88 वर्षीय फ़र्रुख़ जाफ़र अब हमारे बीच नहीं हैं। कल 15 अक्टूबर को वे इस फानी दुनिया को अलविदा कह गयीं। फर्रुख जाफर आकाशवाणी और फ़िल्म में आने से पहले पूर्वांचल के एक ज़मींदार ख़ानदान से आती थीं।
1932 में जौनपुर के शाहगंज में पैदा हुईं और 16-17 साल की उम्र में निकाह के बाद लखनऊ आ गईं। उनके पति सैयद मोहम्मद जाफ़र स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने बाद में काफ़ी समय तक पत्रकारिता की और फिर दो बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे।
लखनऊ आने के बाद फ़र्रुख़ जाफ़र इसी तहज़ीब में रच-बस गईं और यहीं से उन्होंने करामत हुसैन से हाईस्कूल, इंटरमीडिएट और फिर महिला कालेज से ग्रेजुएशन किया।
वे 1963 में आकाशवाणी से जुड़ीं और लखनऊ में रहते हुए वे विविध भारती की पहली महिला एनाउंसर बनीं। जब आकाशवाणी की उर्दू सेवा शुरू हुई तो वे सलाहकार की महत्वपूर्ण भूमिका में रहीं। बाद में उन्होंने आकाशवाणी से इस्तीफा दे दिया।
उनका रुझान नाटकों की तरफ खिंचा चला गया। आकाशवाणी के नाटकों के अलावा अलकाजी, एस एस ठाकुर के साथ स्टेज किया। दिल्ली में एक मित्र की पार्टी में वे अपने नौकर की पूर्वी भाषा बोलकर नकल उतारकर सबका मनोरंजन कर रही थीं तभी वहां मौजूद मुजफ्फर अली की नजर उनपर पड़ी।
वे अपनी फिल्म “उमराव जान” के लिए रेखा की मां के अहम किरदार के लिए आर्टिस्ट की तलाश कर रहे थे। उन्होंने फर्रुख को रोल के लिए आफर दिया। बात बन गयी। फ़र्रुख़ जफर ने विविध भारती के साथ अपना करियर शुरू करने के बाद, उन्होंने 1981 की फिल्म “उमराव जान” में सहायक भूमिका के साथ अभिनय क्षेत्र में कदम रखा।
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इसके बाद लखनऊ की सरजमीं से मुहब्बत करने वाली फारुख बिना बम्बई मायानगरी में बसे बॉलीवुड की बड़ी बड़ी फ़िल्मों “बेयर फुट टू गोवा”, “फोटोग्राफ”, “स्वदेश,” सुल्तान”,” सीक्रेट सुपरस्टार”,”मेरे देश की धरती”, “पीपली लाइव”, “गुलाबो सिताबो”,” अलीगढ़”, “मेरे देश की धरती”,”पार्चड”, “अनवर का अजब किस्सा”,” व्हाट विल पीपुल से”, “हाउस द नेक्स्ट डोर”,” जानिसार” और “अम्मा की बोली” में भी काम किया।
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अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, फारुक शेख जैसे सुपर स्टार्स के साथ काम करने के बावजूद उन्हें इरफान खान के साथ काम करने की बहुत इच्छा थी। वो उन्हें एक समर्थ एक्टर मानती थीं।
अमिताभ बच्चन को लेकर वो क्या सोचती थीं आइये उन्हीं की जुबानी सुनते है। “सुजीत सरकार और जूही चतुर्वेदी ने जब गुलाबो सिताबो की कहानी सुनायी और कहा कि इसमें आपके खाविंद का रोल अमिताभ बच्चन निभाएंगे। मेरे जेहन में फिल्म “सिलसिला” का रेखा के अपोजिट काम करने वाले रोमांटिक हीरो की इमेज कौंध गयी। लेकिन जब मैंने सेट पर उनको देखा तो मोटी सी नाक और मोटा सा चश्मा पहने एक घिनहा सा आदमी पाकर निराशा हुई। वो जब आते, अपना डायलाग बोलकर न जाने कहाँ गुडुप हो जाते। मेरी उनसे कोई भी बातचीत नहीं हुई।“
फ़र्रुख़ जाफर लेखिका इस्मत चुगताई की बायोपिक में काम करने की तमन्ना लिये चली गयीं। उन्हें हमेशा लगता था कि उनके वजूद में प्यारी इस्मत खामोशी के साथ किसी कोने में दुबक कर रहती हैं। उन्हें लूडो खेलने की लत थी। खाली समय में वे अपनी नौकरानी के साथ लूडो खेलतीं। वो कहती थीं कि मुझे सामने वाले को हराने में बहुत मजा आता है।
फ़र्रुख़ जाफ़र को फिल्म “गुलाबो सिताबो” के लिए बेस्ट सपोर्टिंग आर्टिस्ट का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। यह भी एक रिकार्ड है कि 88 साल की किसी आर्टिस्ट को यह अवार्ड मिला हो।
उनके इंतकाल पर फिल्म “गुलाबो सिताबो” की लेखिका जूही ने कहा “न आप जैसा कोई था… न आप जैसा कोई होगा… अब आप अल्लाह की दुनिया में हिफाज़त से रहिएगा।”
फारुख जी अक्सर इस नज्म को दोहरातीं थीं….
जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें
राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है…
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