Wednesday - 30 October 2024 - 3:59 AM

कृषि कानून के विरोध में किसान 26 नवंबर से दिल्ली में भरेंगे हुंकार

जुबिली न्यूज डेस्क

सिंतबर महीने में संसद में पारित हुए तीन नये कृषि कानून के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन थम नहीं रहा है। अब देशभर के अलग-अलग किसान संगठनों के नेताओं ने गुरुवार को ऐलान किया कि केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कृषि कानूनों के विरोध में 26 नवंबर से दिल्ली में अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन किया जाएगा।

किसान संगठनों ने साथ में यह भी कहा कि यदि उन्हें राजधानी में नहीं घुसने दिया जाता है तो दिल्ली जाने वाली सड़कों को जाम कर दिया जाएगा।

आंदोलन की अगुवाई के लिए चंडीगढ़ में 500 किसान यूनियनों की ओर से संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया गया है। इस मामले से जुड़े एक किसान नेता ने कहा कि मांगें पूरी होने तक किसान संसद के बाहर प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने कहा, ”हमें प्रदर्शन की अनुमति दी जाती है नहीं, लेकिन किसान संसद पहुंचेंगे।”

वहीं भारतीय किसान यूनियन के हरियाणा ईकाई के प्रमुख गुरुनाम सिंह छाधुनी ने कहा, ”हम नहीं जानते हैं कि प्रदर्शन कितना लंबा चलेगा, लेकिन हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं। किसान तीन से चार महीने तक रुकने का प्रबंध कर रहे हैं।”

गुरुनाम सिंह छाधुनी ने कहा कि सरकार किसानों को राजधानी जाने से नहीं रोक सकती है। यदि हमे रोका जाता है तो हमारे लिए वैकल्पिक प्लान मौजूद है।

हालांकि छाधुनी ने यह नहीं बताया कि उनका वैकल्पिक प्लान क्या है। वहीं पश्चिम बंगाल से सात बार के सांसद और ऑल इंडिया किसान सभा के प्रेजिडेंट हन्नान मोल्लाह और ऑल इंडिया किसान महा संघ के संयोजक शिव कुमार काकाजी ने कहा कि प्रदर्शन तभी समाप्त होगा जब नए कानूनों को भंग करने की उनकी मांग को पूरा कर दिया जाता है।

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काकाजी ने कहा कि तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के किसान भी प्रदर्शन में शामिल होंगे, जिनमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के किसानों की सक्रिय भूमिका होगी। पंजाब के किसान संगठन हर गांव से 11 ट्रैक्टर लेकर दिल्ली आएंगे।

सितंबर में संसद से तीन कृषि कानूनों को पास कराया गया था। केंद्र सरकार ने इन्हें कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए जरूरी बताते हुए कहा था कि इससे किसानों को अपना उत्पाद बेचने में अधिक विकल्प मिलेंगे।

वहीं कुछ विशेषज्ञों ने सरकार के इस कदम की तारीफ भी की, लेकिन किसान संगठनों और विपक्षी दलों का आरोप है कि इन कानूनों से सिर्फ केवल बड़े व्यापारियों को फायदा होगा।

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