेंटिलेटर्स की जो खेप खरीदी थी, उनसे लदे हुए जहाजों को तुर्की सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया था। स्पेन के मीडिया ने अपनी सरकार के हवाले से तुर्की की इस करतूत को ‘चोरी’ करार दिया। लगभग एक सप्ताह के खींचतान के बाद आखिरकार स्पेन, अपने मेडिकल उपकरणों से लदे जहाज, तुर्की के शिकंजे से छुड़ाने में सफल रहा। इसके अलावा स्पेन को फ्रांस जो उसका यूरोपीय साझीदार देश है उससे भी बाधा का सामना करना पड़ रहा है। फ्रांस ने अपने यहां से गुजरने वाले पीपीई किट्स की खेप को रोक लिया था।
यह सब अब आम बात हो गई है। इसीलिए कहा जा रहा है कि अगर किसी को चीन से जरूरी सामान की खरीददारी करनी है तो वह अपना हवाई जहाज भेजने से पहले प्लेन के रूट और उसके रूकने के बारे में पहले ही गौर कर लें। ऐसा इसलिए ताकि उसका जहाज उस तक सामान लेकर पहुंच आए, न कि रास्ते में किसी दूसरे देश की सरकार उसे जब्त न कर ले। इन हालात को देखते हुए पेरू की सरकार परेशान है। उन्हें सूझ नहीं रहा कि वह चीन से अपना सामान कैसे मंगाएं।
यह सब जो हो रहा है इससे दुनिया में कारोबारी लड़ाई की तस्वीर उभरती हुई दिख रही है। कई देशों की सरकारें इसकी शिकायत कर रही हैं। भले ही इसमें कुछ भी गैर-कानूनी नहीं हो पर हालात अच्छे नहीं कहे जा सकते।
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विशेषज्ञों के मुताबिक इस कोरोना महामारी ने भूमंडलीकरण और मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया है। फेस मास्क, ग्लब्स, गाउन जैसे पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) की जबर्दस्त मांग है, लेकिन आपूर्ति सीमित है। जो समस्या यूरोपीय देशों के साथ है, वो दूसरे देश भी झेल रहे हैं। दिक्कत ये है कि जो अतिरिक्त पैसा मांगा जा रहा है, वो देने के लिए नहीं है।
कई देशों में जहां फेस मास्क, ग्लब्स, गाउन जैसे पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट का उत्पादन किया जाता है वहरं अपने अस्पतालों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए इसके निर्यात पर पाबंदी लगा दी है। इनमें भारत, तुर्की और अमरीका जैसे देश शामिल हैं।
कोरोना इस दुनिया से कब जायेगा यह किसी को नहीं मालूम। अब तक इसकी चपेट में 19 लाख से ज्यादा लोग आ चुके हैं और एक लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गवां चुके हैं। इस संकट की घड़ी में दुनिया के देशों के बीच भरोसा कमजोर हुआ है। कोरोना ने सरकारों और बाजार अर्थव्यवस्था का सबसे घिनौना चेहरा हमारे सामने लाकर रख दिया है।
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