जुबिली न्यूज़ डेस्क
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की तरफ से बुलाए भारत बंद के बाद आज किसानों का आंदोलन किस ओर रुख करेगा आज ये तस्वीर साफ हो सकती है। बीती रात किसान नेताओं और गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात में सरकार का रुख स्पष्ट दिख रहा है।
सरकार कानून वापस ना लेने पर अड़ी है लेकिन किसानों के एक प्रस्ताव देगी, जिसपर किसान नेता चर्चा करेंगे। किसान अगर इस प्रस्ताव को मान लेते हैं तो किसानों का आंदोलन खत्म हो सकता है।
सूत्रों की माने तो किसानों को सुबह 11 बजे तक सरकार की ओर से लिखित प्रस्ताव मिल जाएगा। इसके बाद सिंधु बॉर्डर पर ही किसानों की दोपहर 12 बजे बैठक होगी, जिसमें प्रस्ताव पर चर्चा होगी और आगे की बात की जाएगी।
दूसरी ओर विपक्ष राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाएगा। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार और सीपीएम नेता सीताराम येचुरी इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल होंगे।
विपक्षी नेताओं की राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात बुधवार यानी आज शाम पांच बजे होगी। मुलाकात के पहले विपक्षी नेताओं की बैठक हो सकती है।
सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कल बताया कि विपक्षी नेता बुधवार शाम को पांच बजे राष्ट्रपति से मुलाकात करेंगे। कोरोना प्रोटोकॉल की वजह से सिर्फ पांच नेताओं को राष्ट्रपति से मुलाकात की इजाजत दी गई है। इससे पहले एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा था कि राष्ट्रपति से मुलाकात से पहले विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता तीनों कृषि कानूनों पर चर्चा कर सामूहिक रुख अपनाएंगे।
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कृषि कानूनों के मुद्दे पर राष्ट्रपति से मुलाकात करने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल सभी पार्टियां भारत बंद का समर्थन कर चुकी हैं। दरअसल, भाजपा ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार पर निशाना साधते हुए कहा था कि यूपीए सरकार में कृषि मंत्री के तौर पर शरद पवार ने राज्यों को एपीएमसी कानून में संशोधन करने को कहा था। पवार ने राज्यों को आगाह किया था कि अगर सुधार नहीं किए गए, तो केंद्र की तरफ से वित्तीय सहायता नहीं दी जाएगी। लेकिन अब पवार खुद विरोध कर रहे हैं।
बता दें कि कृषि सुधार कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों से छठे दौर की वार्ता से ठीक एक दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले 12 दिनों से चले आ रहे गतिरोध को समाप्त करने के प्रयास के तहत मंगलवार को किसान नेताओं के एक समूह से मुलाकात की।
हालांकि बैठक के बाद भी गतिरोध टूटने के संकेत नही मिले हैं। वहीं बुधवार को होने वाली बातचीत भी टल गई है। देर रात तक चली बैठक के बाद किसान नेता हनन मुला ने बाहर निकलकर कहा, सरकार बिल वापस लेने को तैयार नहीं है।
सरकार एपीएमसी एक्ट सहित अन्य मुद्दों पर किसानों को एक लिखित प्रस्ताव बुधवार को देगी। गृहमंत्री ने कहा, किसान इस प्रस्ताव पर विचार करें, फिर बैठक होगी। हनन मुला ने कहा सरकार से अब बुधवार को वार्ता नहीं होगी।
सूत्रों के मुताबिक, बैठक में कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने एक प्रेजेंटेशन दिया। किसान बिलों से होने वाले फायदे के बारे प्रेजेंटेशन के जरिये बताया गया। बैठक में कृषि अर्थशास्त्रियों को भी बुलाया गया था। बैठक में गृहमंत्री अमित शाह के साथ कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी शामिल थे। बैठक शुरू होने से पहले गृहमंत्री शाह ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर से भी मुलाकात की थी। माना जा रहा है उन्होंने किसान आंदोलन के संदर्भ में राजधानी की कानून व्यवस्था के बारे में फ़ीडबैक लिया है।
सूत्रों के मुताबिक, 13 किसान नेताओं को शाह के साथ इस बैठक के लिए बुलाया गया था। बैठक रात आठ बजे आरंभ हुई। किसान नेताओं में आठ पंजाब से थे जबकि पांच देश भर के अन्य किसान संगठनों से संबंधित थे। सूत्रों के मुताबिक, इन नेताओं में अखिल भारतीय किसान सभा के हन्नान मोल्लाह और भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत शामिल थे।
कुछ किसान नेताओं ने बताया कि यह बैठक पहले शाह के आवास पर होने वाली थी लेकिन बाद में इसे बदल दिया गया। बैठक पूसा क्षेत्र में हुई। यह बैठक इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि किसान तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं।
प्रदर्शन कर रहे किसानों का दावा है कि ये कानून उद्योग जगत को फायदा पहुंचाने के लिए लाए गए हैं और इनसे मंडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था खत्म हो जाएगी। सरकार चाहती है कि बुधवार को छठे दौर की बातचीत में किसी न किसी फॉर्मूले पर सहमति बननी चाहिए।
बताते चलें कि केंद्र सरकार ने बीते सितंबर महीने में कृषि से जुड़े तीन कानून लागू किए जिनमें कृषि और संबद्ध क्षेत्र में सुधार के मकसद से लागू किए गए तीन नये कानूनों में कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 शामिल हैं।
किसान संगठनों के नेता तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हैं जबकि सरकार ने उन्हें संशोधन करने का आश्वासन दिया है। किसान संगठनों सरकार से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एएसपी की गारंटी की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने उन्हें एमएसपी पर फसलों की खरीद जारी रखने का आश्वासन दिया है।