जुबिली न्यूज़ डेस्क
देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी एलआईसी का आईपीओ लाने के प्रोसेस को तेज कर दिया है। भारतीय जीवन बीमा निगम के विनिवेश की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए वित्त मंत्रालय ने परामर्श कंपनियों, निवेश बैंकरों और वित्तीय संस्थानों से 13 जुलाई तक आवेदन करने के लिए कहा। यह आवेदन एलआईसी के प्रस्तावित आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) की प्रक्रिया में परामर्श देने के लिए मांगे गए हैं।
आपको बता दें कि मौजूदा कारोबारी साल में सरकार ने विनिवेश करके 2.10 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है। इसमें से 90,000 करोड़ रुपए एलआईसी की लिस्टिंग और आईडीबीआई बैंक के विनिवेश से मिल जाने की उम्मीद जताई गई है।
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एलआईसी देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी है। इसके पास बाजार की 77.61 फीसदी हिस्सेदारी है। कुल प्रीमियम आय में इसकी 70 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी है। स्टॉक मार्केट में लिस्टिड होने के बाद मार्केट वैल्यूएशन के हिसाब से एलआईसी देश की सबसे बड़ी कंपनी बन सकती है। इसका बाजार 8 से 10 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है।
रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स का मानना है कि जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का आईपीओ आता है तो इससे पूरी इंश्योरेंस इंडस्ट्री को फायदा होगा। एजेंसी का कहना है कि एलआईसी का आईपीओ आने के बाद देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी की जवाबदेही और पारर्दिशता में भी सुधार होगा और इसका फायदा संभवत: पूरी इंश्योरेंस इंडस्ट्री को मिलेगा।
इससे इंडस्ट्री पहले से अधिक विदेशी पूंजी आकर्षित कर पाएगा, जिससे देश में भी विदेशी पूंजी का इनफ्लो बढ़ेगा। वहीं फिच ने कहा कि उम्मीद है कि एक बार एलआईसी का आईपीओ आने के बाद निजी क्षेत्र की कुछ बीमा कंपनियां भी मध्यम अवधि में अपने शेयरों को शेयर बाजार में लिस्ट कराने को प्रोत्साहित होंगी। हालांकि, मौजूदा नियमों के तहत सभी बीमा कंपनियों के लिए लिस्ट होना अनिवार्य नहीं है।
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मालूम हो कि वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने बजट के बाद बताया था कि सरकार एलआईसी के बीमाधारकों के हितों का पूरी तरह ख्याल रखेगी। आईपीओ के जरिए शेयर बाजार में एलआईसी की लिस्टिंग से उसके कामकाज और गवर्नेंस में अधिक पारदर्शिता आएगी, लोगों की भागीदारी बढ़ेगी और शेयर बाजार में भी मजबूती देखने को मिलेगी। अनुराग ठाकुर ने कहा था कि सरकार एलआईसी लिस्टिंग का विचार लेकर आई है। इसका ब्योरा आएगा और यह एलआईसी और उसके पॉलिसीहोल्डर के हित में ही होगा।
बता दें कि कंपनियों की हिस्सेदारी बेचकर जुटाई जाने वाली राशि को विनिवेश या डिसइनवेस्टमेंट कहते हैं। 1999-2004 के बीच सरकार ने इसके जरिए 24,620 करोड़ रुपए जुटाए थे। इसमें आईपीसीएल, वीएसएनएल, मारुति उद्योग, हिंदुस्तान जिंक और सीएमसी शामिल थीं। 2004 से 2009 तक सरकार ने 8,516 करोड़ रुपए जुटाए थे।
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इसमें एनटीपीसी, पावर ग्रिड और आरईसी शामिल थीं। 2009-14 के बीच सरकार ने सीपीएसई ईटीएफ, कोल इंडिया आईपीओ, सूटी विनिवेश के जरिये 1.05 लाख करोड़ रुपए जुटाए। 2014-2019 में भारत 22 ईटीएफ, एचपीसीएल, आरईसी विनिवेश के जरिये सरकार ने 2.80 लाख करोड़ रुपए जुटाए।