अशोक कुमार
कोरोना में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की भूमिका अहम रही है। लेकिन 2 सालों में अचानक मौत के मामले भी बढ़ गए हैं। ब्रिटेन में वैक्सीन को लेकर हुए दावों के बाद अब भारत में भी कोवीशिल्ड वैक्सीन ने चिंता बढ़ा दी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की वैक्सीन के दूरगामी परिणाम व्यापक नहीं बल्कि चुनिंदा लोगों पर ही असर डालते हैं।
एस्ट्राजेनेका वैक्सीन क्या है?
एस्ट्राजेनेका वैक्सीन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश-स्वीडिश दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका के बीच सहयोग से विकसित की गई। ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ता कुछ साल से एडेनोवायरस वैक्टर का उपयोग करके एक वैक्सीन विकसित कर रहे थे। कोविड महामारी आने के बाद उन्होंने कोरोना वायरस के खिलाफ एक टीका बनाने की दिशा में अपने प्रयासों को तेजी से आगे बढ़ाया।
भारत में वैक्सीन
एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को भारत में AZD1222 या कोविशील्ड के नाम से जाना जाता है। पुणे स्थित फार्मा कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भारत और कुछ दूसरे गरीब देशों के लिए कोविशील्ड वैक्सीन के निर्माण के लिए जनवरी 2021 में एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के साथ डील की। इस साझेदारी के तहत सीरम को भारत और विश्व स्तर पर भारी मांग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर वैक्सीन का कोविशील्ड के नाम से उत्पादन करने की अनुमति मिली। कोविशील्ड बनने के बाद भारत में इसके वितरण को भारत सरकार और राज्य सरकारों के सहयोग से सुविधाजनक बनाया गया और लोगों तक टीका पहुंचाया गया।
भारत में 2022 तक दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम के हिस्से के रूप में कोविशील्ड की 1.7 अरब से अधिक खुराकें दी गईं। एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के सरल भंडारण और व्यापक उपलब्धता ने भारत और दुनियाभर में टीकाकरण अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत में बड़ी तादाद में आम लोगों तक वैक्सीन पहुंचाई गई।
वैक्सीन के साइड इफेक्ट और प्रतिबंध
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के दुष्प्रभावों को सूचीबद्ध करता है। इसमें हल्के से मध्यम लक्षण शामिल हैं। एस्ट्राजेनेका वैक्सीन प्राप्त करने के बाद रिपोर्ट किए गए दुष्प्रभावों में इंजेक्शन लगने की जगह पर परेशानी, अस्वस्थता महसूस करना, थकान, बुखार, सिरदर्द, बीमार महसूस करना, जोड़ों या मांसपेशियों में दर्द, सूजन, इंजेक्शन स्थल पर लाली, चक्कर आना, नींद आना, पसीना आना, पेट दर्द और बेहोशी शामिल थे। तब कहा गया कि ये दुष्प्रभाव अस्थायी होते हैं और अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता के बिना ठीक हो जाते हैं।
एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की बारीकी से जांच के बाद इसे कई देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया था। डेनमार्क कोविड-19 वैक्सीन एस्ट्राजेनेका को बैन करने वाला पहला देश था। इसके बाद आयरलैंड, थाईलैंड, नीदरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड, कांगो और बुल्गारिया ने भी इस पर रोक लगा दी। जर्मनी, फ्रांस, इटली और स्पेन सहित यूरोपीय देशों ने भी 2021 में एस्ट्राजेनेका के कोविद -19 वैक्सीन का उपयोग बंद कर दिया था, क्योंकि जिन रोगियों को टीका लगाया गया था उनमें रक्त के थक्के के कई मामले सामने आए थे। कनाडा, स्वीडन, लातविया और स्लोवेनिया ने भी 2021 में इसके इस्तेमाल को रोक दिया। इसके बाद इस वैक्सीन को सुरक्षित ना मानते हुए ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और मलेशिया में इस पर बैन लगा दिया गया।
वैक्सीन पर नया विवाद
फरवरी में यूके की एक अदालत में जमा किए गए दस्तावेजों में एस्ट्राजेनेका कंपनी ने कहा कि इसके इस्तेमाल से थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) के साथ थ्रोम्बोसिस नामक एक दुर्लभ दुष्प्रभाव हो सकता है।
थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) के साथ थ्रोम्बोसिस एक दुर्लभ लेकिन गंभीर बीमारी है, जो वैक्सीन से जुड़ी है। टीटीएस के लक्षणों में गंभीर सिरदर्द, धुंधली दृष्टि, बोलने में कठिनाई, सीने में दर्द, पेट में दर्द, सांस लेने में तकलीफ और पैर में सूजन आदि शामिल
हाल ही में एस्ट्राजेनेका ने स्वीकारा कि उसकी कोविशील्ड वैक्सीन के रेयर साइड इफेक्ट हो सकते हैं। जिसको लेकर देश में नए सिरे से बहस शुरू हुई। विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि घबराएं नहीं, टीके से जुड़ा खतरा दस लाख में से एक व्यक्ति को होता है। वैसे देश के चुनावी माहौल के बीच आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के कोलाहल में यह तय कर पाना कठिन हो जाता है कि हवा में तैर रही खबर की तार्किकता क्या है। यह भी कि यह खबर वास्तविक है या राजनीतिक लक्ष्यों के लिये गढ़ी गई है। वहीं दूसरी ओर व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के चलते भारत के खिलाफ जो वैश्विक गुटबंदी चल रही है, कहीं आरोप इस कड़ी का हिस्सा तो नहीं है। वैसे विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कोविशील्ड वैक्सीन लेने के चार से बयालीस दिनों के भीतर टीटीएस प्रभाव हो सकता है, जो ब्लड क्लॉट बना सकता है। जिससे कालांतर प्लेटलेट्स की कमी शरीर में हो सकती है। दरअसल, वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटेन में एक अदालती सुनवाई के दौरान वैक्सीन के दुर्लभ प्रभावों की बात को माना था। कंपनी के विशेषज्ञों का कहना है कि टीटीएस दिमाग, फेफड़ों, आंत की खून की नली आदि में तो पाया गया लेकिन किसी को हार्ट अटैक की समस्या नहीं हुई। साथ ही यह भी कि कोविड संक्रमण के कारण भी ब्लड क्लॉट के मामले सामने आए हैं।
उल्लेखनीय है सरकार ने कोरोना संकट के दौरान कोविशील्ड लेने हेतु व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाया था। अब जब इसके दुष्प्रभावों को लेकर संशय पैदा हुआ है तो उसे अपने संसाधनों का इस्तेमाल करके लोगों की शंकाओं का निवारण भी करना चाहिए। सेहत से जुड़े किसी भी मामले में किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। यदि किसी तरह असुरक्षा की भावना बढ़ती है तो सरकार को तुरंत दूर करना चाहिए। नागरिकों की शंकाओं का तुरंत ही समाधान किया जाना चाहिए। जिसके चलते लोगों के मन में कई तरह के सवाल उपजे हैं, जिनका निराकरण भी सरकार का प्राथमिक दायित्व है। हमें यह भी स्वीकारना चाहिए कि संकटकाल में इस वैक्सीन की तुरंत उपलब्धता से देश की बड़ी आबादी को सुरक्षा कवच उपलब्ध कराया जा सका।
बेहद कम समय में कोरोना से लड़ने के लिये उपलब्ध कराई गई वैक्सीन के साइड इफेक्ट से इनकार भी नहीं किया जा सकता। इस बात की आशंका भी है कि टीएसएस प्रभाव कोरोना संक्रमण के बाद भी सामने आ सकते हैं। कुछ हृदयरोग विशेषज्ञों का मानना है कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनी को पहले ही बताना चाहिए कि वैक्सीन से टीटीएस जैसे साइड इफेक्ट हो सकते हैं। जानकारी होने पर लोग अपनी प्राथमिकता की वैक्सीन ले सकते थे। वहीं यह भी तार्किक है कि कोई दवा अथवा वैक्सीन यदि असर करती है तो उसके साइड इफेक्ट भी निश्चित रूप से होते हैं। कुछ विशेषज्ञ वैक्सीन के दुष्प्रभावों के आरोपों के मूल में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रही वैक्सीन राजनीति को भी बताते हैं। कुछ अमेरिकी विशेषज्ञ वैक्सीन के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिये हफ्ते में दो दिन सिर्फ एक बार खाना खाने की सलाह देते हैं, जिससे ब्लड क्लॉटिंग रोकने में मदद मिल सकती है।
(पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय)