- सरकार के फैसले से नाखुश निजी स्कूलों ने बंद की ऑनलाइन कक्षाएं
- सरकार के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाने की तैयारी में हैं निजी स्कूल
जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी के बीच में अभिभावकों और स्कूलों के बीच कोल्ड वार छिड़ा हुआ है। स्कूल फीस छोडऩे को नहीं तैयार हैं और अभिभावक देने की स्थिति में नहीं है। तालाबंदी के दौरान फीस न लेने की गुहार देश के तमाम राज्यों के अभिभावक सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट में लगा चुके हैं। अभिभावकों की मांग है कि जब तक स्कूल नहीं खुलता है स्कूल फीस न ले, लेकिन स्कूल तैयार नहीं है। वह ऑनलाइन क्लास देने के नाम पर पूरा फीस मांग रहे हैं।
वहीं गुजरात में कई निजी स्कूलों ने गुरुवार से ऑनलाइन कक्षाएं अनिश्चित काल के लिए रोक दी हैं। स्कूलों ने यह कदम राज्य सरकार के उस आदेश के बाद किया गया है जिसमें कहा गया था कि जब तक स्कूल फिर से खुल न जाएं, उन्हें छात्रों से फीस नहीं लेनी चाहिए।
यह भी पढ़ें : इस देश में अब कुत्ते सूंघ कर कोरोना वायरस का लगायेंगे पता
यह भी पढ़ें : सवालों के घेरे में चुनाव आयोग!
यह भी पढ़ें : सरकारी संपत्तियां बेचने का ‘मास्टर प्लान’ तैयार कर रहा है नीति आयोग
कोरोना महामारी और उसकी वजह से हुई तालाबंदी के कारण लोगों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया। लाखों लोगों की नौकरियां चली गई है और जिनकी बच गई हैं उन्हें भी पूरी तनख्वाह नहीं मिल रही है। ऐस हालात में अभिभावक फीस देने की स्थिति में नहीं है।
अभिभावकों की मांग पर पिछले सप्ताह जारी एक अधिसूचना में गुजरात सरकार ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर स्कूल बंद रहने तक स्व-वित्तपोषित स्कूलों को छात्रों से ट्यूशन शुल्क नहीं लेने का निर्देश दिया था। इसके अलावा शैक्षणिक सत्र 2020-21 में स्कूलों को शुल्क में बढ़ोतरी करने से भी मना किया गया है।
सरकार के इस आदेश से नाखुश गुजरात के लगभग 15,000 स्व-वित्तपोषित स्कूलों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक यूनियन ने ऑनलाइन कक्षाएं रोकने का फैसला किया है।
स्व-वित्तपोषित स्कूल प्रबंधन संघ के प्रवक्ता दीपक राज्यगुरु ने गुरुवार को कहा कि राज्य के लगभग सभी स्व-वित्तपोषित स्कूल ऑनलाइन कक्षाएं जारी रखने से इनकार कर रहे हैं।
राज्यगुरु ने कहा, ‘अगर सरकार का मानना है कि ऑनलाइन शिक्षा वास्तविक शिक्षा नहीं है, तो हमारे छात्रों को ऐसी शिक्षा देने का कोई मतलब नहीं है। ऑनलाइन शिक्षा तब तक निलंबित रहेगी, जब तक सरकार इस आदेश को वापस नहीं लेती है।’
उन्होंने कहा कि संघ राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाएगा।
यह भी पढ़ें : तो क्या चीन को सबक सिखाने के लिए भारत ने सरकारी ठेकों के नियम कड़े किए हैं ?
यह भी पढ़ें : कांग्रेस के युवा नेतृत्व में बढ़ने लगी है निराशा
यह भी पढ़ें : इंग्लैंड : मास्क न पहनने पर पुलिस कर सकती है बल प्रयोग
राज्य के निजी स्कूलों के सबसे बड़े संघ गुजरात सेल्फ-फाइनेंस्ड स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष भरत गाजीपारा ने इस मामले में कहा, ‘मंडल बैठक में सभी प्रतिनिधियों ने आदेश का विरोध किया और ऑनलाइन कक्षाओं सहित सभी स्कूल गतिविधियों को रोकने का फैसला किया। अब शिक्षक घर चले जाएंगे, क्योंकि हम फिर से स्कूल खुलने के बाद ही वेतन दे पाएंगे।’
एसोसिएशन के पास 30 लाख छात्रों के साथ 8,500 स्व-वित्तपोषित स्कूल हैं जो अब ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले रहे थे।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार राज्य शिक्षा विभाग द्वारा 16 जुलाई को जारी अधिसूचना में कहा गया है कि कोई भी स्कूल 30 जून तक फीस जमा न होने पर पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक के किसी भी छात्र को निष्कासित नहीं करेगा। स्कूल उनके द्वारा प्रदान की गई किसी भी सुविधा के लिए अभिभावकों से कोई शुल्क नहीं ले सकता।
गुजरात हाईकोर्ट में कोविड-19 महामारी से संबंधित कई जनहित याचिकाएं दाखिल की गई थीं, जिनमें निजी स्कूलों द्वारा लॉकडाउन की अवधि और ऑनलाइन कक्षाओं के लिए फीस की मांग करने संबंधित याचिकाएं भी थीं।
सरकार के अधिसूचना में कहा गया, ’19 जून 2020 को उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के तहत, निजी स्कूलों में चलने वाली ऑनलाइन शिक्षा के तौर-तरीकों समेत तमाम मुद्दों पर शिक्षा विभाग को काम करना चाहिए था। छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा कितनी कारगर होगी, तालाबंदी के दौरान स्कूलों द्वारा वसूली गई फीस और जून 30 तक फीस जमा नहीं करने वाले छात्रों का एडमिशन रद्द करने जैसे मुद्दों पर उसे काम करना चाहिए था।’
अधिसूचना में ये भी कहा गया कि सरकार ने फैसला किया है कि स्कूलों को बंद करने के समय से लेकर दोबारा खोले जाने तक किसी भी तरह की फीस न वसूली जाए।