पोलिटिकल डेस्क
बीते कई दिनों से जो कयास हवा में थे उसके रविवार को हकीकत में बदल जाने की संभावनाएं तेज हो गई हैं। खबर है कि अपनी उपेक्षा से नाराज़ यूपी के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर अब और बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं और रविवार को वे एनडीए से बाहर जाने का फैसला कर चुके हैं।
राजभर अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौपेंगे जिसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री से समय भी मांग लिया है। राजभर के साथ उनके बेटे अरविन्द राजभर और उनकी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के 6 और लोग अपना इस्तीफ़ा देंगे।
योगी सरकार के खिलाफ लगातार मुखर रहे राजभर को संतुष्ट करने के लिए अभी कुछ ही दिनों पहले उनके बेटे अरविन्द राजभर को लघु उद्योग निगम के चेयरमैन बनाया गया और भासपा के 6 अन्य लोगों को विभिन्न निगमों में समायोजित किया गया था।
इस समायोजन के बाद राजभर कुछ ढीले जरूर पड़े थे मगर लोकसभा के लिए 5 सीटों की उनकी मांग लगातार जारी रही। इस बीच भाजपा ने उन्हें लगातार बातचीत के लिए बुलाया और हर दौर की बात के बाद राजभर के अल्टीमेटम की तारीख सरकती रही। मगर फैसला न तो भाजपा ने किया और न ही राजभर कोई कड़ा स्टैंड ले पाए थे।
ओमप्रकाश राजभर बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए समझौते में पुर्वांचल की 5 सीटों की मांग कर रहे हैं । इन सीटों में सुरक्षित सीट लालगंज और मछली शहर में से कोई एक तथा सामान्य सीट घोसी, अंबेडकरनगर, जौनपुर और चंदौली शामिल हैं।
मगर भाजपा उन्हें इतनी सीट देने को तैयार नहीं है. भाजपा सूत्रों ने बताया कि राजभर को अधिकतम घोसी की सीट दी जा सकती है, वो भी तब जब वे इस सीट से खुद चुनाव लड़े। लेकिन राजभर इसके लिए तैयार नहीं हैं।
भाजपा का रवैया साफ़ न होते देख बीते शुक्रवार को भासपा के प्रदेश कार्यालय में कोर कमेटी की बैठक हुई, जहां राजभर को लेकर अंतिम रणनीति बनाई गई. बैठक के बाद नेताओं ने राष्ट्रीय नेतृत्व को अवगत करा दिया। इसके बाद से ही भासपा के एनडीए छोड़ने की बात को बल मिलने लगा था।
ओमप्रकाश राजभर ने राजनीती की शुरुआत कांशीराम के साथ की थी। बसपा से अलग होने के बाद उन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी बनाई और राजभर समुदाय की बहुलता वाले पूर्वांचल की करीब 50 विधानसभा सीटों तक अपना प्रभाव बढ़ाया। 2017 के विधान सभा चुनावो के पहले उन्होंने भाजपा से समझौता किया और विधानसभा पहुंचे।
हालांकि इसके बाद भाजपा ने भी अपनी पार्टी के राजभर समुदाय के नेताओं को आगे बढ़ने की कोशिश की , जिससे ओमप्रकाश राजभर का गुस्सा और भड़क गया। ओमप्रकाश राजभर का मानना है की भाजपा उनकी पार्टी को ख़त्म करने में लगी है।
अपने गृह जनपद गाज़ीपुर के डीएम से हुए विवाद के बाद भी जब सीएम योगी ने गाज़ीपुर के डीएम को नहीं हटाया तो राजभर सीएम योगी के कट्टर आलोचक हो गए। वे समय समय पर सार्वजनिक मंचो से सरकार के खिलाफ बोल रहे थे और कुछ मौकों पर तो उन्होंने कैबिनेट मीटिंग का बहिष्कार भी कर दिया।
राजभर का कहना है कि अगर भासपा और भाजपा का साथ छूटता है तो उसका असर पूर्वांचल की करीब 7 लोकसभा सीटों पर पड़ेगा , जहाँ राजभर समुदाय का एक बड़ा वोटबैंक है। हालांकि भाजपा इससे बेपरवाह है। भाजपा का मानना है कि चुनावो में मोदी के नाम पर वोट पड़ रहा है तो फिर राजभर जैसे नेताओं का कोई विशेष महत्त्व नहीं है।