डॉ उत्कर्ष सिन्हा
लंबे समय बाद भारतीय राजनीति में खेती और किसानी बहस के केंद्र में दिखाई दे रही है। वरना लोग तो भूल ही गए थे कि नए भारत में किसानों के मामले पर कभी संसद और वो भी राज्यसभा में इतना हंगामा हो जाएगा कि राज्यसभा टीवी का प्रसारण ही रोक दिया जाएगा ? या फिर इतने महत्वपूर्ण विषय पर वोटिंग के बजाय हल्ले गुल्ले में ध्वनि मत से ऐसा बिल पास किया जा पाएगा ?
संसद तो खैर अपनी जगह है, वहाँ सत्ता और विपक्ष की अपनी राजनीति के गुणा गणित होते हैं, संख्या बल का हिसाब होता है, बहुमत और अल्पमत की लड़ाई होती है, मगर किसान तो खेतों से निकाल कर सड़कों पर चला आया है। खास तौर पर पंजाब और हरियाणा के किसान जो असल मायनों में देश के अनाज भंडार को सबसे ज्यादा भरते हैं।
सरकार कह रही है हम किसानों की ज़िंदगी बदल रहे हैं और किसान कह रहा है कि सरकार हमे मारने पर तुली हुई है।
भाजपा के सामने एक नया संकट भी खड़ा हो रहा है। एक एक कर के उसके सहयोगी उससे दूर हो रहे है। शिरोमणि अकाली दल तो लगभग अलग हो ही चुका है, मगर आम तौर पर राज्यसभा में भाजपा का सबसे बड़ा सहारा रहे बीजू जनता दल ने भी इस मामले में विरोध किया।
फिलहाल सबसे ज्यादा विरोध पंजाब और हरियाणा में हो रहा है क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य का सबसे ज्यादा लाभ इन्ही राज्यों के किसानों को मिलता है। सरकार जो अनाज की ख़रीद करती है उसका सबसे अधिक हिस्सा यानी क़रीब 90 फीसदी तक पंजाब और हरियाणा से होता है. तो स्वाभाविक है कि जिस पर सीधा असर होगा वो सबसे पहले विरोध करेगा। और वैसे भी इन दो प्रदेशों की राजनीति किसानों के इर्द गिर्द ही घूमती रही है।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कह रहे है कि किसान विरोधी कृषि विधेयकों को राष्ट्रपति द्वारा मंजूर करने के साथ ही वह भाजपा और शिरोमणि अकाली दल समेत केंद्र में शामिल सहयोगी पार्टियों को अदालत ले जाएंगे।
अब तक एनडीए में शामिल शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर बादल ने राष्ट्रपति से अपील की है कि वे इन विधेयकों पर दस्तखत न करें ?
हरियाण में भाजपा सरकार के सहयोगी दल जननायक जनता पार्टी (जजपा) में भी कृषि बिल को लेकर विरोध शुरू हो गया है। पार्टी के दो विधायक जोगी राम सिहाग और राम करण काला ने कृषि बिल के मुद्दे पर इस्तीफे की बात कह दी।
विश्वास का संकट इतना गहरा गया है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों को समझाने सामने आए मगर किसान भरोसा नहीं कर रहे हैं। कई आरोप हैं, कई शंकाएं हैं और कई सवाल भी है, आज इन्ही पर करेंगे बात और साथ है वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस, बीजेपी प्रवक्ता अश्विन शाही, भाकियू प्रवक्ता धर्मेन्द्र मलिक और पंजाब के किसान नेता हरेन्द्र सिंह लखपाल..