ओम दत्त
देश भर में जितने लोग अब तक कोरोनावायरस से मरे उतने ही लगभग लोग अब पैदल चलते हुए मर चुके हैं। दिल्ली से आजमगढ़ जाते हुए मजदूर राम नयन डबडबाई आंखों से बताता है कि हम भी तो मौत से ही भाग रहे हैं।
भूखे प्यासे पत्नी और छोटे-छोटे बच्चों के साथ सिर पर गठरी लादे कई सौ किलो मीटर पैदल चलकर घर पहुंचने की आशा में लड़खड़ाते कदमों से चलते हुए मजदूरों के हुजूम को देखकर हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है । विश्वव्यापी महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए, पूरे देश में पहले “जनता कर्फ्यू” और फिर 21 दिनों का “लाक डाउन”करके सरकार ने एक साहसिक और संवेदनशील कदम उठाया।
एक नए शोध में पाया गया है कि,यदि अधिकांश आबादी लाक डाउन में नहीं होती तो कोरोना वायरस के चलते अब तक दुनिया में चार करोड़ से ज्यादा मौतें हो चुकी होती और कई अरब लोग इससे संक्रमित हो चुके होते। इसी से साफ अंदाजा लगता है कि कोरोना वायरस की रोक के लिए लाक डाउन कितना महत्वपूर्ण है।
जिस तरह से विश्व के बड़े और संसाधन संपन्न देशों में करोना का फैलाव हुआ है वैसे अभी तक भारत में इसका असर तेज नहीं हो पाया। “लाक डाउन” यानी जो जहां है वहीं रहे और यदि कोई रास्ते में है तो उसे सुरक्षित स्थान पर भेज दिया जाए।
ऐसा माना जाता है कि संक्रामक वायरस के फैलने को ,सबसे अच्छा माहौल सार्वजनिक परिवहन में मिलता है।यही वजह है कि सरकार ने सबसे पहले रेल और बस सेवा बन्द कर दिया गया।
लेकिन जिस तरह से यूपी, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के प्रवासी मजदूरों का अपने घर के लिये पलायन शुरू हुआ , लाखों की संख्या में पिछले दिनों आनन्द विहार में इनका जमावड़ा भी दिखा और अभी तक दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात,कोलकाता और अन्य महानगरों से पैदल ही लोग घर को चल चल पड़े और इनका रेला अब तक टूटा नहीं है।
इस कारण से सोशल डिस्टेंसिंग का मकसद समाप्त हो गया और वायरस चेन को तोड़ना हुआ मुश्किल। यह एक चिंता का विषय है । इन प्रवासी मजदूरों के बडी़ संख्या में पलायन ने लाक डाउन की धज्जियां उड़ा कर रख दिया है। शंका होने लगी है कि कहीं इन प्रवासी मजदूरों में यदि कोई संक्रमित हुआ तो वायरस कितनों में फैलेगा फिर कैसे जल्दी इस पर लगाम लगेगी।
इसलिये अब जरूरत आन पड़ी है कि यह विचार हो कि आखिर यह प्रवासी मजदूर क्यों पलायन करने के लिए मजबूर हो गए और इनको पलायन से रोकने के लिये किस किस ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के एक तिहाई मजदूर भारत के 92% असंगठित क्षेत्र के हैं जिनका ना कोई अपना संगठन है ना ही निश्चित वेतन। आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 14 करोड़ के आस-पास प्रवासी मजदूर हैं जो बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार से आते हैं।
माना जाता है कि हिंदी पट्टी के 4 राज्यों उत्तर प्रदेश बिहार मध्य प्रदेश राजस्थान से लगभग 50% प्रवासी मजदूर महानगरों में आते हैं। दिल्ली या मुंबई इन प्रवासी मजदूरों के पसंदीदा शहर है जहां ये बड़ी संख्या में काम करते हैं।
इन मजदूरों के बीच काम करने वाले एक समाजसेवी का कहना है कि काम बंद होने के बाद इन दिहाड़ी मजदूरों के उनके पास रूपये पैसे,खाने को अनाज नहीं है ,दुकानें और फैक्ट्रियों के बन्द होने से इनके सर पर छत भी नहीं रही जिससे ऐसे मजदूरों में असुरक्षा की भावना घर कर गयी।
कौन हैं प्रवासी मजदूरों के पलायन के जिम्मेदार
बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों के पलायन, के लिये अकेले सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता है इसके लिये सरकार में बैठे नीति निर्धारक, गृह मंत्रालय का खुफिया तंत्र, राज्यों के मुख्य मंत्री, देश की बडी़ राजनीतिक पार्टियां, सांसद, विधायक, छोटी बड़ी फैक्ट्रियों के मालिक, कन्स्ट्रक्शन कराने वाले ठीकेदार, बड़े दुकानदार ये सभी जिम्मेदार हैं।
आइयें जानें ये सभी कैसे और कितने जिम्मेदार हैं-
देश का गृह मंत्रालय रहा बेखबर
देश में लाक डाउन को लागू करने की जिम्मेदारी होती है और खुफिया तंत्र इस मंत्रालय के अधीन आता है। देश के गृह मंत्रालय को इस बात की जानकारी होनी चाहिये थी कि लाखों की संख्या में लोग लाक डाउन तोड़ने के तैयार हैं,और उन्हें उनकी उन्हीं की जगहों पर रोकना होगा।लेकिन सरकार के गृह मंत्रालय को इसकी भनक तक न लगना उसकी नाकामी को तो दर्शाती ही है।
साथ ही यह सवाल भी उठता है कि इतनी बड़ी राष्ट्रीय आपदा को गंभीरता से नहीं लिया गया। एक तरीके से गृह मंत्रालय इस नाकामी ने कोरोना जैसी वैश्विक महामारी को रोकने के लिये प्रधानमंत्री के लाक डाउन जैसे कदम को काफी कमजोर कर दिया है।
प्रदेश की सरकारों ने प्रवासी मजदूरों के जीवन यापन की नहीं सकारात्मक पहल
किसी भी प्रदेश का निवासी हो, वह जिस भी प्रदेश में है, आपात स्थिति में प्रदेश की सरकार का दायित्व है कि उसका ध्यान रखे। लाक डाउन होने के तुरंत बाद मुख्य मंत्रियों ने अपने प्रदेश के ऐसे प्रवासी श्रमिकों के पलायन को रोकने की सकारात्मक पहल तत्काल नहीं की, यदि किया होता तो इनके पलायन पर रोक लग सकती थी।
किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री के पास इसकी जानकारी होती है कि उनके राज्य में कितनी संख्या में प्रवासी मजदूर हैं जो दैनिक कमाई पर जीते हैं, उनके पास छत नहीं है और वह 21 दिन तक कैसे जीवन यापन करेंगे, लेकिन इन्होंने उनकी कोई सुध नहीं ली।
अब जबकि दिल्ली से लाखों मजदूर पलायन कर गये हैं तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने फिर विज्ञापन दिया है जिसमें उनके प्रति कृतज्ञ होने के लिये उनकी फोटो भी छपी है जिसमें लिखा है-
“अब दिल्ली सरकार ने आप सभी के रहने और खाने का पूरा इंतजाम कर लिया है आपको दिल्ली छोड़कर जाने की जरूरत नहीं”।
सांसद, विधायकों में प्रवासी मजदूरों के लिये नहीं दिखी हमदर्दी
दिल्ली में आनन्द विहार की लाख़ों की भीड़ ने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया।अभी कम दिन ही हुए हैं दिल्ली की एसेम्बली के इलेक्शन हुए। सभी दलों ने सर्वे कराया कि किस प्रदेश के कितने लोग दिल्ली में हैं उसमें श्रमिकों का भी आंकडा़ होगा इनके पास।
भाजपा ने तो यूपी बिहार के ऐसे लोगों में अपनी स्वीकार्यता बनाने के लिये बिहार से आने वाले को अपना प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। आप पार्टी तो झाडू़ लेकर गरीब ई रिक्शे वालों तक में पैठ बना लिया और गद्दी भी ले ली।लेकिन किसी राजनीतिक दल ने अपनी पार्टी फण्ड से भुखमरी के दरवाजे पर खडे़ इन मजदूरों पर एक दमड़ी भी नहीं खर्च की ।
एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट कहती है कि 31 अक्टूबर 2019 की आडिट रिपोर्ट के अनुसार देश के 6 दलों को चंदे के रूप में 3,698.66 करोड़ रुपए मिला है। इन दलों में भाजपा ,बसपा, एनसीपी, सीपीआई, सीपीआई(मार्क्सवादी), एआईटीसी शामिल हैं।
यूपी ,बिहार के लोगों के भले के लिये दम भरने वाले बीजेपी नेता मनोज तिवारी और 3410 करोड़ का चन्दा बटोरने वाली भाजपा ,प्रधान मंत्री के लाक डाउन का पालन कराने के लिये दिल्ली में ही इन प्रवासी मजदूरों की भूख प्यास मिटाने के लिये एक पाई अपनी गांठ से नहीं दे पाई।
कांग्रेस पार्टी की एक बडी़ नेता तो संचार मंत्रालय से लेकर कइयों को लगातार नसीहत दे रही है़ लेकिन विपदा की घडी़ में दिल्ली में इन श्रमिकों के लिये 21 दिन का न सही कुछ दिनों तक तो दाना पानी के लिये कुछ दे दीं होंती।
भुखमरी के शिकार इन दलितों और गरीबों की सबसे बडी़ हमदर्द होने का दम भरने वाली बहन मायावती ने भी अपनी पार्टी के फण्ड से फूटी कौडी़ भी नहीं दी
सांसद और विधायकों ने क्या दिया
सांसदों और विधायकों की भी चर्चा जरूरी है, क्योंकि करोना के लिये सबसे दुखी यही दिखे और एक सांसद ने एक करोड़, कुछ सांसदों और विधायकों ने लाखों रूपये करोना के नाम पर दे डाले। लेकिन रूकिये यहां उन्होंने अपनी निधि (सरकारी धन) से दिया अपनी गांठ से नहीं।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स( एडीआर) के अनुसार 83% सदस्य 521 मौजूदा सांसदों में करोड़पति हैं और इनकी औसत संपत्ति 14.72 करोड़ थी। यह आंकड़ा 2014 में इनके द्वारा दिए गए शपथ पत्र के आधार पर है।
उद्योगपति, ठेकेदार, दुकानदार भी नहीं हैं कम जिम्मेदार
मजदूरों का पलायन जिस तरह हुआ और लाखों मेहनतकश लोगों को शहर छोड़ कर जाना वह उद्योगों की कमर तोड़ने के लिए काफी है। छोटे कारखानों में काम करने वाले कामगारों, मजदूरों के प्रति उनके मालिकों की संवेदनहीनता थी जिसके कारण उन्हें फैक्ट्री में ही रहने की जगह नहीं दी गई, ठीकेदारों ने उनको बेसहारा छोड़ दिया और बडे़ दुकान मालिक भी बरसों से लगे लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया जिससे अव्यवस्था फैल गई।
प्रवासी मजदूर जो किसी तरह से अल्प भोगी होकर जीवन चला रहे थे भुखमरी और आश्रय हीन होकर बेबसी में अपने घरों की ओर पलायन करने के लिये मजबूर हो गये। 21दिन के बाद अब वह परदेस फिर वापस आएंगे ,इसमें संशय है।मजदूरों के पलायन करने से लाक डाउन के बाद भी फैक्ट्रियां ,दुकान धंधे सभी प्रभावित होंगे और अर्थव्यवस्था को झटका लगने की पूरी गुंजाइश है।