प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. फिराक हिन्दुस्तानी संस्कृति की रूह के विशिष्ट शायर थे. कई भाषाओं के विद्वान भाषण कला में अद्वितीय और गद्य व पद्य दोनों में माहिर थे. उर्दू शायरी के इतिहास में उनका और उनके समय का खास अध्याय है.
यह बात अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष प्रो. इर्तिजा करीम ने व्यक्त किये. हिंदी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी के 28वें पांच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन के दूसरे दिन जो रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लखनऊ से आयोजित आनलाइन संगोष्ठी में देश-विदेश से विद्वान विचार व्यक्त कर रहे थे.
यह वार्षिक आयोजन कोविड-19 के नियमों के पालन के साथ हो रहे इस ऑनलाइन सम्मेलन के तीसरे दिन कल दोपहर बाद सुप्रसिद्ध गीतकार समीर अनजान साहित्य शिरोमणि अवार्ड से पूर्व राज्यपाल राम नाईक को मुम्बई में अलंकृत करेंगे.
अध्यक्षीय वक्तव्य में दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष प्रो. इर्तिजा करीम ने फिराक पर लखनऊ में ही कमेटी की ओर से 1990 में हुए सेमिनार की यादों को ताजा करते हुए कहा कि इंसानी कमियां फिराक में भी थीं मगर उनकी शायरी में जो कुछ नजर आता है वह उनके व्यक्तित्व का दूसरा आयाम है. वास्तविकता यह है कि उन्होंने जिन्दगी की बहुत सी मुश्किलों को बर्दाश्त किया और उन्हें शायरी के अपने नये ढंग से उजागर किया.
संगोष्ठी की शुरुआत करते हुए कमेटी के महामंत्री अतहर नबी ने वक्ताओं का स्वागत करते हुए कमेटी के तीन दशकों के प्रमुख आयोजनों और 1990 में हुई फिराक संगोष्ठी का ज़िक्र किया. उन्होंने कहा कि फिराक की शायरी देश की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है. फिराक की शायरी शास्त्रीय और आधुनिक कविता की एक खूबसूरत इबारत है. फिराक उर्दू शायरों में एक नई आवाज नया लबोलहजा, नया तर्जे अहसास एक नई शक्ति बल्कि, एक नई जबान लेकर आए.
गोरखपुर विश्वविद्यालय के डॉ. साजिद हुसैन ने रुबाइयों -गजलों के उद्धहरण देते हुए कहा कि फिराक की रुबाइयां बहुत मशहूर हुईं पर उनकी शायरी का असल मैदान गजल का था.
कोलकाता के डॉ. दबीर ने बीसवीं सदी की उर्दू शायरी की प्रमुख बातों का जिक्र करते हुए कहा कि फिराक ने उर्दू शायरी को ताजा असरदार और नया लहजा दिया. डॉ. मुश्ताक कादरी ने कहा कि फिराक ने अपनी आलोचनात्मक पुस्तक में गजलगोई की मीमांसा की है और उन्होंने गजल को अलग-अलग तरह की माला कहा है. साथ ही गजलें कहकर गजलगोई को नया मोड़ दिया.
रुबाइयों पर केन्द्रित अलीगढ़ के सगीर अफराहीम ने कहा कि आज की संकीर्ण विचारधाराओं के माहौल में फिराक और भी प्रासंगिक हो गये हैं. भारतीयता को जिस तरह अमीर खुसरो और मीर ने शायरी में रखा है फिराक की शायरी उसी की एक कड़ी है. फिराक को पिछली सदी का अहम और बड़ा शायर बताने वाले पटना के इम्तियाज करीमी ने कहा कि उर्दू गजल की परम्परा को कई भाषाओं का जानकार होने के नाते नया रुख देने के साथ फिराक ने नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.
लखनऊ के सुहैल काकोरवी ने बानगी रखते हुए स्पष्ट किया कि अंग्रेजी के उस्ताद फिराक ने किस तरह उर्दू शायरी को अंग्रेजी का मुख्तलिफ लहजा देकर नई रंगत पैदा की.
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संगोष्ठी में कतर दोहा से अहमद अशफाक ने उन्हें अतुलनीय शायर कहा. विशिष्ट अतिथि के तौर पर जामिया दिल्ली के प्रो.उबैदुर्रहमान ने फिराक को गजलों का नायक बताया. अलीगढ़ विश्वविद्यालय के डॉ. शाफे किदवई ने उन पर नये सिरे से शोध की जरूरत बतायी.
इसके अलावा कश्मीर के प्रो.कुद्दूस जावेद, मारीशस से डॉ. रहमत अली अरशद, मुम्बई के कलीम जिया, कनाडा के अशफ़ाक अहमद, हैदराबाद के डा.मुश्ताक हैदर, दिल्ली के मिथुन कुमार, चेन्नई से अमातउल्लाह, वर्धा से हिमांशु शेखर, व लखनऊ के राजवीर रतन ने विचारों के साथ परचे पेश किये. इस मौके पर रवीश टेकचन्दानी को कमेटी की ओर से प्रो.इर्तिजा करीम ने साहित्यश्री सम्मान से भी नवाजा.