जुबिली न्यूज डेस्क
वैसे तो कोरोना से अपने स्तर पर हर कोई युद्ध लड़ रहा है लेकिन फ्रंट पर बात की जाए तो सिर्फ डॉक्टर्स ही है जो सीधे कोरोना से दो-दो हाथ कर रहे हैं। पिछले छह माह से देश भर में डॉक्टर कोरोना संक्रमितों की सेवा में दिन रात जुटे हुए हैं। कोरोना की इस लड़ाई में कई डॉक्टर खुद संक्रमित हुए तो कई दुनिया छोड़ कर चले गए। फिलहाल डॉक्टरों के लिए यह लड़ाई अब आसान नहीं रह गई है।
लगातार छह माह से काम करते-करते डॉक्टरों पर थकान हावी है तो वहीं हर दिन कोरोना के बढ़ते मामलों ने उनकी समस्या को और बढ़ा दिया है। देश की राजधानी दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ। हर जगह कोरोना संक्रमण मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में डॉक्टरों की सामने समस्या बढ़ गई।
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सरकारी अस्पताल हो या निजी कोविड-19 अस्पताल। हर जगह के डॉक्टरों का कहना है कि पिछले छह माह से लगातार काम करते हुए वह थक गए हैं और अस्पताल में कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली जैसे कई राज्यों में मरीजों के बढऩे और मैन पावर की कमी होने की वजह से स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। अस्पतालों में सारे बेड भरे पड़े हैें और मरीजों का अस्पताल आना बदस्तूर जारी है।
कोरोना संक्रमण के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। भारत सिर्फ अमेरिका से पीछे है। संक्रमण रोकने के लिए केंद्र सरकार ने देश में सख्ती से दो माह का लॉकडाउन किया था। उस समय कोरोना के मामले भारत बहुत कम थे लेकिन जैसे ही सरकार ने राज्यों को आर्थिक गतिविधियां दोबारा शुरू करने के लिए कई छूट दी, मामले तेजी से बढऩे लगे। लॉकडाउन के कारण बेरोजगारी के रिकॉर्ड तो टूटे ही हैं साथ ही देश की अर्थव्यवस्था में भी तेज गिरावट दर्ज की गई है।
यदि राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो जहां पहले यहां एक मामले एक हजार के नीचे तक दर्ज किए जा रहे थे वहीं अब राजधानी में तीन हजार के करीब मामले सामने आ रहे हैं। राजधानी में आर्थिक गतिविधियां शुरु हो चुकी हैें। मार्च से बंद मेट्रो सेवा भी सोमवार से शुरू हो गई है।
दिल्ली के अस्पतालों पर बहुत अधिक भार है क्योंकि अन्य राज्यों के मरीज बेहतर इलाज की चाहत में यहां पहुंच रहे हैं। निजी अस्पताल मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, का 32 बिस्तरों वाला कोविड-19 इंटेनसिव केयर यूनिट भरा हुआ है। जिन मरीजों में सुधार के लक्षण नजर आने लगते हैं उन्हें तुरंत अन्य वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है ताकि वेंटिलेटर का इस्तेमाल जरूरतमंद मरीजों के लिए हो सके।
मैक्स अस्पताल के क्रिटिकल केयर के निदेशक अरुण दीवान कहते हैं दो हफ्ते की वायरस के बीच रोटेशन वाली ड्यूटी के बाद उन्हें डॉक्टरों को आराम के लिए भेजना चुनौती भरा काम है। हमारे पास कुछ ही कर्मचारी हैं जिनकी हम ड्यूटी रोटेशन में लगा सकते हैं। वहीं आईसीयू के डॉक्टर रोनक मनकोडी कहते हैं, “मानसिक तौर पर सभी लोग थक चुके हैं। यहां पर निरंतर ध्यान देने और देखभाल की जरूरत होती है।”
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दो सौ डॉक्टर कोरोना की वजह से गवां चुके हैं जान
कोरोना संकट में सबसे ज्यादा परेशानी डॉक्टरों के उठाना पड़ रहा है। उनके सामने कई चुनौतियां है। कोरोना संक्रमित मरीज का इलाज करना और साथ में खुद को उससे बचाना उनके लिए बड़ी चुनौती है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के आंकड़ों के मुताबिक देश भर में अबतक 200 के करीब डॉक्टरों की मौत कोरोना वायरस के कारण हो चुकी है।
मालूम हो कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन देश भर के साढ़े तीन लाख डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करता है। आईएमए के महासचिव आरवी अशोकन कहते हैं, ” जिन डॉक्टरों की कोरोना की वजह से जान गई है उनमें अधिकतर 50 साल के उम्र के उपर के थे। ”
अशोकन के मुतातिबक आईएमए के सदस्यों की मृत्यु दर करीब 8 फीसदी थी जो कि आम आबादी से ज्यादा है। वह कहते हैं कि परिवार के डॉक्टर सबसे जोखिम में हैं क्योंकि वह मरीजों के पहले संपर्क बिंदु होते हैं। गंभीर मरीजों को पहले इलाज देने की विधि और शारीरिक दूरी बड़ी चुनौती है।
यूपी की राजधानी लखनऊ में कोविड अस्पताल में काम करने वाले डॉ. अभिनव ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमित हो गए थे। उन्हें अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा था। हालांकि उन्हें ऑक्सीजन या वेंटीलेटर की जरूरत नहीं पड़ी थी। वह कहते हैं, “मरीजों की तरह मैं भी डरा हुआ था।
अभिनव को कोरोना का अनुभव निराशा में डाल देता था लेकिन उनके पास आराम करने के लिए बहुत ही कम समय था और उन्हें काम पर लौटना पड़ा। वह कहते हैं “इससे हम थक गए हैं, लेकिन मामलों में असाधारण वृद्धि हो रही इसीलिए हम काम कर रहे हैं। हम डॉक्टर हैं और हमें यह करना होगा। ”
वहीं मेडिकल कॉलेज की डॉक्टर रोमा बोरा कहती है, कोरोना से हमारी लड़ाई तब तक चलेगी जब तक वह इस दुनिया से चला नहीं जाता। हमारे लिए कोरोना से लड़ाई आसान नहीं है। वह कहती हैं, मुझे कोरोना का संक्रमण हुआ। कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने के दूसरे दिन से काम पर लौटना पड़ा। क्या करें हम अपनी ड्यूटी से मुंह नहीं मोड़ सकते।
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