Saturday - 26 October 2024 - 6:58 PM

पापा मम्मी को प्यार नही करते ?

चंद्र प्रकाश राय

मम्मी पापा और सब भाई बहन बस यही तो दुनिया है इस परिवार की। जो भी है मिल बांट कर खा पी लेना और सब सुख दुख मिल बांट कर जी लेना।

अचानक दुख का पहला बड़ा पहाड़ टूट पड़ा परिवार पर और बड़ा इसलिए कि बाकी दुख तो पता ही नहीं चले थे कि कब निकल गये मां और पिता के प्यार तथा संबल और भाई बहनो के आपसी समर्पण और सद्भाव में। पर इस बार तो जीवन का आधार ही हिल रहा था। मां ही बीमार पड़ गई थी। पिता और बड़े भाई डा. को दिखाने से लेकर दवाई लाने तक सब करते तो बाकी भाई बहन भी मां की देख भाल में कोई कसर नही छोड़ रहे थे।

पर उस दिन सचमुच का पहाड़ टूट पड़ा था विपत्ति का जब मां की सांसे थम गई थी। सब बुला रहे थे, हिला रहे थे और लगातार कोई हाथ मल रहा था तो कोई पैर तो कोई सर सहला रहा था पर मां थी कि जिद कर चुकी थी कि अब नही बोलूंगी तो नही ही बोलूंगी देखू कोई क्या कर लेता है। तभी पापा की आवाज आई कि उठाओ इन्हें और अब जमीन पर लिटा दो।

सब एक साथ कितना जोर से चीख पड़े थे पापा पर कि क्या बात करते है कि मां को जमीन पर लिटा दे, क्या हो गया आप को ? तब पापा थोड़ा कठोर होते हुये मुश्किल से बोल पाये थे कि बच्चों अब मां नहीं रही अब इन्हें जमीन पर ही लेटाना होगा सब इन्तजाम कर ले जाने से पहले। सब फिर चीख पड़े कहाँ ले जायेंगे ?

माँ हमे छोडकर कैसे जा सकती है ? तो फिर थोड़ा और कठोर स्वर गूंजा कि बच्चों अब अन्त हो गया मां के जीवन का और अब अन्तिम संस्कार के लिए ले जाना होगा और बेटों का नाम लेकर बोले कि जमीन पर लेटा कर तुम जाओ अन्तिम संस्कार का सामान फला दुकान से ले आओ और तुम लोग रिश्तेदारों को और पड़ोसियों को खबर कर दो।

तब अचानक कितना जोर से सब रो पड़े थे एक साथ पर पापा बिल्कुल नही रोए थे और सब इन्तजाम में खुद भी लग गये।
बडा झटका लगा था सभी बच्चों को कि इतने साल जिस मां के साथ रहे जिन्होंने कितनी सेवा किया पर पापा उनसे प्यार ही नही करते। देखो कैसे पत्थर जैसे बने हुये है, एक बूंद आंशू नाम के लिए भी नही।

लोग इकट्ठे हो गये जो रिश्तेदार आ सकते थे और आसपास के कुछ लोग और बिस्तर पर सोने वाली मां को आज कैसे- कैसे बास और उसके टुकड़ो का बिस्तर बना उस पर लेटा कर बांध दिया गया और फिर कन्धो पर उठा कर चल दिए सब लोग। मां बताती थी की वो जब शादी होकर इस घर मे आई थी तो कोई गाड़ी वाड़ी नही थी बल्कि कहार पालकी मे लेकर आये थे।

और आज अपने लोग लेकर जा रहे थे खुरदरे से बनाये गये बिस्तर पर और कितना प्रेम से सज़ा कर लायी गई थी इस घर में और आज सब कुच उतार कर जला दी जायेंगी।

क्यों बनाया है भगवान ने ये व्यवस्था ? जीवन क्यों और जीवन तो दुख क्यों। दुख भी ठीक तो अपनो को छोड़कर जाने वाली ये मौत क्यों ?

पता नही क्या क्या विचार आ रहे थे मन मे पर आँखो से बहती नदी लगातार उफान ले रही थी सभी की आँखों से और चीख रुकने का नाम नही ले रही थी।कितनी औरते थी जो सम्हालने की कोशिश कर रही थी पर सब नाकाम थी। सब सोच रहे थे की ये सब तो गैर है अभी आ गये है फार्मलटी के लिए जो हम लोगों पर बीत रही है ये क्या जाने।

बार-बार ख्याल आता पापा तो जरा भी नही रोए। क्यो नही रोए ? क्या बिना किसी भावना के इतने सालों से मम्मी के साथ रह रहे थे ? क्या उनका प्यार झूठा था और बस दिखावा था ?

दिन बीतने लगे अक्सर भाई बहन यही बात करते की पापा नहीं रोए ? वो मम्मी की प्यार नही करते थे। इस बात पर सब भाई बहन एकमत होते गये और पिता के प्रति विचार थोड़े बदल से गये और व्यव्हार भी।

उस दिन काम जल्दी खत्म हो गया था तो सभी बहन ने तय किया की चलकर छत पर बैठा जाये, अच्छी हवा चल रही है। छत की आखिरी सीढ़ी पर पहुंचे ही थे की जोर- जोर से हिचकी की आवाज आ रही थी और लग रहा था कि कोई अपना रोना दबाने की कोशिश कर रहा हो।

अरे ये तो पापा है। सब दौड़ कर पास पहुंचे तो देखा कि मुंह में तौलिये का एक छोर दबाए हुये वो रो रहे थे। सबने पूछा कि क्या हो गया पापा ? बहुत देर तक कोई जवाब नही मिला। सब बिल्कुल पास आ गये और अपने-अपने तरीके से पापा का हाथ-पैर सर सहलाने लगे तो लगा की जैसे रुका हुआ बांध अचानक टूट गया हो।

बड़ी मुश्किल से सबने मिल कर सम्हाला था पापा को। फिर सब जानने को उत्सुक थे कि आज क्या हो गया। बड़ी मुश्किल से बोले थे पापा ‘वो बीच रास्ते छोडकर चली गई, जब तक संघर्ष था चट्टान बन कर साथ खड़ी रही और थोड़ा वक्त ठीक हुआ तो अकेला कर गई मुझे।

सब बच्चे भी साझीदार हो गये आज फिर गम में कि पापा आप इतना प्यार करते थे मां को पर कभी बोला क्यों नहीं ? हम सब पता नहीं क्या-क्या सोचने लगे थे। दरार भर गई थी, बाध के बहाव के साथ बहुत कुछ बह गया था और फिर सुख दुख साथ झेल लेने वाली मुट्ठी मजबूत हो गई थी।

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