राजीव ओझा
शारदीय नवरात्र की नौमी सात अक्टूबर को है लेकिन पटना में तो आपदा की नौमी आज ही हो गई। नवरात्र तो उत्सव के दिन होते लेकिन पटनावासी दुर्गापूजा के बजाय अपने सर्वाइवल के लिए जूझ रहे। सरकार हो या अधिकारी, हम अपनी गलतियों से नहीं सीखते। अपनी गलती छिपाने और दूसरों के मत्थे मढने की आदत के कारण हम यह गलती बार बार करते हैं। पटना में भी यही हो रहा है। पटना में एक दिन में अतिवर्षा के कारण हाहाकार मचा हुआ है। बिहार सरकार ने आपदा की सबसे गंभीर स्थिति का प्रबंधन न करके पहली गलती की। अब राजेंद्रनगर और कंकडबाग में नौ दिन से जो गटर का पानी भरने के कारण जो सडन पैदा हो रही उससे महामारी की पूरी आशंका है। आने वाले दिनों में इससे कितनी गंभीर समस्या पैदा हो सकती और उससे निपटने की तैयारी न कर वहां की सरकार दूसरी बड़ी गलती करने जा रही।
पटना की आफत दूसरों से सबक न लेने का नतीजा
ऐसा कहा गया है कि खुद गलतियाँ कर के सीखने के लिए ये उम्र बहुत छोटी है, इसलिए इन्सान को दूसरों की गलतियों से भी सीख कर खुद वही गलती करने से बचना चाहिए। ये बात आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भी लागू होती है और शायद बहुत महत्वपूर्ण भी है, क्योंकि आपदा का सीधा प्रभाव जान-माल की हानि से जुड़ा है। लेकिन शायद ही कोई राज्य दूसरे राज्यों में आयी आपदाओं से सबक ले कर खुद को तैयार करता है। इसका ताज़ा उदहारण बिहार में पटना के शहरी क्षेत्रों में कहर बन के टूटी बाढ़ है। मुंबई, चेन्नई जैसे महानगरों और देश के अन्य भागों में आयी बाढ़ से बिहार ने अगर कुछ सबक लिया होता तो पटना वासियों का ये हाल न हुआ होता। ऐसा नहीं है कि बिहार में आपदाओं को लेकर कुछ काम नहीं हुआ, लेकिन इस बाढ़ से लगता है कि कहीं न कहीं दिशा भ्रम है और कुछ ज़रूरी मुद्दों की अनदेखी हो रही है।
पटना की बाढ़ और सामान्य बाढ़ में अंतर को समझना भी ज़रूरी है। बहुत से लोग, जिनमें बिहार सरकार के अधिकारी भी शामिल हैं, ये कहा जा रहा है कि ये एक बहुत बड़ी और अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदा है। पटना में जितना पानी एक दिन में बरसा उतना पिछले तीन दशक में पहली बार हुआ। यह सही है कि ये एक अप्रत्याशित घटना है लेकिन लगभग सभी बड़ी आपदाएं अप्रत्याशित रूप से घटती हैं और भूकंप सहित कई बड़ी आपदाओं में अभी पूर्व चेतावनी उतनी प्रभावशाली ढंग से विकसित नहीं है।
ऐसे में सरकार एवं आपदा प्रबंधन तंत्र को ही इस तरह की घटनाओं का पूर्वानुमान कर उसे रोकने और समय रहते उसके प्रबंधन के लिए तैयार रहना पड़ता है, जिसमे बिहार की सरकार और जिला प्रशासन पूरी तरह विफल रहे। रही बात इस आपदा के प्राकृतिक आपदा होने की तो हमें ये समझने की ज़रुरत है कि सही मायने में कोई भी आपदा प्राकृतिक नहीं होती | केवल जोखिम प्राकृतिक होते हैं और मानवीय हस्तक्षेप से वे आपदा का रूप ले लेते हैं, चाहे वो भूकंप हो या बाढ़।
पटना का जलभराव प्राकृतिक आपदा नहीं अदूरदर्शिता की बाढ़
अगर हम पटना की बाढ़ की बात करें तो ये कहीं से भी प्राकृतिक आपदा नहीं थी। बाढ़ और नगरीय बाढ़ दो अलग तरह की आपदाएं हैं। सामान्य बाढ़ जहाँ नदियों के बढ़ने से होती है, वहीँ नगरीय बाढ़ कम समय में अत्यधिक वर्षा, बाधित जल निकासी की व्यवस्था, अनियोजित नगरीय नियोजन आदि कारणों से होती है जिनमे से ज्यादातर कारण मानव जनित हैं।
पटना स्मार्ट सिटी योजना में शामिल है लेकिन मुंबई और चेन्नई की नगरीय बाढ़ से उन्होंने कोई सबक नहीं लिया और पटना में लोगों का जीवन नरक हो गया। सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में पहले भी हर साल बरसात के मौसम में जल-भराव होता रहा है और लोग इस तरह से ही जीवन जीने को मजबूर रहे हैं। इस बार की भारी बरसात ने सारे सिस्टम की पोल खोल दी। पटना में बाढ़ की ये विभीषिका पूरी तरह से स्थानीय प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है। पटना के प्रमुख नाले प्लास्टिक कचरे से चोक पड़े हैं और सड़कों पर नालों का पानी और सड़ रहा है।
कहा जा रहा कि एक दिन में जितनी बारिश पटना में हुई उतनी पिछले 25 सालों में नहीं हुई। सबसे ज्यादा प्रभावित राजेंद्र नगर में मुख्य सड़क पर 50 साल पहले भी पानी भरता था। सरकारें आईं गईं लेकिन किसी ने स्थाई समाधान के प्रयास ईमानदारी से नहीं किये। विजयदशमी के दिन बिहार सरकार, प्रशासन और जनता अपने भीतर मौजूद अदूरदर्शिता, अकर्मण्यता, आफत से सबक न लेने के दुर्गुण पर विजय पा सकेंगे ऐसा लगता तो नहीं ।
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