Wednesday - 30 October 2024 - 12:38 AM

संसद सत्र में छाया रहेगा किसान आंदोलन का मुद्दा

कृष्णमोहन झा

नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर अड़े किसानों का आंदोलन तीसरे माह में प्रवेश कर चुका है। इस बीच किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बीच वार्ता के 11दौर भी संपन्न हो चुके हैं और हर दौर की बातचीत में समाधान की कोशिश कोई धूमिल किरण भी दिखाई नहीं दी।

तारीख पर तारीख का यह सिलसिला इतना लंबा खिंचा कि देश के 72वें गणतंत्र दिवस की पुनीत तिथि आ गई। किसानों ने इस बार गणतंत्र दिवस पर राजधानी में ट्रैक्टर परेड निकालने का जो फैसला किया था उस पर वे अडिग रहे तो केंद्र सरकार ने उन्हें कुछ शर्तों के साथ यह परेड निकालने की अनुमति दे दी ।

राजधानी की अनेक सड़कों से जब किसानों की ट्रैक्टर परेड शुरू हुई तो किसी को अंदेशा नहीं था कि कुछ ही घंटों बाद किसान आंदोलनकारी न केवल ऐतिहासिक लाल किले के अंदर प्रवेश करने में सफल हो जाएंगे बल्कि किले की उस प्राचीर तक भी पहुंच जाएंगे जहां प्रति वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री राष्ट्रध्वज फहराते हैं

इसके बाद वो देशवासियों को संबोधित करते हैं परंतु इस गणतंत्र दिवस पर लाल किले में आंदोलन कारी किसानों की उत्तेजित भीड़ ने लालकिले के अंदर सारी गौरव शाली परंपराओं और मर्यादाओं को तार तार कर दिया।

लाल किले में जहां हमारी आन बान शान का प्रतीक तिरंगा राष्ट्र-ध्वज फहरा रहा था उसके पास ही भीड़ में शामिल एक युवक ने एक खंभे पर चढ़कर एक अन्य ध्वज फहरा दिया। गणतंत्र दिवस के दिन इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने निःसंदेह सारे देश को झकझोर दिया। इस युवक के शर्मनाक कृत्य से किसानों को भी शर्मसार कर दिया।

किसान संगठनों ने इस युवक से उनका किसी भी तरह का संबंध होने से इंकार किया है परंतु उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि आंदोलनकारी ने परेड के लिए तय मार्ग से हटकर लाल किले में प्रवेश करने का दुस्साहस क्यों किया।

अगर ट्रैक्टर परेड पहले से तय मार्ग का उल्लंघन नहीं करती तो लाल किले में वह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित नहीं होती जो सात दशकों के गौरवशाली इतिहास में एक काले धब्बे के समान है।

इस घटना की जितनी भी निन्दा की जाए कम है और किसान संगठनों को कम से कम इस बात का पश्चाताप तो अवश्य होना चाहिए कि गणतंत्र दिवस की गरिमा को ध्यान में रखकर अगर उनकी ट्रैक्टर परेड ने लाल किले के प्रांगण में प्रवेश नहीं किया होता तो उक्त दुर्भाग्यपूर्ण घटना से बचा जा सकता था।

निश्चित रूप से एक युवक की इस वारदात ने पूरे किसान आंदोलन को कलंकित कर दिया और दो माह से राजधानी में आंदोलन रत किसानो के जिस अनुशासन और संयम की प्रशंसा हो रही थी उस पर अब एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लग चुका है। किसान संगठनों के नेताओं को इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने बैकफुट पर ला दिया है।

केंद्र में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में आज से शुरू हुए संसद के दूसरे बजट सत्र का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने अभिभाषण में किसान आंदोलन का भी उल्लेख किया। राष्ट्रपति ने गत 26 जनवरी को राजधानी में गणतंत्र दिवस और तिरंगे के अपमान की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।

उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने कृषि सुधारों का मार्ग प्रशस्त करने वाली स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने का जो फैसला किया वह दूसरे राजनीतिक दलों की मंशा के अनुरूप ही था ।

सरकार के इस फैसले से देश के10करोड किसानों को लाभ पहुंचा है। राष्ट्रपति ने मोदी सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए सरकार की तारीफ की। गौरतलब है कि देश के 19विपक्षी दलों ने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए आज संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने की घोषणा पहले ही कर दी थी।

कांग्रेस नेता आनंद शर्मा और अकाली दल की नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर ने कहा है कि उनका दल संसद के वर्तमान सत्र में नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए सरकार पर दबाव बनाएगी।

उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के बजट सत्र की शुरुआत के पूर्व मीडिया से बातचीत में कहा कि सरकार सदन के अंदर सभी ज्वलंत मुद्दों पर मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री ने साल के पहले संसद सत्र को इस दशक का सबसे महत्वपूर्ण सत्र निरूपित किया।

संसद सत्र शुरू होने के पहले ही विपक्ष के जो तेवर नजर आ रहे हैं उसे देखते हुए यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि सदन के अंदर कृषि कानूनों के मुद्दे पर विपक्ष और सरकार के बीच टकराव होना तय है और इस मुद्दे पर सदन में हंगामे की स्थिति निर्मित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

सरकार ने किसानों से बातचीत के हर दौर में पहले ही स्पष्ट कह दिया है कि वह नए कृषि कानूनों में कुछ संशोधनों के लिए तैयार है परन्तु इन कानूनों को पूरी तरह रद्द किया जाना संभव नहीं है। २६ जनवरी को लाल किले की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद किसान संगठनों के जो नेता पहले बैकफुट पर नजर आ रहे थे वे अब आंदोलन जारी रखने की घोषणाएं करने लगे हैं।

भारतीय किसान यूनियन के दो घटकों द्वारा आंदोलन से खुद को अलग कर लेने के फैसले के बावजूद यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत आंदोलन जारी रखने पर अड़े हुए हैं। गाजीपुर बार्डर पर जमा आंदोलनकारी किसानों का मनोबल तोड़ने की मंशा से आंदोलन स्थल पर आधी रात को बिजली और पानी की आपूर्ति बंद कर दिए जाने के बाद ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि सरकार का यह कदम किसानों को वापस लौटने के लिए मजबूर कर देगा।

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इसी मंशा से सरकार ने पुलिस बल की तादाद भी बढ़ा दी थी। परंतु दूसरे दिन सरकार अतिरिक्त पुलिस बल को बल को वापस बुलाकर आंदोलन कारी किसानों को यह संदेश देना चाहा है कि वे टकराव का रास्ता छोड़ कर बातचीत की टेबल पर लौटे।

इस बीच आंदोलन कारी किसानों के नेताओं ने दिल्ली की केजरीवाल सरकार से आंदोलन स्थल पर पानी उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है। आंदोलन कारी किसानों का आरोप है कि केंद्र सरकार में बाधा उत्पन्न करने की कोशिश कर रही है।

लाल किले में २६ जनवरी की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश सिंह की आंखों में जो विवशता के आंसू दिखाई दे रहे थे उन आंसुओं ने किसानों में उनके ने समर्थक तैयार कर दिए हैं।

राकेश टिकैत सहित सभी किसान संगठनों के नेताओं के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करने के लिए उत्तर प्रदेश से किसान बड़ी संख्या में गाजीपुर बार्डर पहुंचने लगे हैं जिसने हताश निराश राकेश टिकैत के अंदर नई ऊर्जा और उत्साह का संचार कर दिया है ऐसा ही उत्साह दूसरे संगठनों के नेताओं के अंदर भी जाग उठा है।

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अब उनकी भाषा भी बदल गई है। जिन किसान नेताओं के चेहरों पर दो दिन पहले पश्चाताप के भाव दिखाई दे रहे थे वे अब यह कहने लगे हैं कि हम राजधानी से अपमान लेकर नहीं जाएंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी सरकार ने भी संसद के वर्तमान सत्र के दौरान आंदोलन कारी किसानों के प्रति अतिरिक्त कठोरता से पेश आने का विचार त्याग दिया है ताकि विपक्ष को कोई बड़ा मुद्दा हाथ न लग पाए। लेकिन सरकार को इसी सत्र में किसानों के साथ सुलह का कोई रास्ता निकालना होगा।

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सरकार पहले ‌यह मानकर चल रही थी कि समय बीतने के साथ ही आंदोलन कारी किसान थक-हार कर वापस चले जाएंगे परंतु गणतंत्र दिवस पर हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना के कारण दो दिन तक बैकफुट पर रहने के बाद किसानों का मनोबल जिस तरह फिर लौटने लगा है वह सरकार के अनुमानों को ग़लत भी साबित कर सकता है। दोनो पक्षों को अब समझौते की राह निकालने की इच्छा शक्ति के साथ नई पहल की शुरुआत करना चाहिए।

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