जुबिली स्पेशल डेस्क
जब कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन शुरू किया था तब सरकार ने साफ कर दिया था वो इसे वापस नहीं लेंगी। इतना ही नहीं विपक्ष ने इस पूरे मामले पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
साल भर से ये आंदोलन चल रहा है। इस दौरान 700 से ज्यादा किसानों की अपनी जान तक गवांनी पड़ी लेकिन मोदी सरकार को इससे भी फर्क नहीं पड़ा।
हालात इतने खराब थे कि उस सरकार की नजरों के सामने ये सब हो रहा था लेकिन मोदी सरकार टस से मस तक नहीं हुई। इस दौरान सरकार और किसानों के बीच एक नहीं कई बार बातचीत हुई लेकिन उसका नतीजा भी शून्य निकला।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्यों सरकार ने अब कृषि कानून वापस लिया है। इसके पीछे क्या है बड़ा कारण। दरअसल किसान अब खुलकर बीजेपी के खिलाफ होते नजर आ रहे हैं।
वो भी तब जब पंजाब और यूपी में चुनाव में केवल अब तीन महीने का वक्त रह गया हो। सरकार को डर है कि अगर उसने अपने कदम पीछे नहीं किये तो उसे इन दो राज्यों में भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।बीते एक साल में किसान आंदोलन पूरी तरह से परवान चढ़ता नजर आया। दूसरी ओर बीजेपी को किसानों के गुस्सा का शिकार होना पड़ा। इसके आलावा बीजेपी के अपने कुनबे में भी किसान आंदोलन को एक राय नहीं थी।
एनडीए के सहयोगी भी कई मौकों पर इस किसान आंदोलन को लेकर सरकार की आलोचना कर चुके थे। आइए उन संभावित वजहों को तलाशते हैं जिसने सरकार को कृषि कानून को वापस लेने पर मजबूर किया है।
यूपी-पंजाब चुनाव बना असली वजह
अगले साल यूपी और पंजाब में विधान सभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार को डर है कि अगर किसानों को मनाया नहीं गया तो उसके वोट बैंक पर अच्छा खासा असर देखने को मिल सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार नितिन गोपाल ने जुबिली पोस्ट से बातचीत में कहा कि सरकार को ये डर सताने लगा था कि अगर उसने वापस नहीं लिया तो यूपी में उसकी सत्ता जा सकती है।
इतना ही नहीं पंजाब में कांग्रेस को लेकर जनता में गुस्सा है। ऐसे में बीजेपी को लगता है कि अगर कृषि कानून को वापस लिया जाये तो उसे वहां पर सियासी फायदा हो सकता है।
जहां तक यूपी की बात है तो यहां पर किसानों का गुस्सा सातवें आसमान पर है। ऐसे में बीजेपी ने सही मौका देखकर बड़ा कदम उठाया है लेकिन यह भी देखना होगा कि विपक्ष भी इतनी आसानी से चुप नहीं बैठने वाला है।
वरिष्ठ पत्रकार नितिन गोपाल ने कहा कि विपक्ष कह सकता है इतने दिनों से आखिर क्यों सरकार चुप थी और चुनाव आते ही अपने सियासी फायदा के लिए मोदी सरकार ने ये कदम उठाया है।
उप-चुनावों मिली हार ने सरकार को सोचने पर किया मजबूर
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों किसान आंदोलन का बड़ा असर देखने को मिला है। इसके आलावा उपचुनाव में बीजेपी की हार भी सरकार को इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर किया है।
इस महीने की शुरुआत में आए तीन लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों में 7 पर बीजेपी को केवल जीत नसीब हुई जबकि 8 सीटें उनके सहयोगियों ने जीतीं उधर, कांग्रेस ने बीजेपी से एक ज्यादा सीट पर कब्जा करते हुए 8 सीटें जीतीं।
हिमाचल प्रदेश की तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर बीजेपी की करारी हार हुई और इस पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया। ऐसे में सरकार को लगने लगा कि किसानों का नाराज करना उसके लिए बड़ी भूल साबित हो सकती है।
गवर्नर सत्यपाल मलिक ने कृषि कानूनों का खुलकर विरोध किया
जहां एक ओर पूरा विपक्ष किसानों साथ था तो दूसरी ओर वर्तमान समय में मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक ने कृषि कानूनों का खुलकर विरोध किया। इस वजह से बीजेपी को तगड़ा झटका लगा।
सत्यपाल मलिक ने कई मौकों पर साफ कहा कि सरकार को इन कानूनों को वापस ले लेना चाहिए और एमएसपी पर कानून बनाना चाहिए। इसके आलावा बीजेपी के कुनबे में इसको लेकर रार देखने को मिलने लगी थी।