कृष्णमोहन झा
कोई भी सरकार इतनी संवदेन शून्य कैसे हो सकती है कि उसके राज्य में गरीब परिवारों के सौ से अधिक मासूम बच्चे अस्पतालों में उचित इजाल के अभाव में दम तोड़ दें और वह सरकार केवल यह तर्क देकर इस दर्दनाक स्थिति से पल्ला झाड़ ले कि धीरे- धीरे सब ठीक हो जाएगा, लेकिन इस समय बिहार में यही दृश्य दिखाई दे रही हैं। चमकी बुखार की चपेट में आकर सरकारी अस्पतालों में 120 से अधिक बच्चे तड़प- तड़प कर दम तोड़ चेके हैं परंतु सरकार को तो बस एक ही तर्क सूझ रहा है कि उसके हाथ में कुछ नहीं है।
मुख्यमंत्री नीतिश कुमार मौन साधे बैठे हैं। पहले तो उन्होंंने उन अस्पतालों मं जाकर चमकी बुखार से पीड़ित अभागे बच्चों के हालचाल पूछने एवं उनके परिजनों को दिलासा देने की जरूरत ही नहीं समझी और बाद में जब चौतरफा धिक्कार एवं मीडिया के दबाव में जब वे अस्पतालों का दौरा करने पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस रहस्यमय चमकी बीमारी ने सौ से अधिक मासूम को मौत की नींद सुला दिया था।
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नीतिश कुमार ने अस्पताल का दौरा करने के बाद वहां का कारुणिक दृश्य देखकर भी यह स्वीकार करने का साहस नहीं दिखाया कि इन अभागे बच्चों की अकाल मौत के लिए उनकी सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं है क्योंकि राज्य में यह पहली बार नहीं हुआ कि इस बीमारी ने इतनी बड़ी संख्या में मासूम बच्चों को अपना शिकार बनाया हो।
आज से चार साल पहले भी ऐसे ही दर्दनाक हालात राज्य में बने थे तब केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री यह आश्वासन देकर गए थे कि राज्य में सौ बिस्तरों पर एक अस्पताल शीघ्र ही बनवाया जाएगा जिससे कि बीमार बच्चों को समुचित इलाज समय पर उलब्ध हो सके। उस समय के स्वास्थ्य मंत्री आज भी स्वास्थ्य मंत्री है। उन्होंने पहले की भांति इस बार भी अस्पतालों का दौरा किया जहां चमकी बुखार से पीड़ित मासूम बच्चें तड़प तड़पकर दम तोड़ चुके थे परंतु उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि आखिर चार साल में भी 100 बिस्तरों वाला एक छोटा सा अस्पताल बनाने में सरकार ने दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई।
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अगर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने अपने आवश्वासन को भुला नहीं दिया होता तो एक ऐसा अस्पताल अब तक जरूर बन कर तैयार हो जाता जिसमें एक ही बिस्तर पर तीन- तीन बच्चे न पड़े होते। निश्चित रूप से तब बीमार बच्चों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा सकती थी क्योंकि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने 4 साल पहले सामान्य स्तर का नहीं बल्कि सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनाने का आश्वासन दिया था, परंतु सरकार की अधिकतर घोषणाओं का तो यही हश्र होता है तो केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री की इस घोषणा का हुआ। चाहे रेल दुर्घटनाओं का मामला हो या चमकी बुखार से सवा सौ अधिक मासूम बच्चों की अकाल मौत का भयावह हादसा हमारी सरकारें उनसे सबक न लेने की मानसिकता से छुटकारा पाने की इच्छा शक्ति प्रदर्शित करने के लिए तैयार ही नहीं हैं।
नीतिश सरकार यह दावा कर रही है कि अस्पतालों में चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों के समुचित इलाज की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हैं और बड़ी संख्या में बीमार बच्चे स्वस्थ होकर घर भी जा चुके हैं, परंतु अगर नीतिश कुमार जो कह रहे है वहीं सच है तो फिर इस बीमारी से प्रभावित इलाकों में रहने वाले गरीब परिवारों के लोग अपने बच्चों को दूर-दराज में रहने वाले रिश्तेदारों के यहां क्यों भेज रहे हैं।
कई परिवार तो अपने बच्चों को लेकर दूसरे गांवों में चले गए है क्योंकि नीतिश सरकार तो यह गारंटी लेने के लिए तैयार ही नहीं कि अब राज्य में चमकी बुखार किसी भी बच्चें को भी मौत की नींद सुला सकेगा। सरकार तो बस इतनी सांत्वना दे रही है कि मौसम बदलते ही सब ठीक हो जाएगा। अब इस बीमारी के सही कारण पता लगाने के शोध की बात भी कही जा रही है और दूसरे जिलों से तथा दिल्ली से विशेषज्ञ डौक्टरों की टीम भी प्रभावित इलाकों के अस्पतालों में भेजी जा रही है लेकिन सरकार को इस सवाल का जवाब तो दना ही होगा कि जब राज्य में इस बीमारी के कारण पिछले कई वर्षों से सैकड़ों की संख्या में मौतें हो रही हैं तब पहले ही शोध की जरूरत क्यों नहीं समझी गई और अब तक इसका कारगर इलाज खोजने में सफलता क्यों नहीं मिली। सरकार भले ही दवाइयों की कोई कमी न होने का दावा करे परंतु शुरू में हालत इतनी दयनीय थी कि बीमार बच्चों को ओआरएस पैकेट तक नहीं मिल सका।
गरीब परिवारों के लोगों को महंगी दवाईयां बजार से खरीदने के लिए कह दिया गया। शायद चिकित्सकीय स्टाफ को यह नहीं पता था कि अगर इन परिवारों के पास महंगी दवाईयां खरीदने की सामथ्र्य पहले से ही होती तो उनके बच्चे इस भयावह बीमारी का शिकार ही नहीं बनते। अस्पतालों में गंदगी भी स्थिति को बद से बदतर बना रही है। सब तरफ अव्यवस्था का आलम है। यह भी कम शर्मनाक बात नहीं है कि जब नीतिश सरकार इस भयावह बीमारी से उपजी भयावह स्थिति पर काबू पाने के लिए विचार विमर्श के इरादे से अपने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाती है तो उसके एक मंत्री को बीमार बच्चों से ज्यादा इस बात की चिंता सताती है कि भारत- पाकिस्तान के बीच चले वर्ल्ड कप क्रिकेट का ताजा स्कोर क्या है।
संवेदन शून्यता की इस पराकाष्ठा के बाद भी नीतिश सरकार शर्मसार नहीं है तो इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है। नीतिश कुमार को कभी राज्य में सुशासन बाबू के रूप में जाना जाता था परंतु ऐसा लगता है कि अब सुशासन बाबू के राज्य में शासन नाम की कोई चीज ही नहीं बची है। वे अब ऐसे यथा स्थिति वादी मुख्यमंत्री बन चुके है। जो परिस्थितियों में सुधार के लिए केवल भगवान के भरोसे बैठे हुए है। राज्य सरकार को जब चमकी बुखार की भयावह चुनौती से निपटने में असफलता हाथ लगी तो उसने इसका कारण लीची नामक फल को बताकर अपनी जिम्मेदारी को कम करने की कोशिश से भी परहेज नहीं किया।
मुजफ्फरपुर देश का सर्वाधिक लीची उत्पादन करने वाला क्षेत्र है। स्वाभाविक रूप से इसका यहां सेवन भी ज्यादा किया जाता होगा क्योंकि यहां सस्ती दर पर लीची बहुलता से उपलब्ध है। अगर सरकार के इस तर्क को स्वीकार भी कर लिया जाए कि चमकी बुखार ने उन लोगों के बच्चों को अपनी चपेट में लिया जिन्होंने बच्चों को ज्यादा लीची खिलाई होगी तो फिर सरकार को इस सवाल का जवाब अवश्य ही देना होगा कि उसने इतने वर्षों में लीची से होने वाले घातक प्रभाव के बारे में बेचारे गरीब और अशिक्षित परिवारों को कोई जानकारी देने की जरूरत क्यों नहीं समझी।
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ऐसा कहा जा रहा है कि सुबह खाली पेट लीची का सेवन से ब्लड शुगर का स्तर इतना कम हो जाता है कि मरीज के स्वास्थ्य पर उसके घातक प्रभाव को रोकना मुश्किल हो जाता है। अगर यह सच है तो सरकार ने इसके घातक प्रभाव के बारे में लोगों को सचेत न करने की जो आपराधिक लापरवाही इतने सालों तक बरती उसके लिए क्या उसे थोड़ा सा खेद भी नहीं जताना चाहिए।
मुख्यमंत्री नीतिश कुमार भले ही यह दावा करें कि चमकी बुखार के कारण पैदा हुई भयावह स्थिति को काबू में लाने के लिए अपनी जिम्मेदारी का पूरी ईमानदारी से निर्वहन कर रही है और जल्दी ही सब सामान्य हो जाएगा परंतु सवाल यह उठता है कि ऐसा ही होता तो क्या रोज ही चमकी से मौत का शिकार बनने वाले बच्चों की संख्या ऐसे ही बढ़ रही होती।
सत्ताधारी दल के एक सांसद का कहना है कि चमकी बुखार के लिए 4जी जिम्मेदार है। 4जी से उनका मतलब है गांव, गरीबी, गंदगी और गर्मी है। अगर उनकी बात पर भरोसा कर लिया जाए तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि लोगों को गंदगी और गरीबी से निजात दिलवाने के लिए सरकार ने जो कदम उठाए है उनका लाभ लोगों तक क्यों नहीं पहुंचा। आजादी के 72 साल बाद भी हमारे देश में गरीबी एवं गंदगी के कारण बच्चों की मौतें हो रही है तो उसके लिए सरकार अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकती है।
आश्चर्य की बात यह है कि क्या सरकार गंदगी और गरीबी हफ्ते भर में मिटा सकती है कि जल्दी ही सब सामान्य हो जाएगा। सांसद ने तो गांव को भी इस बीमारी क एक कारण बताया है। क्या वे यह नहीं जानते है देश की आधी आबादी अभी गांवों में ही निवास करती है फिर हर जगह यह बीमारी क्यों नहीं होती। दरअसल सरकार और सत्ताधारी दल के लोगों द्वारा जो बयान बाजी की जा रही है वह केवल सरकार की नाकामी और लापरवाही पर पर्दा डालने का एक अशोभनीय प्रयास है।
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सरकार को न केवल जल्द से जल्द चमकी बुखार को बढ़ाने से रोकना होगा और इसके लिए उसे युद्ध स्तर पर प्रयास करना होगा। साथ ही सरकार को यह भी तय करना होगा कि आगे आने वालों में गर्मी के मौसम में यह बीमारी फिर सिर न उठाने पाए। गंदगी और गरीबी के उन्मूलन हेतु सरकार को सतत प्रयास करना होगा गंदगी और गरीबी केवल उन गांवों की समस्या नहीं जहां चमकी बुखार ने सवा सौ से अधिक बच्चों को मौत की नींद सुला दिया।
गंदगी और गरीबी केवल चमकी बुखार का कारण नहीं बनती बल्कि और भी कई बीमारियों को जन्म देती हैं। गरीबी के कारण ही बच्चे कुपोषण का शिकार बनते है और यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि कुपोषण से ग्रस्त बच्चों को तरह तरह की बीमारियां जकड़ लेती हैं। आखिर कुपोषण से मुक्ति दिलाने की जिम्मेदारी से सरकार कैसे बच सकती है। इस सवाल का जवाब नीतिश सरकार को देना होगा। केवल मौन रहकर वे अपनी सरकार की नाकामी को नहीं छुपा सकते।
( लेखक डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है )