राजेन्द्र कुमार
सूबे की डीजीपी रहे ओपी सिंह मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर तैनाती पाने की रेस से अब बाहर हो गए हैं। लंबे समय से रिक्त चल रहे मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर अब तैनाती होने ही वाली है।
हाईकोर्ट ने इस पद पर सरकार को जल्द से जल्द तैनाती करने का आदेश दूसरी बार दिया है। ऐसे में अब सरकार में मुख्य सूचना आयुक्त पर के लिए मिले आवेदनों पर विचार-विमर्श शुरु हुआ है।
ओपी सिंह सहित करीब 60 लोगों ने मुख्य सूचना आयुक्त पद पर तैनाती पाने के लिए आवेदन किया है। लेकिन अब इस पर के लिए ओपी सिंह के नाम पर विचार नहीं किया जा रहा है। इसकी प्रमुख वजह है, विजिलेंस महकमें द्वारा भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे आइपीएस अधिकारी डॉ.अजय पाल शर्मा और हिमांशु कुमार के विरुद्ध शासन को सौंपी गई जांच रिपोर्ट।
बताया जा रहा है कि विजिलेंस की जांच रिपोर्ट में डॉ.अजय पाल शर्मा और हिमांशु कुमार दोषी पाए गए हैं और उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की संस्तुति की गई है। इसके साथ ही डीजी विजिलेंस पीवी रमापति शास्त्री द्वारा शासन को दी गई रिपोर्ट में एक रोचक खुलासा पूर्व डीजीपी ओपी सिंह को लेकर भी किया गया है।
शासन के विजलेंस विभाग की रिपोर्ट को पढ़ने वाले अधिकारी के अनुसार, सरकार की शीर्ष प्राथमिकता वाली जांच जिसे महज 15 दिनों में पूरा करना था, उसमें असहयोग और हीलाहवाली करने का आरोप तत्कालीन डीजीपी ओपी सिंह पर लगे हैं। यह पहला मौका है, जबकि किसी पूर्व डीजीपी पर इस तरह का आरोप किसी जांच रिपोर्ट में लगाया गया है।
जांच रिपोर्ट में लिखा गया है कि ओपी सिंह ने जांच में सहयोग नहीं किया। सबूतों की जो पेन ड्राइव पूर्व डीजीपी ने उपलब्ध कराई, वह असली नहीं बल्कि कापी थी। जबकि वैभव कृष्ण ने पांच आईपीएस अफसरों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उसकी रिपोर्ट, पेन ड्राइव में सबूत डीजीपी तथा शासन को भेजे थे।
बताया जा रहा है कि पेन ड्राइव का यह फेरबदल अब पूर्व डीजीपी ओपी सिंह पर भारी पड़ने वाला है। क्योंकि शासन में बैठे अफसर ओपी सिंह की वर्किंग को सही नहीं मान रहें हैं। ऐसे में अब मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर उनके नाम पर विचार होना मुश्किल है। क्योकि सरकार उनके नाम की पैरवी कर विपक्ष को आरोपों का निशाना नहीं बनना चाहेगी।
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यानि की अब पूर्व डीजीपी ओपी सिंह का मुख्य सूचना आयुक्त बन पाने का सपना अधूरा रह जाएगा। इसकी चर्चा अब उच्चाधिकारियों के बीच होने भी लगी है। ऐसी ही एक चर्चा में शामिल एक उच्चाधिकारी का कहना था कि वक्त की मार इसे ही कहा जाता है।
वरना कोई सोच भी नहीं सकता था कि दो वर्ष का अपना कार्यकाल शानदार तरीके से पूरा करने वाले और सरकार के स्तर से मिल रहे सेवाविस्तार को मना कर रिटायर होने वाले तथा मुख्यमंत्री के नजदीकी रहे ओपी सिंह एक एसआईटी जांच रिपोर्ट के चलते मुख्य सूचना आयुक्त बनने की रेस से इस तरह बाहर हो जायंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)